15 सितंबर को पूरी दुनिया में ‘डेमोक्रेसी डे‘ यानि लोकतंत्र दिवस मनाया गया। मेरे आदर्श और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने लोकतंत्र की अवधारणा को जनता की, जनता के द्वारा और जनता के लिए सरकार के रूप में परिभाषित किया था।
मेरे दूसरे आदर्श महात्मा गाँधी खुद लोकतंत्र की वकालत करते थे। उन्होंने कहा था कि मैं लोकतंत्र को ऐसी चीज़ के रूप में समझता हूं, जो कमज़ोर को भी उतना ही मज़बूत मौका देती है। इन बातों के ज़रिये हम समझ पाते हैं कि राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी और अमेरिकी राष्ट्रपति इतने महान विचार रखते थे।
यहां सिर्फ एक देश की आज़ादी की बात नहीं हो रही है, बल्कि लोकतंत्र का जन्म हो रहा है और इसका श्रेय जॉर्ज वाशिंगटन और बाकी अमेरिकी स्वतंत्रता सिपाहियों को मिलता है, जिन्हें डेमोक्रेट कहते हैं। लोकतंत्र आपको अपने चहेते जन-प्रतिनिधि को चुनने का मौका देता है इसलिए जबसे लोकतंत्र की शुरुआत हुई है, यह सिलसिला जारी है।
सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के मायने
जब 1947-50 तक भारत की संविधान सभा, देश का संविधान बना रही थी तब डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा चलाई जा रही कांस्टीट्यूशन ड्राफ्टिंग कमेटी ने अपनी दूसरी ही मीटिंग में यह तय किया था कि देश में सबको वोट देने का अधिकार होगा और यह इसलिए बड़ा था, क्योंकि कुछ लोकतांत्रिक राज्यों में रंग, लिंग, जाति और धर्म की वजह से लोगों को मताधिकार प्राप्त नहीं था।
भारत अकेला देश था, जिसने सबको मताधिकार का अधिकार दिया। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में सबसे पहले ये तीन शब्द, Sovereign (खुदमुख्तार), Republic (गणराज्य) और Democratic (लोकतांत्रिक) लिखा गया था। बाद में Secular (पंथनिरपेक्ष) और Socialist (समाजवाद) भी इसमें जोड़े गए।
1857 से 1947 के बीच काँग्रेस, हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन और फॉरवर्ड ब्लॉक जैसी पार्टियां लोकतंत्र और भारत की आज़ादी दोनों की वकालत करती थी। डोमीनियन स्टेट्स से पूर्ण स्वराज की तरफ बढ़ खुद नेताजी बोस ने नाज़ियों के सामने भारत देश में लोकतंत्र की वकालत की थी फिर 15 अगस्त 1947 में भारत को डोमीनियन लोकतंत्र मिला और 26 जनवरी 1950 को पूर्ण लोकतंत्र बना।
लोकतांत्रिक आंदोलन
31 मई 1910 की तारीख को कुछ लोग दक्षिण अफ्रीका में ब्रिटिश राज के खात्मे की तारीख मानते हैं मगर यह तो गोरे राजा और अश्वेत गुलाम वाली मानसिकता की शुरुआत थी। इस दिन देश तो आज़ाद हो गया मगर सत्ता सिर्फ गोरे रंग वालों को दी गई और साथ में कई विशेषाधिकार भी दिए गए।
यहां तक कि अश्वेतों को चुनावों में मताधिकार भी प्राप्त नहीं था। इसके विरोध में अफ्रीकन नैशनल काँग्रेस नाम से एक नई पार्टी बनी, जिसने पूर्ण लोकतंत्र की वकालत की। दक्षिण अफ्रीका में 84 साल की लंबी लड़ाई के बाद अप्रैल 1994 में पहली बार लोकतांत्रिक सरकार बनी, जिसे वहां के अश्वेत लोगों ने भी चुना था। जिसका नेतृत्व महान और उदारवादी नेता नेल्सन मंडेला ने किया।
लोकतंत्र के प्रकार
दुनिया में तीन किस्म के लोकतंत्र हैं, एक वह जो राष्ट्रपति द्वारा चलता है, जो अमेरिका में है। वहां हर 4 साल बाद जनता 2-4 प्रतिभागियों में से एक को चुनती है। हालांकि जो सीनेटर होते हैं, उनके चुनाव 6 साल में होते हैं। वहीं, संसदीय लोकतंत्र जैसे- भारत, ब्रिटेन, पाकिस्तान और बांग्लादेश में हर 5 साल बाद एक चुनाव होता है।
इंग्लैंड, पुर्तगाल, स्पेन और जापान में एक राजा या रानी का चयन होता है, जिनके नीचे एक प्रधानमंत्री होता है जिसका चयन जनता द्वारा किया जाता है। प्रधानमंत्री द्वारा ही सारे फैसले लिए जाते हैं, राजा या रानी सिर्फ दस्तखत करते हैं।
भारत और अमेरिका के लोकतंत्र में एक फर्क और है, वो यह कि भारत में प्रधानमंत्री सांसद के पद पर भी होते हैं मगर अमेरिका में ऐसा नहीं है। वहां राष्ट्रपति बनने वाला व्यक्ति सांसद नहीं होता है।
मिसाल के तौर पर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा 2005 में अमेरिका के इलेनॉइस राज्य से ऊपर सदन के सांसद बने थे मगर जब 2008 में वह राष्ट्रपति बनें, तब उन्हें उस पद से इस्तीफा देना पड़ा। यही किस्सा जॉन कैनेडी के साथ भी हुआ था।
यह लोकतांत्रिक व्यवस्था ही दुनिया के महान नेताओं का जनक है। इसलिए मैं इसका समर्थक हूं, जिसने राजशाही और सेना शासन को खत्म किया। लोग आज अमेरिका को कुछ भी कहें मगर मैं उन्हें धन्यवाद करता हूं इस अनमोल तोहफे के लिए, जो हर देश में ऐसे घुल गए जैसे दूध में चीनी।