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गोरखपुर और बनारस जैसे शहरों वाला पूर्वांचल आखिर क्यों है पिछड़ा?”

प्रतीकात्मक तस्वीर

प्रतीकात्मक तस्वीर

भारत गाँवों का देश है मगर तेज़ी से हो रहे शहरीकरण से गाँवों के अस्तित्व पर खतरा मंडराने के साथ-साथ भारतीय सभ्यता पर भी इसका असर पड़ रहा है। इसके अपने कुछ फायदे ज़रूर हैं मगर इससे होने वाले नुकसान को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है।

पूर्वांचल की स्थिति

पूर्वांचल की बात करें तो यह क्षेत्र कृषि पर काफी हद तक निर्भर है। मैंने यहां अधिकांश लोगों को अपनी आय के लिए खेती पर निर्भर रहते देखा है। पूर्वांचल में गोरखपुर और बनारस जैसे शहरों के होने के बावजूद भी यह इलाका काफी पिछड़ा और अशिक्षित है।

यहां के गाँवों के बारे में बात करें तो, यहां कृषि योग्य भूमि होती है। यहां लोग चौपाये भी बड़ी मात्रा में पालते हैं। यहां ज़मीन के छोटे-छोटे टुकड़ों में खेती की जाती है। यहां अंग्रेज़ों के समय ज़मींदारी व्यवस्था ज़ोरों पर थी, जिसके निशान आज भी आसानी से देखे जा सकते हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

एक तरफ यहां ज़मीन ना होने वाले परिवारों की संख्या काफी तादात में है, तो वहीं दूसरी ओर कई परिवार ऐसे भी हैं, जिनके पास हज़ारों बीघा कृषि योग्य ज़मीन है। यहां की ज़मीन पर धान, गेहूं, सरसों, गन्ना, मक्का और दाल आदि फसल उगाए जाते हैं।

यह इलाका पानी के लिए मॉनसून पर निर्भर है। यहां पर बड़ी मात्रा में आम, लीची और सागवान आदि के बगीचे भी लगाए जाते हैं। गायें और भैंसे यहां पर बड़ी मात्रा में पाली जाती हैं और यह यहां के लोगों के लिए आय के प्रमुख स्रोत भी हैं।

औद्योगीकरण के दुष्परिणाम

औद्योगीकरण के कारण अब यहां पर लोग पेपरमिंट की खेती भी करने लगे हैं, जो यहां की मिट्टी के लिए सही नहीं है। यहां की मिट्टी में नाइट्रोजन बड़ी मात्रा में पाया जाता है। इसके साथ ही यहां की मिट्टी में फॉस्फोरस जैसे खनिज भी मिलते हैं। यहां बढ़ते शहरीकरण की वजह से कृषि योग्य भूमि तेज़ी से घट रही है, जो देश के लिए भी चिंता का विषय है।

यहां के सामाजिक परिवेश की बात करें तो पूर्वांचल में जाति व्यवस्था पुरातन काल से चली आ रही है। गाँवों में यह लोगों के विचारों में बहुत ज़्यादा घुली हुई है। यहां ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र एक ही गाँव में एक साथ रहते मिल जाएंगे। जाति व्यवस्था के कारण ही यहां निचली जातियों में अति-गरीब लोग बड़ी मात्रा में हैं।

अशिक्षा के कारण जागरुकता का अभाव

अशिक्षा के कारण भी यहां लोग जाति और धर्म के बारे में ज़्यादा जागरूक नहीं हैं। यहां अब भी लोग अपने छोटे-मोटे विवाद गाँवों के सरपंचों द्वारा सुलझाने की कोशिश करते हैं। यहां पर सांप्रदायिक रूप से दो मत के लोग ही ज़्यादा हैं- सनातनी हिन्दू और मुसलमान।

पूर्वांचल के इलाके इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में अब तेज़ी से विकास कर रहे हैं मगर भ्रष्टाचार के कारण इनका जितना उत्थान होना चाहिए था, वह नहीं हुआ है। यहां पर लोग बीमारियों के बारे में जागरूक हो रहे हैं। अशिक्षा यहां के विकास में सबसे बड़ी बाधा है, जिसे दूर करना अति आवश्यक है।

लोगों को यहां जाति के प्रति भी जागरूक करने की आवश्यकता है, जिससे निचले तबके के लोगों का उत्थान हो सके और वे भी मुख्य धारा से जुड़ पाएं।

कृषि योग्य भूमि में यहां लोग बड़ी मात्रा से उर्वरकों का इस्तेमाल कर रहें हैं, जो मिट्टी तथा पर्यावरण दोनों के लिए सही नहीं है मगर इन गाँवों में अब भी भारत का दिल बसता है।

नोट: लेखक ने इलाके में भ्रमण के आधार पर इस लेख को लिखा है।

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