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“क्यों मैं मानती हूं कि लड़के-लड़कियों की समान उम्र में शादी हो”

प्रतीकात्मक तस्वीर

प्रतीकात्मक तस्वीर

भारत में लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल है, जबकि लड़कों के लिए इसकी सीमा 21 वर्ष है। इसी उम्र के फासले को मिटाने के लिए भाजपा नेता एवं वकील अश्विनी उपाध्याय ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें अश्विनी उपाध्याय का कहना है,

  • पुरुषों और महिलाओं के लिए विवाह की अलग-अलग न्यूनतम उम्र लैंगिक समानता, न्याय और महिलाओं की गरिमा के खिलाफ है।
  • याचिका में तर्क दिया गया है कि यह याचिका महिलाओं के खिलाफ भेदभाव के स्पष्ट एवं जारी रूप को चुनौती देती है।
  • यह भी बताया गया है कि यह भेदभाव पितृसत्तात्मक रूढ़ियों पर आधारित है, जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।
  • याचिका में ज़िक्र है कि यह महिलाओं के खिलाफ असामानता को बढ़ाता है तथा वैश्विक चलन के पूरी तरह खिलाफ जाता है।
  • उम्र के इस अंतर के भेदभाव को संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 का उल्लंघन भी बताया गया है।

क्या शादी में अंतर रुढ़िवादी मानसिकता को बढ़ाता है?

गौरतलब है कि अनुच्छेद 14 समानता का अधिकार और अनुच्छेद 21 सम्मान के साथ जीवन जीने का अधिकार देता है। उपाध्याय की याचिका पर कोर्ट 30 अक्टूबर को फिर सुनवाई करेगा। आपको बता दें कि शादी की उम्र भारत में पहले भी बहस का मुद्दा रही है।

साल 2018 में लॉ कमीशन ने भी तर्क दिया था कि शादी की उम्र में अंतर रखना पति के उम्र में बड़े और पत्नी के छोटे होने के रूढ़िवाद को बढ़ावा देता है, इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।

हमारे देश में शादी की उम्र को लेकर इतिहास क्या कहता है?

  • भारत में शादी की उम्र को लेकर पहले धर्म के आधार पर कानून बनाए गए थे। जैसे- इंडियन क्रिश्चियन मैरिज ऐक्ट 1872 के तहत ईसाइयों के लिए लड़के की शादी की न्यूनतम उम्र 16 साल और लड़की की न्यूनतम उम्र 13 साल तय की गई थी। 
  • वहीं, 1927 में ‘एज ऑफ कंसेंट बिल’ लाया गया, जिसमें 12 साल से कम उम्र की लड़की की शादी को प्रतिबंधित कर दिया गया था।
  • 1929 में पहली बार शादी की उम्र को लेकर कानून बनाया गया था। इस कानून को बाल विवाह निरोधक कानून 1929 और शारदा एक्ट के नाम से भी जाना जाता है। इसके मुताबिक शादी के लिए लड़का और लड़की की न्यूनतम आयु 18 और 16 साल तय की गई फिर कुछ सालों बाद इस कानून में संशोधन हुआ जिसके बाद लड़कों के लिए शादी की न्‍यूनतम कानूनी उम्र 21 साल और लड़कियों के लिए 18 साल हो गई मगर साथ ही कम उम्र की शादियां रुकी नहीं।
  • साल 2006 में इसकी जगह बाल विवाह रोकने का नया कानून आया और इस कानून ने बाल विवाह को संज्ञेय जुर्म बनाया ताकि बाल विवाह को रोका जा सके।

आपकी जानकारी के लिए बताते चले कि आज भी बाल विवाह की औसत दर देश में 11.9% है। नवभारत टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, बाल विवाह को लेकर शहरों की स्थिति गाँवों से बेहतर है। आज भी शहरों में बाल विवाह का औसत 6.9% वही गाँवों में 14.1% है।

उम्र के फासलों के पीछे दिए जाते हैं ऐसे तर्क

भारत में लड़के और लड़की के बीच उम्र का फासला रखने के पीछे कुछ बातें बताए जाते हैं। जैसे- 

  • लोगों का मानना है कि लड़की से लड़के की उम्र ज़्यादा होने के फायदे हैं।
  • उम्रदराज़ पुरुष के साथ शादी करने से यह फायदा होता है कि लड़की को फाइनेंशियल स्ट्रगल नहीं करना पड़ता है। उसका करियर सेट है और उसे नौकरी के चक्कर में इधर-उधर भागना नहीं है। ऐसे में लड़की आराम से अपनी लाइफ बिता सकती है।
  • करियर सेट होने की वजह से ऐसे लोग अपनी ज़िम्मेदारियों को भी सही तरीके से निभा पाते हैं और उन पर जॉब चले जाने या फिर खुद को साबित करने का प्रेशर नहीं होता है, जिसकी वजह से वह अपने घर-परिवार की ज़िम्मेदारियों को भी पूरा कर पाते हैं।
  • उम्रदराज़ पार्टनर्स आपको अपने अनुसार ढालने में कम भरोसा करते हैं। ऐसे में आपके पास ऐसी ज़िंदगी जीने का मौका होता है, जिसे आप अपने तरीके से जी सकते हैं। वहीं, कम उम्र के पार्टनर हर रोज़ पत्‍नी को अपनी पसंद की फेहरिस्त थमाते हैं।
  • बड़े उम्र के लोग इमोशनली और प्रोफेशनली दोनों ही तरीके से ज़्यादा स्टेबल और स्ट्रांग होते हैं, जबकि लड़कियां ज़्यादा इमोशनल होती हैं तो उन्हें संभालने के लिए लड़कों में मैच्योरिटी होना बहुत ज़रूरी है।
  • अगर दोनों की उम्र समान रही तो उनकी सोच कभी नहीं मिलेगी, जिसकी वजह से उनके बीच कलह होने की संभावनाएं भी बढ़ जाती हैं। इसलिए बड़े उम्र के लोगों से शादी करना चाहिए ऐसा माना जाता है।

शादी बराबर वालों में हो

मेरे हिसाब से शादी बराबर उम्र के लोगों में होनी चाहिए, क्योंकि दोनों की शादी की न्यूनतम उम्र बराबर होने से फायदे हैं। जैसे-

  • अगर दोनों समान उम्र के हैं, तो एक-दूसरे की भावनाओं को समझ पाएंगे।
  • अगर दोनों एक उम्र के हैं, तो अपनी बातें एक दूसरे को आसानी से शेयर कर पाएंगे। 
  • दोनों की पढ़ाई भी साथ में ही कम्पलीट होगी। ऐसे में लड़की की पढ़ाई भी नहीं छुटेगी।
  • समाज में बनी हुई जो धारणा है कि लड़का कमा रहा है तो लड़की को कमाने की कोई आवश्यकता नहीं है, वह भी खत्म हो जाएगी क्योंकि दोनों एक दूसरे के मेहनत को समझेंगे।
  • सबसे महत्वपूर्ण बात कि एक उम्र होने की वजह से दोनों में प्यार रहेगा और साथ ही दोनों की सोच लगभग एक जैसी होगी, क्योंकि दोनों एक उम्र के हैं।
  • दोनों एक उम्र के हैं तो वहां बराबरी का रिश्ता होगा ना कि बड़े छोटे का इसलिए वहां ज़बरदस्ती इज्ज़त देने के दबाव में आकर बात मानने की समस्या नहीं होगी।

मैं मानती हूं कि शादी एक उम्र वालों में ही होनी चाहिए ना कि उम्रदराज़ पार्टनर्स से ताकि समाज की वह धारणा खत्म हो जाए कि पति परमेश्वर है।

यदि लोगों की शादियां समान उम्र में हो, तो ऐसी बहुत सी समस्याएं खत्म हो जाएंगी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि लड़की आत्मनिर्भर हो जाएगी, क्योंकि समान उम्र ना होने की वजह से लड़की की पढ़ाई छूट जाती थी और वह पति पर निर्भर हो जाती थी। 

मैं खुद एक युवा होने के नाते मानती हूं और चाहती भी हूं कि लड़का-लड़की की शादी की न्यूनतम उम्र समान करने के लिए याचिका पर वह सही फैसला ले ताकि समाज को एक नया नज़रिया मिल सके और हम लड़कियों को शादी के बाद बराबर का दर्ज़ा भी मिले।

विभिन्न देशों में शादी के प्रावधान

  • चीन में लड़कियों की शादी की उम्र 20 साल है, जबकि लड़कों की 22 साल है।
  • फ्रांस में लड़के और लड़कियों की उम्र 18 होने के साथ ही शादी करने की अनुमति मिल जाती है।
  • अफगानिस्तान में शादी के लिए महिलाओं की न्यूनतम उम्र 16 साल है, जबकि पुरुषों की न्यूनतम आयु 18 साल तय की गई है। 
  • भारत के पड़ोसी देश भूटान में लड़के और लड़कियों दोनों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल तय की गई है।
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