गाँधी फेलो के तौर पर मैंने राजस्थान के कई स्कूलों का भ्रमण किया है और वहां रहकर जाना है कि किस तरीके से बच्चों को शिक्षा दी जाती है। शिक्षा के अलावा भी उनके सर्वांगीण विकास पर हमने काम काम किया है।
राजस्थान के झुंझुनू ज़िले में स्थित उदयपुरवाटी ब्लॉक के आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय, टीटनवाड़ में मैंने पुस्तकालय प्रभारी शिक्षिका के साथ मिलकर विद्यार्थियों द्वारा संचालित पुस्तकालय बनाने का साझा उद्देश्य निर्धारित किया।
सबसे पहले चुनावी प्रक्रिया के तहत कक्षा 4 से 12 के बच्चों में से 18 बच्चे चयनित हुए और शिक्षिका सहित बाल समिति के सदस्य बनें। इस समिति का नाम हमने CLMC (Children Library Management Committee) नाम से गठित किया गया।
मैंने सर्वप्रथम समिति के बच्चों के साथ एक बैठक आयोजित किया, जिसमें पुस्तकालय प्रभारी को भी शामिल किया गया। समिति की आमुखीकरण कार्यशाला में निम्न बिन्दुओं पर चर्चा की गई-
- समिति के सदस्यों की ज़िम्मेदारियों का निर्धारण
- समिति की कार्यप्रणाली
- पुस्तक लेन-देन की प्रक्रिया
- पुस्तकों की देखरेख
- पुस्तकों का बच्चों के अधिगम के आधार पर वर्गीकरण
इसके बाद लगभग 1600 किताबों को व्यवस्थित तरीके से पुस्तकालय में रखा गया। इसके बाद से सभी कक्षाओं के बच्चे निर्धारित कालांश और घर पर ले जाकर किताबें पढ़ने लगे।
अगली विज़िट में मैंने देखा कि जिन बच्चों को किताबें दी गई थीं, क्या वे सही तरीके से प्रश्नों का उत्तर दे पा रहे हैं? फिर मैंने पाया कि बच्चे पूछे गए प्रश्नों का उत्तर काफी उत्साहपूर्वक दे रहे हैं। इसके बाद मैंने पुस्तकालय में बच्चों के साथ मिलकर कुछ और गतिविधियों पर काम किया। मैंने 3 प्रश्न एक चार्ट पर लिखकर वॉल पर चस्पा कर दिए। वे प्रश्न इस प्रकार हैं-
- आपने जो किताब पढ़ी, उसमें सबसे अच्छा क्या लगा?
- कहानी या किताब का कौन सा पात्र आपको सबसे अच्छा लगा?
- अगर आप सोचते हैं कि यह किताब आपके दूसरे साथी को भी पढ़नी चाहिए, तो क्यों?
बच्चों की तरफ से बहुत रोचक उत्तर आए जैसे- बच्चों ने लिखा कि दूसरे को यह किताब अपने व्यवहार में अच्छी आदतें डालने के लिए पढ़नी चाहिए। कहानी में सोनाली नामक पात्र की मित्र अच्छी लगी।
वर्तमान समय में टीटनवाड़ स्कूल में 234 बच्चों ने 1 महीने में 455 किताबें पढ़ी हैं। मैंने और प्रभारी शिक्षिका ने मिलकर 25 रीडिंग सत्र डिज़ाइन और आयोजित किए हैं। अब हम बच्चों के साथ-साथ शिक्षकों को भी पुस्तकालय से किताबें वितरण करते हैं।
अब वह बच्चों का ही नहीं, बल्कि अध्यापकों का भी पुस्तकालय है। इस तरह से बच्चों और अध्यापकों के साझा प्रयास से टीटनवाड़ स्कूल में एक सक्रिय पुस्तकालय का संचालन कराने में हमें सफलता मिली। आगामी योजना में अभिभावकों को पुस्तकालय में होने वाली गतिविधियों में शामिल करना और मुख्य ब्लॉक के शिक्षा अधिकारी को विज़िट कराकर ब्लॉक के अन्य विद्यालयों तक इस पहल को लेकर जाना हैं।