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“अलगाववादियों की तुलना कुछ लोग भगत सिंह से क्यों करते हैं?”

भगत सिंह

भगत सिंह

कई बार हमने देखा है कि कुछ लोग अलगाववादियों की तुलना भारतीय क्रांतिकारियों से करने लगते हैं। मिसाल के तौर पर अफज़ल गुरु की तुलना भगत सिंह से, गिलानी की महात्मा गाँधी से और बाकी सभी अलगाववादियों की तुलना किसी ना किसी से की जाती है। आज यह ज़रूरी है कि इस भ्रम को तोड़ा जाए।

भगत सिंह के बम मारने का कारण अलग

यह सच है कि भगत सिंह ने 1925 में लेजिस्लेटिव काउंसिल में बम फेंका था मगर उसकी वजह अलग थी। उसकी वजह यह थी कि उस दिन लेजिस्लेटिव काउंसिल में ट्रेड डिस्प्यूट बिल और पब्लिक सेफ्टी बिल नाम से दो कानून लाए गए थे, जिसे वाइसराय लॉर्ड इरविन अपनी ताकत और बहुमत का इस्तेमाल करके पास करना चाहते थे।

भगत सिंह। फोटो साभार-Getty Images

इस बिल के ज़रिये किसानों और कामगारों की आवाज़ को दबाए जाने की योजना थी। यह बम ऐसी जगह फेंका गया था, जहां किसी की जान ना जाए। संसद पर हमला बिल्कुल अलग मामला था। संसद हमले के वक्त ऐसा कोई भी कानून संसद में पास नहीं हो रहा था, जो कश्मीर के खिलाफ हो। कश्मीर पर कोई चर्चा ही नहीं हो रही थी।

लॉर्ड इरविन की भारतीयों के प्रति सोच सबको पता थी मगर उस वक्त के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी कश्मीरियों के प्रति बेहतर सोच रखते थे। इसी का नतीजा है कि 2018 में वाजपेयी जी की मृत्यु के बाद कश्मीर के कई नेताओं ने उनको कश्मीरियों का हमदर्द कहा था। अफज़ल गुरु ने इसी हमदर्द और उसके मंत्रियों को मारने की साज़िश रची थी। तो क्या ऐसे आदमी को कहीं से भी भगत सिंह के बराबर रखा जा सकता है?

अलगाववादी नेताओं और भारतीय क्रांतिकारियों के बच्चों में फर्क

आज इन अलगाववादी नेताओं के बच्चे विदेशों और बड़े-बड़े स्कूलों में पढ़ते हैं। इसके विपरीत महात्मा गाँधी ने अपने सबसे बड़े बेटे हरीलाल गाँधी को लंदन में जाकर बैरिस्टर की पढ़ाई करने से मना कर दिया था। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने अपने बेटे मृत्युंजय प्रसाद को बिहार विद्यापीठ भेजा, सरदार पटेल ने अपने बेटे और बेटी को गुजरात विद्यापीठ से पढ़ाया।

खुद सरदार भगत सिंह के पिता सरदार किशन सिंह ने अपने बेटे को खालसा स्कूल की जगह दयानंद स्कूल में पढ़ाया, क्योंकि खालसा स्कूल अंग्रेज़ों के पैसों से चलता था।

बोस ने देश की आज़ादी के लिए फौज बनाई थी

जब नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने देश की आज़ादी का बीड़ा उठाया, तो उन्होंने आज़ाद हिंद फौज की स्थापना की, जिसे एक्सिस देशों का समर्थन था। वह एक पूरी मान्यता प्राप्त फौज थी। इस फौज की तुलना आतंकियों की फौज से कभी नहीं की जा सकती। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अपनी फौज देश को आज़ादी दिलाने के लिए बनाई थी।

इन उदाहरणों से यह साफ हो जाता है कि कश्मीर के अलगाववादी नेताओं की तुलना कहीं से भी भारतीय क्रांतिकारियों से नहीं की जा सकती है। ऐसी तुलना करने वालों को थोड़ा इतिहास पढ़ लेना चाहिए।

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