नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित मशहूर बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी जी अपनी व्यस्ततम दिनचर्या में से अपने जन्म-स्थान विदिशा के लिए साल में एक-दो बार समय निकाल ही लेते हैं। उन्हें वहां सभी प्यार से दद्दा कहते हैं। इस बार 13 जनवरी को उनके विदिशा प्रवास के दौरान उन्होंने एक बहुत ही मार्मिक घटना सुनी।
हुआ यूं कि सत्यार्थी जी, जब अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों में व्यस्त थे, तो उनको अचानक अपने एक पुराने साथी के परिवार के साथ हुई एक दुखद घटना के बारे में जानकारी मिली। यह घटना उस व्यक्ति से जुड़ी हुई है, जो किशोरावस्था में सत्यार्थी जी के बाल काटा करते थे, जिनका नाम मिश्री लाल सेन है तथा जिनकी उम्र लगभग 70 साल है।
मिश्री लाल से मिलने पहुंचे कैलाश सत्यार्थी
विदिशा, मिश्री लाल सेन की ससुराल है। यानि विदिशा के वह दामाद हैं। उनकी पत्नी गीता देवी सेन, विदिशा की बेटी हैं। वह शादी-विवाह आदि में खवासन का काम करतीं हैं। विदिशा में खवासन शादी-ब्याह में काम करने वाली को नाइन कहते हैं।
मिश्री लाल दम्पत्ति पर एक महीना पहले उस वक्त विपत्तियों का पहाड़ टूटा, जब उनके इकलौते जवान बेटे राकेश की अचानक मृत्यु हो गई। सत्यार्थी जी को जब मिश्री लाल की इस दुखभरी दास्तान के बारे में पता चला, तब वह अपने सारे तयशुदा कार्यक्रमों को निरस्त कर मिश्री लाल से मिलने उनके घर पहुंच जाते हैं।
खपरैल के एक कमरे वाले घर में रहने वाले मिश्री लाल दम्पत्ति की दशा देखकर व उनकी एकमात्र संतान की असामयिक मृत्यु की व्यथा सुनकर सत्यार्थी जी भाव-विह्वल होते हैं और उनकी आंखों से आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ता है।
आज भी सत्यार्थी जी मिश्री लाल के पैर छूते हैं। बचपन में जब सत्यार्थी जी अपने बालों की कटिंग कराते थे, तो मिश्री लाल सेन को एक रुपया देते थे व उनके पैर छूते थे। गीता जी को सत्यार्थी जी सम्मान से गीता बाई कहकर बुलाते हैं। वह लोगों के दु:ख-दर्द व खुशी के मौकों पर हमेशा साथ रहतीं हैं।
20 साल पहले हुई थी मिश्री लाल के बेटे की शादी
मिश्री लाल सेन व गीता बाई के बेटे राकेश की मृत्यु, हार्ट अटैक की वजह से हुई। वैसे तो राकेश शादीशुदा थे लेकिन उनका दाम्पत्य जीवन एक साल से ज़्यादा नहीं टिक पाया। राकेश की शादी लगभग 20 साल पहले हुई थी और शादी के एक साल बाद उनका एक बेटा भी हुआ लेकिन बेटे के पैदा होते ही पत्नी मायके चली गई और तब से आजतक वापस नहीं लौटी।
इससे मिश्री लाल दोनों प्राणी बहुत ही व्यथित और दुखी रहने लगे और उनके दु:ख बढ़ते ही चले गए। मिश्री लाल अब बूढ़े हो चले हैं तथा उनकी पत्नी गीता बाई के शरीर में अब उतनी ताकत नहीं रह गई है कि वह कुछ मेहनत-मज़दूरी कर पाएं। उनके पास आमदनी का कोई ज़रिया भी नहीं है।
सत्यार्थी जी को जब इस बात का पता चला, तब वह अपने आपको नहीं रोक पाए। अपने एक कार्यक्रम को बीच में छोड़कर मिश्री लाल व गीताबाई की कुटिया की तरफ रवाना हो लिए। पुलिस व तमाम प्रोटोकॉल के साथ जब सत्यार्थी जी गाड़ियों के काफिले के साथ मिश्री लाल के खपरैल के जीर्ण-शीर्ण घर के सामने रुके, तो सत्यार्थी जी मिश्री लाल की दशा देखकर बहुत दुखी हुए और अपने आंसू नहीं रोक पाए।
जिस झोंपड़ीनुमा घर मे सत्यार्थी जी ने प्रवेश किया, उसकी छत की खपरैल में कई जगह छेद हो गए थे और झोपड़ी की छत इस कदर बेकार हो चुकी थी कि उसको लकड़ी के लट्ठों के सहारे टिकाया हुआ था। झोंपड़ी के एक कोने में रसोई थी, जिसमें कुछ ज़रूरी बर्तन और मसालों को रखने के लिए कुछ पुराने डिब्बे आदि पड़े हुए थे।
इसी प्रकार दूसरे कोने में एक पुराने कपड़े का एक पर्दा पड़ा हुआ था, जिसे बाथरूम के रूप में प्रयोग किया जाता था और जिसके लिए बाहर के सरकारी नलों से गीता बाई पानी लाती थीं। उसी झोंपड़ी के बीचों-बीच एक लकड़ी का तख्त पड़ा हुआ था, जिसपर एक बिस्तर व पुराने कपड़े रखे हुए थे।
उसी एक रूम के घर में दीवार के एक सिरे से दूसरे सिरे तक एक रस्सी बंधी थी, जिसके ऊपर कुछ पहनने के गरम व ठंडे कपड़े टंगे थे। तख्त के बराबर में ही एक छोटी सी चारपाई बिछी थी, जिसपर मिश्री लाल सेन बैठे थे। गीता बाई सेन कोने में बनी रसोई में थीं। दोनों पति-पत्नी अपने बेटे की यादों में खोए थे।
माँ-बाप का एकमात्र सहारा था राकेश
अभी एक महीना पहले की ही तो बात है, जब गीता बाई बीमार हुई थीं और उनका बेटा राकेश उनको भोपाल के सरकारी अस्पताल से दिखाकर लाया था। डॉक्टर ने उनको बाईपास सर्जरी करने की सलाह दी थी। राकेश इस जुगाड़ में लगा हुआ था कि कैसे भी पैसों की व्यवस्था हो जाए, तो माँ की बाईपास सर्जरी हो जाए लेकिन नियति को कुछ और ही मंज़ूर था।
मौत तो राकेश का इंतज़ार कर रही थी और एक दिन शाम को जब राकेश घर लौटा तो घर के दरवाज़े पर ही वह गिर पड़ा फिर कभी नहीं उठ सका। माँ-बाप का एकमात्र सहारा था राकेश। उनकी तो जैसे दुनिया ही लुट गई थी।
सत्यार्थी जी को देखकर गीता बाई आंसुओं के अपने सैलाब को नहीं रोक पा रही थीं। गीता बाई का करुण क्रंदन कठोर से कठोर पत्थर को भी पिघला रहा था। मिश्री लाल व गीता बाई दोनों, सत्यार्थी जी से लिपट-लिपट कर विलाप कर रहे थे और बेटे की स्मृतियों को सत्यार्थी जी को संकटमोचक समझकर रो-रोकर सुना रहे थे। सत्यार्थी जी की धर्मपत्नी सुमेधा जी दोनों को संभालने में लगी हुई थीं।
विश्व के सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी जी समाज के अंतिम व्यक्तियों में से एक की कुटिया में उनका दु:ख-दर्द बांटने आए हुए थे। वेदना व दु:ख के कारण वह वहीं पड़े उस तख्त पर बैठ गए तथा अपने पुराने स्नेही की दशा देखकर अपने आंसू नहीं रोक पाए और उनकी आंखों से अश्रुधारा बहने लगी।
सत्यार्थी जी, मिश्री लाल और उनकी पत्नी की दशा से इतने दुखी व करुणा से व्यथित हो चले थे कि उनके मुख से शब्द नहीं निकल पा रहे थे। उनका गला रुंध गया था। गीता बाई व मिश्री लाल को ऐसा लग रहा था जैसे कि उनके द्वार पर, उनका दु:ख हरने के लिए स्वयं संकटमोचक उपस्थित हैं मगर हां, यह भी सत्य है कि अब उनकी आंखों का तारा राकेश कभी वापस नहीं लौटेगा।