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“न्यूज़ चैनल के रंगीन पर्दे पर NASA के नाम का झूठ क्यों परोसा जा रहा है?”

प्रतीकात्मक तस्वीर, फोटो साभार- Flickr

प्रतीकात्मक तस्वीर, फोटो साभार- Flickr

जो वीडियो आप लेख के अंत में देख रहे हैं, उसमें लेशमात्र भी झूठ मौजूद नहीं है। आपको हंसी आ सकती है मगर मुझे ऐसे सच पर हंसने और रोने की सहज क्रिया के दरमियान चुनाव करना बड़ा कठिन हो जाता है। जिस सच की मैं बात कर रहा हूं, वह सच है हमारे समाज का जिसे झुठलाया नहीं जा सकता।

गौरतलब है कि सुदर्शन न्यूज़ के एडिटर इन चीफ सुरेश चौहान के ने रविवार को एक शो के ज़रिये यह बताया कि चंद्रयान-2 की विफलता के पीछे ‘NASA’ का हाथ है। ऐसे न्यूज चैनल आपको वही बेच रहे हैं, जो आप खरीदना चाहते हैं। इसलिए न्यूज़ चैनलों पर दोष मढ़ने से पहले आप अपने भीतर आत्म अवलोकन करके देखें कि क्या आपने इससे कुछ अलहदा पाने की ख्वाहिश पाल रखी थी?

अगर आपने वही ख्वाहिश पाल रखी थी, जो यह महान कलाकार रंगीन पर्दों पर बेचते हैं फिर माफ कीजिए लेकिन थोड़ा ठहर कर ज़रा अपने आप पर हंस लीजिए, क्योंकि आप इसी के हकदार हैं।

अगर आज आपको यह टीवी का रंगीन पर्दा मटमैला नज़र आ रहा है जिसके चीथड़ों से सिर्फ चीखने-चिल्लाने की आवाजें आती हैं, तब सवाल यह उठता है कि यह पर्दा आपके घरों में कर क्या रहा है? यह पर्दा उसी समाज का दर्पण है, जिसे आपने अपनी बौद्धिकता बेचकर बाज़ार से खरीद ली है फिर भी अगर आपके भीतर तर्क की कोई लौ सुगबुगा रही है, तब इन मटमैले पर्दों को अपने-अपने घरों से इस कदर उखाड़ फेंकिए कि इनका धंधा हमेशा के लिए बंद हो जाए।

फोटो साभार- Twitter

हम जब सवाल करना बंद कर देते हैं, तब ऐसे कूपमंडूक हमारी चेतना में घुसपैठ कर अपनी जगह सहज बना लेते हैं। 21वीं शताब्दी में जब भारत चांद पर पहुंच चुका है, उस दौर में ऐसे संचार तंत्र ना सिर्फ प्रश्न का विषय बन चुके हैं, बल्कि लोगों के भीतर वैज्ञानिक चेतना की क्रूर निर्मम हत्या प्रणाली भी इन्ही माध्यमों से अब विकसित कर ली गई है।

किसी भी विज्ञान सजग समाज में ऐसी खबरें चलाना एक बड़े अपराध की श्रेणी में अपनी मौजूदगी दर्ज कराता है मगर जहां विश्वकप जीतने एवं सैटेलाइट की लैंडिंग के लिए हवन पूजन और मन्नतें मांगी जाए, वहां इसे अपराध के बनिस्बत लोकरंजित होना स्वाभाविक है।

जिस तरह दीमक घर में रखे सभी फर्नीचर और लकड़ी के सामानों को खोखला कर देता है, उसी तरह अवैज्ञानिक प्रवृति मानव के भीतर सोचने-समझने एवं तर्क करने की शक्ति को क्षीण कर देती है।

दुर्भाग्य से अवैज्ञानिक प्रवृति को संचार के माध्यम से हमारे घरों में हर रोज़ बेचा जाता है। ऐसे चैनलों के ऊंचे होते मुनाफे की इमारत इस बात का घोतक है कि वैज्ञानिक चेतना की हत्या प्रणाली का विस्तार एवं स्वीकृति आम जनमानस में किस कदर हो चुका है।

इसका सबसे बड़ा खतरा यह है कि हर शोषित एवं दमित तबका अब तर्क कर सकने के अभाव में अपना उद्धार उन्ही शोषकों के रक्तरंजित हाथों में देखता है, जिससे ज़रिये हर रोज़ उसकी खाल उधेड़ी जाती है। सूचना के अभाव में मिथक को सच के आवरण में सजाकर लोगों के बीच प्रचलित किया जाता है।

इसी झूठ को दर्शकों की आंखों में एक सपने की तरह सजाकर, एक आम जन सहमति का निर्माण किया जाता है। यही जनसहमति चुनाव में शासक वर्ग के लिए अपार जनमत सहेजती है, जिसमें आम जन-सरोकार की जगह शेष रह नहीं जाती और धारणा को वास्तविकता का अमली जामा पहनाया जाना लोकतंत्र के ताबूत में आखिरी कील साबित होती है। जिस तरीके से सुदर्शन न्यूज़ चैनल के रंगीन पर्दे पर NASA के नाम का झूठ क्यों परोसा जा रहा है, वह शर्मनाक है।

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