आज अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस है। लोकतंत्र लोगों की आशाओं का प्रतीक है। लोकतंत्र में लोगों के पास यह ताकत होती है कि लोग अपने प्रतिनिधि को खुद चुने और समय आने पर सत्ता से बेदखल भी करें। आपको पहले उदारवादी (लिबरल) होना पड़ेगा, तभी आप लोकतंत्र को अच्छी तरह से समझ पाएंगे और लोकतंत्र की रक्षा कर पाएंगे। दूसरे विश्वयुद्ध के पश्चात दुनियाभर में लोकतंत्र का प्रचार और प्रसार हुआ।
अभिव्यक्ति की आज़ादी और धर्मनिरपेक्षता लोकतंत्र का अटूट हिस्सा है
अभिव्यक्ति की आज़ादी में मीडिया की स्वतंत्रता भी शामिल है। स्वतंत्र मीडिया के बिना आप लोकतंत्र की कल्पना नहीं कर सकते हैं। अच्छी तरह से चुनाव हो जाना लोकतंत्र नहीं होता है, लोकतंत्र इससे कहीं ज़्यादा है। पारदर्शी चुनाव होना सिर्फ उस प्रक्रिया का एक हिस्सा है।
दुनियाभर में चीन, रूस, तुर्किस्तान जैसे कई उदाहरण हैं, जहां पर लोकतंत्र है लेकिन लोग किसी को सत्ता से बेदखल नहीं कर सकते हैं, जिसे लोकतंत्र के आड़ में तानाशाही कहा जा सकता है। मीडिया की हालत इन देशों में काफी खराब है।
भारत भी मीडिया फ्रीडम इंडेक्स में काफी निचले पायदान पर है। अमेरिका में व्हाइट हाउस और सीएनएन विवाद तो आपको याद ही होगा, जहां मीडिया पर दबाव बनाने की कोशिश हुई थी। भारत में भी इस कड़ी में बहुत सी घटनाओं को देखा जा सकता है। अगर किसी देश की सरकार मीडिया को दबा रखी है, तब समझ जाना चाहिए सरकार प्रतिगामी विचारों को बढ़ावा दे रही है।
दबाई जा रही है बुद्धिजीवी वर्ग की आवाज़
बुद्धिजीवी वर्ग को बदनाम करना भी उनकी खासियत है। सबसे ज़्यादा सवाल सरकार से बुद्धिजीवी और पत्रकार ही करते हैं अगर उनके बारे में लोगों में असमंजस की स्थिति पैदा हो जाए यह अच्छी बात नहीं है। ऐसी स्थिति में लोगों के पास सही सूचना कैसे पहुंचेगी? सूचनाविहीन लोकतंत्र क्या आपको पसंद है?
पिछले कुछ सालों में दुनियाभर में ऐसी सरकारों का चलन बढ़ा है, जो देश के अल्पसंख्यक समुदाय, शरणार्थी और विपक्ष को देश के लिए खतरा बताते हैं। मीडिया पर पूरी तरह से पाबंदी लगा देते हैं। विपक्ष को थोड़ा-थोड़ा बचाकर रखते हैं, ताकि लोकतंत्र बने रहने का नाटक किया जाए।
प्रतिगामी सरकार के तौर पर उन्हें देखा जा सकता है। धर्म का इस्तेमाल भी उनके द्वारा राजनीति में किया जाता है। किसी भी लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के लिए यह खतरा है।
जब पूंजीवाद लोकतंत्र पर हावी हो जाए, उस स्थिति को कैपिटाक्रॉसी कहते हैं। पूंजीवादी हर चीज़ में दखल देने लगते हैं, अन्यथा इतने ताकतवर बन जाते हैं कि सरकारी फैसलों को प्रभावित किया जा सके। कल्याणकारी राज्य (वेलफेयर स्टेट) नाम के लिए रह जाते हैं, जबकि लोकतंत्र में जनहित ही सर्वोपरि होना चाहिए।
इससे पहले भी लोकतंत्र को कमज़ोर करने की कोशिश दुनियाभर में हुई है। लोगों ने इस बात को समझा है। तानाशाही सरकारों को सत्ता से बेदखल किया है। लोगों की हिस्सेदारी से लोकतंत्र फलता-फूलता है। लोकतंत्र को लोगों के सहयोग की ज़रूरत है।
पाठक होते हुए यह आपको समझना चाहिए आपके आस-पास क्या हो रहा है? मीडिया स्वतंत्र है, सरकार की आलोचना कर रहा है? या फिर बहुसंख्यक मीडियाकर्मी डरे हुए हैं? विरोधियों की आवाज़ देश में बुलंद है, या फिर जेल में बंद है?