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भारत का हृदय बुंदेलखंड आज रोता, बिलखता और उजड़ता हुआ

फोटो साभार- आशीष

फोटो साभार- आशीष

गली खोर सूनी पड़ी, सूने पड़े मकान

सूने-सूने खेत सब, सूने सब खलिहान।

भारत का यह ह्रदय छलनी, तपती इसकी जान

सब घर छोड़कर शहर भाग गए, जो बचे वे फांसी पर चढ़े किसान।

आज एक क्रांतिकारी भूमि बुंदेलखंड की वह कहानी बता रहा हूं, जो तड़पते हुए किसानों, गरीबों, मज़दूरों और शिक्षा के क्षेत्र में एक पिछड़ा इलाका बन चुका है।

मेरा नाम आशीष शाक्यवार है और मैं बुंदेलखंड के जालौंन जनपद से हूं। आज जो लिखने जा रहा हूं, उसे ज़रूर दिल से समझिएगा, क्योंकि आज सवा सौ करोड़ की इस आबादी में उन करोडों बुंदेलखंडियों की हालात से परिचित करा रहा हूं।

करोड़ों की जनसंख्या वाला बुंदेलखंड आज रोता-बिलखता नज़र आता है। बार-बार सुखाड़ की चपेट में आना, बेमौसम बरसात का होना, सरकार द्वारा बुंदेलखंड का उपहास होना और भू-माफियाओं द्वारा अंधाधुंध खनन जैसे कई कारण हैं, जो बुंदेलखंड को दीमक की तरह खा रहे हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर।

बुंदेलखंड की सीमा के क्षेत्र में 13 ज़िले आते हैं, जिनमे उत्तर प्रदेश के 7 ज़िले- झांसी, जालौन, महोबा, चित्रकूट, बांदा, हमीरपुर, ललितपुर और मध्यप्रदेश के 6 ज़िले टीकमगढ़, पन्ना, दतिया, छतरपुर, दमोह और सागर के अलावा कुछ अन्य क्षेत्र भी आते हैं।

असल मे होता क्या है कि हम झांसी के अंदर जाते हैं तो लगता है बुंदेलखंड में सब कुछ ठीक है। ज़िलों के मूल बाज़ार में रौनक का माहौल रहता है लेकिन असली बात तो यह है कि कभी मूल बाज़ारों से निकल कर आप थोड़ा 10 किलोमीटर गाँव-देहात की ओर जाएंगे, तो आपको कुछ अच्छा नहीं लगेगा।

बुंदेलखंड के बीहड़ ग्रामीण स्थानों की हालात, शिक्षा का स्तर, जल और वहां की भूमि देखने पर आपके दिल मे एक प्रश्न ज़रूर उठेगा कि यहां के लोग आखिर रहते कैसे हैं? यंहा पर क्या करते हैं वे? क्या खाते हैं? ऐसे ही तमाम प्रश्न मन में उथल-पुथल मचा रहे होंगे।

आज बुंदेलखंड में इतना पलायन बढ़ गया है कि हज़ारों गाँव खाली पड़ गए हैं। उन गाँवों में रहने के नाम पर किसी-किसी के बूढ़े माता- पिता हैं, जिनके पास एक मिट्टी का चूल्हा,  मिट्टी का तवा (रोटी सेकने का बर्तन) और जंगल-बीहड़ से लकड़ियां मिल जाती हैं।

फोटो साभार- आशीष शाक्यवार

अगर यहां के किसानों की बात करें तो बुंदेलखंड में पानी की समस्या हमेशा से रही है, जिससे खेती नहीं हो पाती है। मैं जो लिख रहा हूं उसे पढ़ने के बाद शायद आप इनकी तकलीफों को समझ ना पाएं लेकिन मेरी आंखों में आंसू झलक रहे हैं, क्योंकि दलालों और कर्ज़ की वजह से किसानों की ज़िन्दगी बर्बाद हो रही है।

दूसरी बात यह कि बुंदेलखंड के किसानों के घर-परिवार की इतनी खराब स्थिति है कि वे बेटियों को तो पढ़ा ही नहीं पाते हैं, क्योंकि उन्हें बेटियों की शादियों के लिए पैसे का इंतजाम करना पड़ता है।

किसान जब अपनी फसल बोता है, तो दिल में एक उम्मीद होती है कि इसके ज़रिये जो भी पैसे आएंगे, उनसे अपने बच्चों को एक अच्छे स्कूल में दाखिला करवाकर पढ़ाया-लिखाया जाएगा लेकिन उसकी फसल जब तैयार हो जाती है, तब बेमौसम बरसात, फसल के दामों में गिरावट और बिचौलियों द्वारा लूट उसके सारे सपनों पर पानी फेर देती है।

फोटो साभार- आशीष शाक्यवार

मतलब यह कि इन चीज़ों की वजह से किसान पूरी तरह बर्बाद हो जाता है। यहां तक कि वह भोजन को भी तरस जाता है। जब किसान इस सदमे को नहीं झेल पाता और उसके पास दूसरा कोई रास्ता भी नहीं होता है, तो बाद में वह आत्महत्या को ही एकमात्र रास्ता बना लेता है।

ऐसा होने के बाद उसका परिवार और उसके बच्चे शिक्षा से कोसों दूर हो जाते हैं। इन चीज़ों की वजह से वे गरीबी की ज़िन्दगी जीने के लिए मजबूर हो जाते हैं। सरकारें बनने के बाद बुंदेलखंड को करोड़ों का पैकेज तो देती हैं मगर वे सिर्फ कागज़ों और नेताओं के बीच ही रह जाते हैं।

इसी तरह बार-बार सरकारों के उपहास की वजह से आज बुंदेलखंड वीरान होने की कगार पर है। इन चीज़ों पर सरकार को काम करने की ज़रूरत है, तभी बुंदेलखंड में खुशियां आ सकती हैं। बुंदेलखंड सर्वाधिक सम्पन्न प्रदेश के तौर पर देश का पहला प्रदेश बन सकता है।

कई सरकारों ने इसका समर्थन भी किया है लेकिन सरकार बन जाने के बाद वे अपने वादों से मुकर जाते हैं फिर भी इस बदहाल बुंदेलखंड की कहानी में बहुत कुछ बाकी है, जिसे देखने पर आप और सही रूप से समझ पाएंगे।

अंत में यही कहूंगा कि बुंदेलखंड इस भारत देश का हृदय है। देश के हृदय को कमज़ोर मत होने दीजिए, क्योंकि जब हृदय कमज़ोर होगा तो बीमारियां कई उत्पन्न होंगी जिससे देश को कमज़ोरी का सामना करना पड़ेगा ।

जय हिंद जय भारत जय बुंदेलखंड

जय मजदूर जय किसान

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