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“मध्यप्रदेश के जनजातीय समुदाय को मुख्यधारा से जोड़ने का मेरा सफर”

फोटो साभार- विवेक भास्कर

फोटो साभार- विवेक भास्कर

साल 2018 में मुझे यूएन वॉलिंटियर्स और मिनिस्ट्री ऑफ यूथ अफेयर्स एंड स्पोर्ट्स द्वारा आयोजित राष्ट्रीय युवा संसद में शामिल होने का अवसर प्राप्त हुआ था। गौरतलब है कि 18 और 19 सितंबर 2019 को राष्ट्रीय युवा संसद का एक बार फिर आयोजन हुआ, जिसमें शामिल होने वाले तमाम युवाओं को मेरी शुभकामनाएं।

मैं अपने जीवन के हर पहलू में शिक्षा के लिए हमेशा अपने पिता रविन्द्र भास्कर जी से प्रभावित रहा हूं। सामाजिक कार्यों से जुड़ना इसलिए भी अच्छा लगता है, क्योंकि इसके ज़रिये गरीबों के लिए कुछ कर पात हूं। इसलिए तो मैं एक न्याय प्रिय वकील बनना चाहता हूं।

शिक्षा के क्षेत्र में ज़मीनी स्तर पर बदलाव के लिए किए गए प्रयास

मैं और मेरे कुछ शिक्षाविद साथी, एक संगठन के ज़रिये गरीब और अशिक्षित वर्ग को इस आधुनिक युग के सामाजिक जीवन स्तर से जोड़ने के लिए जागरूक किया करते हैं। इस कार्यक्षेत्र में समय-समय पर सफलताएं भी हम लोगों ने अर्जित की हैं।

अर्ध घुमक्कड़ जनजाति समुदाय के लोग पिछले 40 वर्षों से भी अधिक समय से मध्यप्रदेश के निवाड़ी रेलवे स्टेशन के समीप, हर्षमऊ वार्ड क्र. 14 में निवास कर रहे हैं। 400 से भी अधिक परिवारों के मासूम बच्चे आज भी पूंजीवादी सामंतवादियों की बंदिशों से आज़ाद ना हो सके। इन लोगों को एक भी संवैधानिक अधिकार नहीं दिया गया है।

फोटो साभार- विवेक भास्कर

शिक्षा और स्वास्थ्य से लेकर न्याययिक मामलों तक ये उपेक्षित ही रहे हैं। इन असहाय लोगों ने जब अपनी आपबीती वरिष्ठ समाजसेवी और पत्रकार रविन्द्र भास्कर को सुनाई, तब हमारा संगठन और हम सभी इनके अधिकारों के लिए आंदोलित होकर प्रदेश के मुख्यमंत्री से लेकर महामहिम राज्यपाल एवं निर्वाचन आयोग के साथ-साथ बाल संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत उच्च न्यायिक अधिकारियों के समक्ष इनकी समस्याओं को रखा।

संघर्षों के दो माह बाद इस पहल में सफलता मिली और अर्ध घुमक्कड़ जनजाति समुदाय के लोगों के नाम निर्वाचन सूची में शामिल कर लिए गए, जिसके बाद अब उन्हें तमाम अधिकार धीरे-धीरे मिलने लगे हैं।

बदलाव के दौरान आने वाली समस्याएं

हमलोग मासूम बच्चों से लेकर बुज़ुर्गों को न्याय और शिक्षा के प्रति जागरुक करते हुए दो-तीन माह से अभी तक पढ़ा रहे हैं। बदलाव के दौरान हमलोगों ने जाना कि संवैधानिक प्रावधानों के तहत सड़क या प्रदेश में निवासरत मासूमों और बुज़ुर्गों के उत्थान के लिए सरकार प्रतिबद्ध रहती है। अपितु समाज में व्याप्त संकुचित और सामंती सोच के दबंग लोगों द्वारा कई जगहों पर ‘न्याय’ अभी भी प्रभावी ढंग से ज़मीनी स्तर पर लागू नहीं है।

अखबार में प्रकाशित खबर

इस लेख के ज़रिये मैं आपको मध्यप्रदेश एवं पूरे देश की शिक्षा व्यवस्था से पुनः अवगत करा देना चाहता हूं। मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा की बात तो हर कोई करते हैं मगर प्रभावी तौर पर कई शहरी और ग्रामीण इलाकों में यह लागू नहीं है।

प्रधानमंत्री जी से निवेदन है कि शिक्षा व्यवस्था पर विशेष ध्यान देने के साथ-साथ लापरवाही कर रही शैक्षणिक संस्थानों पर कठोर कार्रवाई करते हुए समान शिक्षा नीति विधेयक लाने की सराहनीय पहल अवश्य करें।

कार्यक्षेत्र के दौरान क्या सीखने को मिला

शिक्षा एक ऐसी पूंजी है, जिसे जितना अधिक व्यय किया जाता है, उसमें उतनी ही अधिक दक्षता हासिल होती है। यह समाज और राष्ट्र की तमाम परिस्थियों के बीच जीवन स्तर को संतुलित बनाकर अपने बच्चों में अपनी संस्कृति और सभ्यता निर्धारित करने का काम करती है। अतंत: मैंने यही जाना है कि शिक्षा और नैतिकता से बड़ा कोई धर्म नहीं है।

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