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मवेशियों के मल-मूत्र वाले डोभे से झारखंड के नमोडीड गाँव के लोग पीते हैं पानी

गंदे डोभे से पानी भरते लोग

गंदे डोभे से पानी भरते लोग

झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास इन दिनों सूबे की समाज कल्याण मंत्री लुईस मरांडी के साथ झारखंड के अलग-अलग इलाकों का भ्रमण कर रहे हैं। इस दौरान तमाम जनसभाओं में भाजपा की योजनाओं का बखान, विपक्ष पर हमला और आगामी विधानसभा चुनाव के लिए जनता से वोट की अपील की जा रही है।

गौरतलब है कि अभी हाल ही में मुख्यमंत्री रघुवर दास ने तमाम सुविधाओं से लैस बस के ज़रिये दुमका के आस-पास के इलाकों का भी दौरा किया। एक तरफ मुख्यमंत्री तमाम सरकारी योजनाओं का बखान कर रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर दुमका ज़िले के गोपीकांदर प्रखंड के खरौनी बाज़ार पंचायत अंतर्गत नमोडीह गाँव के लोग गंभीर जल समस्या से जूझ रहे हैं।

डोभे से पानी भरते ग्रामीण।

आलम यह है कि नमोडीह गाँव के तमाम लोगों को कई किलोमीटर पैदल चलकर पानी भरने के लिए छोटे से डोभे (ग्रामीणों द्वारा गड्डा कर पानी एकत्रित करने की जगह) तक पहुंचना पड़ता है। इस एकमात्र डोभे के भरोसे ना सिर्फ गाँव के पांच टोले की आबादी आश्रित है, बल्कि जानवर भी इसी डोभे से पानी पीते हैं।

गौरतलब है कि इसी कड़ी में गोपीकांदर प्रखंड के प्रोजेक्ट बालिका उच्च विद्यालय के प्रांगण में जन चौपाल के दौरान मुख्यमंत्री रघुवर दास ने बीडीओ से 20 अक्टूबर तक जल समस्या दूर करने की बात कही मगर सवाल यह है कि अब तक इस दिशा में कोई सकारात्मक पहल क्यों नहीं की गई?

क्या है पूरा मामला?

गोपीकांदर प्रखंड के 175 घरों वाले नमोडीह गाँव में करीब 875 लोग रहते हैं, जहां पूरे गाँव में महज़ पांच चापाकल हैं। इन पांचों चापाकल में से एक ही चापाकल ठीक है, इसके अलावा चारों चापाकल प्रयोग में नहीं हैं।

ग्रामीण जर्मन मुर्मू का कहना है कि पहाड़ी क्षेत्र होने की वजह से एकमात्र चापाकल में भी हमेशा पानी की समस्या बनी रहती है। यही वजह है कि महिलाएं, बच्चे और बुज़ुर्ग लोग लंबी दूरी तय करके गाँव के एकमात्र गंदे डोभे में पीने और अन्य ज़रूरतों के लिए पानी भरने आते हैं।

खराब चापाकल को ठीक कराने की मांग करते ग्रामीण।

उल्लेखनीय है कि गाँव के कमार टोला का चापाकल करीब चार वर्षो से खराब हालत में है। इस गाँव के लोग करीब दो किलोमीटर दूर दुन्दवा गाँव से पीने और अन्य कामों के लिए पानी लाते हैं।

दूसरे नंबर पर आता है आमेर जोला टोला, जहां एकमात्र चापाकल है जो ठीक तो है मगर पीने के लिए यहां भी पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता है।

तीसरे नंबर पर जोजो टोला है, जहां एकमात्र चापाकल पिछले दो वर्षों से खराब है। जोजो टोला के लोग लगभग एक किलोमीटर दूर पहाड़ी नाले से पीने के लिए पानी लाते हैं।

विरोध प्रदर्शन करती ग्रामीण महिलाएं

खासनमोडीह टोला में एक भी चापाकल नहीं है। यहां के ग्रामीण बड़ा पाथर गाँव से पीने का पानी लाते हैं। वहीं, पांचवे स्थान पर आता है गाँव का मांझी टोला। इस गाँव में एक चापाल लगभग एक वर्ष से और दूसरा करीब तीन महीने से खराब हालत में है। इस गाँव के ग्रामीण करीब डेढ़ किलोमीटर दूर पथरीले रास्ते के ज़रिये डोभे से पीने का पानी लाते हैं।

ग्रामीणों का कहना है कि इस गाँव में इंसानों के साथ-साथ जानवरों को भी पीने के पानी की काकी दिक्कत है। ग्रामीणों के अनुसार डोभे से मवेशी भी पानी पीते हैं और इसी में उनका मल-मूत्र भी जाता है, जिससे पानी और भी दूषित हो जाता है मगर मजबूरन ग्रामीणों को इस पानी का इस्तेमाल करना पड़ता है।

पहाड़ी जंगली रास्ते के ज़रिये डोभे से पानी भरकर घर जाती महिलाएं।

शौचालय जाना भी ग्रामीणों के लिए बड़ी चुनौती है। सुजित पाउरिया से बात करने के दौरान उन्होंने कहा कि मज़दूरी करने शहर जाने वालों को पानी के कारण कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

ग्रामीणों की मांग है कि हर टोले में दो-दो डीप बोरिंग की व्यवस्था की जाए और गाँव में जल मीनार यानि पानी टंकी का निर्माण कर ग्रामीणों को जल आपूर्ति की जाए।

डीसी ऑफिस में आवेदन दिया तो अधिकारियों ने रिसीविंग देने से मना कर दिया

20 सिंतबर को जल समस्या को लेकर ग्रामीण एवं सिदो कान्हू मुर्मू सामाजिक एकता मंच ने जब डीसी ऑफिस दुमका में आवेदन दिया, तब अधिकारियों ने उन्हें रिसीविंग देने से मना कर दिया। अधिकारियों ने कहा कि जनता दरबार में आवेदन का रिसीविंग नहीं मिलता है। उन्होंने कहा, “आपलोगों को चापाकल चाहिए या रिसीविंग?”

दुमका की डीसी राजेश्वरी राजी।

हमने 24 सितंबर को दोपहर 2 बजे के करीब जब दुमका की डीसी राजेश्वरी राजी को फोन किया तब उन्होंने कहा, “हमें अभी मामले की जानकारी नहीं है। जल विभाग या बीडीओ से इस संबंध में आप बात करिए। गोपीकांदर में कल जन संवाद के ज़रिये मैं वहां के लोगों से बात करने वाली हूं।”

वहीं, जब हमने गोपीकांदर के बीडीओ राजीव कुमार सिंह से बात की, तब उन्होंने कहा कि नमोडीह गाँव पहाड़ी क्षेत्र है, जिस कारण पानी की समस्या  बनी रहती है लेकिन हमने गाँव में डीप बोरिंग कराया है, जिससे लोगों को पानी मिल रहा है। बीडीओ राजीव कुमार सिंह का कहना है कि गाँव में पानी की समुचित व्यवस्था करा दी गई है।

आपको बता दे कि 12 फरवरी 2019 को स्थानीय अखबारों में इस खबर को प्रमुखता से छापने के बाद प्रधान टोला में एक चापाकल और सोलर टंकी लगाया गया, जो आज की तारीख में पूरी तरह से फेल है। ग्राम प्रधान और मुखिया को बिना जानकारी दिए विभान द्वारा सोलर टंकी को वापस ले जाया गया।

पहाड़ी रास्ते के ज़रिये डोभे से पानी भरने जाते ग्रामीण।

ग्रामीणों का आरोप है कि जब गाँव में चापाकल लगाया जा रहा था, उसमें सड़े हुए पाइप का इस्तेमाल किया गया जिससे और भी परेशानियां हुईं। ग्रामीणों को पानी भरने के लिए कई किलोमीटर पैदल चलकर जाना पड़ता है जिस कारण कई दफा वे बीमार भी हो जाते हैं। बच्चों की पढ़ाई पर भी इसका असर पड़ रहा  है।

खरौनी बाज़ार पंचायत के मुखिया दुर्गा देहरी से बातचीत के दौरान वह कहते हैं, “स्थिति काफी दयनीय है, क्योंकि पूरे ग्राम के लोग उसी एक गंदे डोभे पर निर्भर हैं जहां से जानवर भी पानी पीते हैं। पूरे गाँव में केवल एक ही चापाकल है जिससे बहुत कम पानी निकलता है। उन्होंने दुमका डीसी ऑफिस के अधिकारियों की निंदा करते हुए कहा कि जब हमने डीसी ऑफिस दुमका में गाँव की समस्या की शिकायत दर्ज़ कराने के बाद रिसीविंग मांगा, तब उन्होंने कहा कि आपको रिसीविंग चाहिए या चापाकल?”

डीसी के आगमन को लेकर बीडीओ ऑफिस से निकाली गई चिट्ठी।

वहीं, ग्रामीण देवनारायण पुजहर कहते हैं, “गाँव में पानी की दिक्कत के कारण बहुत सारी समस्याएं होती हैं। कई किलोमीटर पैदल चलकर हमें पानी लेने के लिए जाना पड़ता है, जिसके कारण हमें काम पर जाने में भी काफी देर हो जाती है।

वह कहते हैं, “हमारी समस्याएं कोई नहीं सुनता है। आज 25 सितंबर को दुमका की डीसी हमारे पंचायत में आने वाली हैं मगर हमें लगता नहीं है कि कोई रास्ता निकलेगा, क्योंकि इससे पहले भी हमलोगों ने वोट बहिष्कार किया है जिससे कुछ हुआ नहीं।”

गंदे डोभे से पानी भरते ग्रामीण

बहरहाल, जल संकट को लेकर गोपीकांदर प्रखंड के नमोडीह गाँव की तमाम समस्याएं इस व्यवस्था पर कई सवाल खड़े करती है। एक तरफ ग्रामीणों को लंबी दूरी तय कर गंदे डोभे से पानी लेने जाना पड़ रहा है और सरकारी बाबुओं द्वारा यह कहा जा रहा है कि गाँव में पानी की समुचित व्यवस्था है।

मुख्यमंत्री रघुवर दास ने अभी हाल ही में कहा है कि 14वें वित्त आयोग की राशि के ज़रिये सौर ऊर्जा से गाँव में जलमीनार बन रहे हैं, जिससे पेयजल की समस्या दूर होगी मगर सवाल यह है कि तमाम योजनाओं के खोखले दावों और अधिकारियों की लापरवाही के बीच गरीब ग्रामीण अपनी समस्या लेकर कहां जाएं?

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