यह सुनने में अजीब है पर अगर कुछ न्यूज़ संगठनों की मानें तो यह सच है। एक ऐसी बात जो आज कई न्यूज़ संगठनों ने खबर के रूप में बताई है।
यह खबर एक ऐसे कानून की है जिसे उत्तर प्रदेश की जनता से अब तक छुपाया गया था लेकिन आज इसे योगी आदित्यनाथ की सरकार ने खत्म करने की घोषणा कर दी है। इस छिपे हुए कानून का नाम है उत्तर प्रदेश मंत्री वेतन, भत्ते एवं विविध कानून 1981।
क्या है यह कानून?
इस कानून के तहत उत्तर प्रदेश के मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों के इनकम टैक्स का भुगतान सरकारी खज़ाने से किया जाता है। अब तक 19 मुख्यमंत्री और 1000 मंत्रियों को पिछले 38 साल से इसका फायदा मिला है, जिनमें अब के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, मुलायम सिंह यादव, मायावती, कल्याण सिंह, अखिलेश यादव, राम प्रकाश गुप्ता, राजनाथ सिंह, श्रीपति मिश्र, वीर बहादुर सिंह और नारायण दत्त तिवारी के नाम भी शामिल हैं।
क्यों बना ये कानून?
1981 में यूपी राज्य में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह जी की सरकार थी (जो सबसे ईमानदार राजनेताओं में गिने जाते थे)। इनकी सरकार ने अपराध पर रोक थाम के लिए बहुत काम किया था।
प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार अपने वक्त की सबसे सफल सरकार मानी गई थी। उन्होंने यह तर्क दिया था कि उनके अधिकांश मंत्री आर्थिक तौर पर इतने काबिल नहीं थे कि आयकर भर पाएं। इसलिए यह कानून ज़रूरी है।
हालांकि अब 38 साल बाद ऐसे मंत्री और मुख्यमंत्री आए हैं जिनकी आय काफी ज़्यादा है इसलिए अब इस कानून का कोई मतलब नहीं रह गया है।
यूपी के कुछ पूर्व मुख्यमंत्रियो की संपत्ति
अगर इलेक्शन एफिडेविट यानी हलफनामे को देखें तो मायावती के पास 111 करोड़, अखिलेश यादव के पास 37 करोड़ और योगी आदित्यनाथ के पास 95 लाख रुपये की सम्पत्ति है।
इनके मंत्रियों और पूर्व मंत्रियों के पास कितनी संपत्ति है यह तो भी उनके हलफनामे से देखा जा सकता है। तो क्या यह गरीब हैं? क्या इन्हें आयकर अपनी जेब से नही भरना चाहिए?
आज काँग्रेस और बसपा के कई नेताओं ने इस कानून का विरोध करना शुरू कर दिया है और कई लोगों को इसकी जानकारी नहीं है। पर मेरा कहना साफ है कि यह ठीक नहीं है।
1981 में जो मंत्री थे उनकी तुलना में आज के मंत्री ज़्यादा सक्षम है। उस दौर के मंत्रियों का वेतन और आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी इसलिए यह कानून तब ठीक था लेकिन आज के नेताओं के साथ ऐसा नहीं है। यही सोच कर योगी आदित्यनाथ सरकार ने इस कानून को वापस ले लिया है और अगर किसी और राज्य में भी ऐसा है, तो वहां की सरकार को भी ऐसे कानूनों को वापस ले लेना चाहिए।