मुझे याद है वह 30 मार्च का दिन, जब भारत में TV9 भारतवर्ष नामक हिंदी चैनल लॉन्च हुआ था। मैं बड़ा खुश था क्योंकि TV9 भारतवर्ष में अजीत अंजुम कन्सल्टिंग एडिटर थे और मुझे पता था कि वे अपने चिर-परिचित अंदाज़ में निष्पक्षता के साथ पत्रकारिता करेंगे और हुआ भी वही।
रविशंकर प्रसाद, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, मुनमुन सेन जैसे नेताओं को बीच इंटरव्यू में भागना पड़ा क्योंकि वे पत्रकार अजीत के सवालों को सहन नहीं कर पाए। शाम 7 बजे अजीत अंजुम ‘राष्ट्रीय बहस’ नामक शो के साथ आते थे और भारत के उन तमाम मुद्दों को उठाते थे जो जनता से सरोकार रखते हों।
- अजीत अंजुम की बेबाक पत्रकारिता
आते के साथ ही वे कहते कि ‘नमस्कार आप देख रहे हैं TV9 भारतवर्ष और मैं अजीत अंजुम’। बस फिर कान तन जाते थे कि आज अजीत साहब किस मुद्दे के साथ आए हैं। वे बेबाकी से मुद्दों पर अपनी राय रखते और निष्पक्षता के तहत सवाल करते।
उनका वह बिहारी अंदाज़ बेहद उम्दा था और भाषा का लहज़ा भी बिहार से मिलता था जो उनकी बातों में साफ नज़र आता था। वे हाथ में अकसर कलम रखते थे और दाहिने हाथ को झटकते हुए सवाल करते थे।
फिर कुछ ऐसा हुआ जिसकी मुझे उम्मीद तक नहीं थी, कल रात को अचानक मोबाइल में नोटिफिकेशन की घंटी बजी तो देखा कि अजीत ने कुछ ट्वीट किया है। ट्वीट खोलकर देखा तो उसमें लिखा था
अब मैं आज़ाद हूं, तमाम बंदिशों और पाबन्दियों से, मेरा ताव यह सब झलने की इजाज़त नहीं दे रहा था।
इसके आधे घण्टे बाद फिर एक ट्वीट किया
आज मैंने TV9भारतवर्ष से नाता तोड़ दिया
और मैंने मन में कहा कि TV9 भारतवर्ष ने जनता से।
क्यों छोड़ा अजीत अंजुम ने TV9 भारतवर्ष
जब मैंने पता लगाया कि आखिर अजीत ने TV9 भारतवर्ष को क्यों छोड़ दिया तो पता चला कि चैनल वाले अजीत का ताव नहीं झेल पाए।
अजीत से बिना पूछे उनका शो एक घण्टे से आधे घण्टे का कर दिया गया और फिर अजीत अंजुम सात दिन की छुट्टी पर चले गए और इस्तीफा दे दिया। आप चैनल छोड़ के भले ही चले गए लेकिन किसी की इतनी बिसात नहीं कि वे आपको हमारे दिलों से निकाल सके।
अब अजीत की आवाज़ के लिए तरसना पड़ेगा। लग रहा है कि वो टीवी चैनल्स पर नहीं आने वाले। अभिसार और पुण्य प्रसून वाजपयी की तरह प्राइवेट यू ट्यूब चैनल से पत्रकारिता करेंगे लेकिन अजीत अंजुम साहब से मेरा निवेदन है कि वे कुछ भी करें लेकिन टीवी पत्रकारिता को मरने ना दें।
मैं उनसे निवेदन करता हूं कि किसी भी चैनल से जुड़ें लेकिन टीवी पत्रकारिता में बने रहिए क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति यू ट्यूब से नहीं जुड़ सकता और वे टीवी पर उस चेहरे को देखने का आदि हो चुका है जो सच के साथ आता था, सच को साथ लाता था।
पत्रकारिता का पतन
अब पत्रकारिता का भारत में एक पतन सा हो गया है क्योंकि अर्णब गोस्वामी, सुधीर चौधरी, रोहित सरदाना, रजत शर्मा, अमिश देवगन और दीपक चौरसिया जैसे पत्रकार फर्स्ट फ्रंट पत्रकारिता कर रहे हैं अर्थात सत्ताधारी सरकार के समर्थन में पत्रकारिता कर रहे हैं जबकि रवीश कुमार, पुण्य प्रसून वाजपयी और अभिसार शर्मा जैसे पत्रकार सेकंड फ्रंट की पत्रकारिता करते हैं अर्थात सरकार किसी की भी हो, वे सिर्फ नकारात्मक पहलू उजागर करते हैं।
वहीं यदि अजीत अंजुम की बात की जाए तो वो थर्ड फ्रंट के हिंदी मीडिया एकमात्र पत्रकार बचे थे जो दोनों पक्षों को देखते थे, समझते थे और दोनों से सवाल करते थे लेकिन भारत की ये आखिरी निष्पक्ष आवाज़ भी अब व्यवस्था के कारण दब गई और हम किसी के चमचे या भक्त बने बैठे हैं और तमाशा देख रहे हैं। इसका कारण हमारी भगवान पैदा करने की आदत और उसकी भक्ति करना है।
अजीत अंजुम साहब आप अपने ताव को बरकरार रखिएगा और फिर से गुज़ारिश है कि टीवी पत्रकारिता को ज़िंदा रखिएगा। अब जनता से अनुरोध है कि हाथ में मंजीरा लीजिए और ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाईए “जय लोकतंत्र”