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झारखंड के आदिवासी युवा भूख हड़ताल के लिए क्यों हैं मजबूर?

फोटो साभार- मोहम्मद सरताज आलम

फोटो साभार- मोहम्मद सरताज आलम

ज़रा सोचिए कि अचानक कोई सरकारी फरमान आ जाए कि आपके मंदिर या हमारी मस्जिद के परिसर के ठीक अंदर सरकारी भवन बनेगा या फिर अचानक भवन बनने लगे, हम और आप पर क्या बीतेगी? क्या हम और आप अपनी संस्कृति से लेकर आस्था को बचाने हेतु बन रहे भवन का विरोध करेंगे?

यदि आपका जवाब हां है, फिर तो झारखंड के आदिवासी जो ‘जल-जंगल और ज़मीन’ के लिए संघर्षरत हैं, वे अपनी आस्था को बचाने के लिए यदि भूख हड़ताल को मजबूर हुए हैं, इसमें उनका कुसूर क्या है? कुसूर वह भी तब जब झारखंड के सीएम रघुवरदास आय दिन आदिवासियों के हित में जारी योजनाओं का बखान कर खुद ही अपनी पीठ ठोक लेते हैं!

खुद की पीठ थपथपाने से सत्ता के सर पर जो नशा चढ़ा है, उससे सीएम के गृह ज़िले में आदिवासियों पर हो रही इतनी बड़ी ज़्यादती को समझने का किसी के पास ना ही समय है और ना ही कोई समझना चाहता है।

जी हां, बात झारखंड के पूर्वी सिंहभूम (जमशेदपुर) ज़िले के घाटशिला ब्लॉक अंतर्गत पावड़ा गाँव में स्थित फूलडंगरी क्षेत्र की हो रही है, जहां आदिवासियों की पूजा हेतु ‘जाहेर स्थल’ मौजूद है,  जिसके परिसर में ज़िला प्रशासन द्वारा ज़बरन पंचायत भवन का निर्माण हो रहा है।

जाहेर स्थल। फोटो साभार- मोहम्मद सरताज आलम

ज्ञात हो कि आदिवासी समाज के लोग घाटशिला ब्लॉक के अंतर्गत ‘पावड़ा’ गाँव के फूलडंगरी क्षेत्र में स्थित इस ‘जाहेर गढ़’ में स्वतंत्रता पूर्व से ही प्रकृति पूजा करते आ रहे हैं। उसी स्थल के परिसर में पंचायत मंडप भवन का निर्माण ज़बरन जारी है।

बात 2 जनवरी 2018 की है, जब घाटशिला ब्लॉक के अंतर्गत ‘पावड़ा’ गाँव के आदिवासियों को पता चला कि जिस स्थल पर वे और उनके पूर्वज ज़माने से पूजा करते आ रहे हैं, उसके  परिसर में अब पंचायत मंडप बनेगा। घाटशिला ब्लॉक क्षेत्र के तमाम आदिवासी समाज के लोग बीडीओ और एसडीओ घाटशिला के पास फरियाद लेकर पहुंचे।

फूलडंगरी क्षेत्र स्थित यह स्थल आदिवासी समाज का सबसे बड़ा ‘जाहिर स्थल’ था। 80 वर्षीय रामचंद्र हेम्ब्रम का कहना है कि एक के बाद एक आदिवासी समाज की सामाजिक संस्थाएं प्रशासन से फरियाद करने लगीं कि हमारी आस्था के इस प्रतीक को बख्शते हुए पंचायत मंडप का निर्माण कहीं और करवाइए।

ग्रामीणों की तस्वीर। फोटो साभार- मोहम्मद सरताज आलम

यही नहीं, उस दौरान प्रशासन की ओर से आश्वासन भी मिले और आश्वासन को अमल में लाते हुए अंचल अधिकारी, घाटशिला ब्लॉक ने प्रखंड विकास पदाधिकारी, घाटशिला ब्लॉक को पंचायत मंडप निर्माण हेतु नई ज़मीन उपलब्ध करवाने के लिए पत्र लिखा।

प्रखंड विकास पदाधिकारी, घाटशिला ब्लॉक ने कदम आगे बढ़ाते हुए 24 फरवरी 2018 को उप विकास आयुक्त-सह मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी, ज़िला परिषद्, पूर्वी सिंघभूम, जमशेदपुर को पत्र लिख कर पंचायत मंडप निर्माण हेतु नई ज़मीन उपलब्ध करवाने की बात रखी।

बीडीओ को दिए गए लेटर की कॉपी।

मनसा राम हांसदा, जो इस समय भूख हड़ताल पर हैं, वह कहते हैं, “लेकिन उक्त पत्र से बात बनी नहीं और निर्माण की कोशिश कुछ ही दिनों बाद शुरू हो गई। देखते ही देखते सितम्बर 2018 की दस्तक हुई और आदिवासी समाज को मिलते आश्वासन के बाद धोखे के बीच समाज के लोगों द्वारा जारी संघर्ष भूख हड़ताल तक जा पहुंचा।”

जी हां, तारीख 1 सितम्बर 2018 जब थक हार कर फूलडंगरी क्षेत्र के आदिवासी अपनी धरोहर यानि ‘जाहेर परिसर’ को बचाने के लिए एसडीओ घाटशिला के समक्ष लिखित अनिश्चित कालीन भूख हड़ताल हेतु अपनी आवाज़ राखी।

4 सितंबर को आदिवासी समाज की ओर से जब मनसा राम हांसदा, सुगड़ा मुर्मू, गणेश हांसदा एवं बुडेश्वर हेम्ब्रम ने भूख हड़ताल पर अंचल अधिकारी कार्यालय के समक्ष बैठ गए, तो समर्थन में बंगाली समाज भी आदिवासी समाज के कंधे से कंधे मिलाने लगा। स्थिति की गंभीरता को समझते हुए बीडीओ ने अन्य अधिकारियों की मौजूदगी में भूख हड़ताल करने वालों को उसी दिन जूस पिलाकर हड़ताल समाप्त करवा दिया और स्थान बदलने की बात रखते हुए आश्वासन दिया कि पंचायत मंडप बनेगा ज़रूर लेकिन उसकी जगह बदली जाएगी।

जूस पिलाकर भूख हड़ताल खत्म करने की अपील करते बीडीओ। फोटो साभार- मोहम्मद सरताज आलम

जहां तक बंगाली समर्थन की बात है, तो जमशेदपुर से करीब 40 किलोमीटर दूर घाटशिला ब्लॉक अंतर्गत ‘पावड़ा’ गाँव के फूलडंगरी क्षेत्र में स्थित आदिवासियों के जिस पूजा स्थल के लिए विवाद हुआ, उसी ‘जाहेर स्थल’ में मशहूर बांग्ला लेखक ‘बिभूतिभूषण बंद्योपाध्याय’ ने अपना सर्वश्रेष्ठ उपन्यास ‘पथेर पांचाली’ (सड़क का गीत) लिखा।

घटशियल क्षेत्र में रहने वाले बंगाल समुदाय के लोगों का दावा है कि इसी जगह पर बिभूतिभूषण बंद्योपाध्याय ने ‘पथेर पांचाली’ और ‘अपराजितो’ के कई अंश लिखे। तापस चटर्जी कहते हैं, “यही कारण है कि बंगालियों में यह स्थान पर्यटन स्थल के तौर पर प्रसिद्ध है।

बंगाली पर्यटक मानते हैं कि इसी जगह पर पेड़ के नीचे बैठकर बिभूतिभूषण बंद्योपाध्याय ने ‘पथेर पांचाली’ और उसका सिक्वल ‘अपराजितो’ लिखा। इन दोनों उपन्यासों का कई भाषाओं में अनुवाद भी हुआ। हालांकि, अपराजितो लिखने के क्रम में ही नवंबर 1950 में इसी गाँव में उनका देहांत हो गया।

फोटो साभार-मोहम्मद सरताज आलम

यहां मौजूद उनका घर आज भी धरोहर के तौर पर सुरक्षित है। सर्दियों के मौसम में यहां बंगाली समुदाय के पर्यटकों की भीड़ जमती है। तब वे लोग इस घर के साथ-साथ वह जगह यानि ‘जाहेर स्थल’ भी देखने जाते हैं, जहां दोनों उपन्यास लिखे गए थे।

भूख हड़ताल पर एक बार फिर बैठे सुगदा मुर्मू ने आगे बताया कि 4 सितम्बर को हुई भूख हड़ताल के बाद प्रशासन के नरम रवैये के बीच हमारा ‘जाहेर परिसर’ महफूज़ होचुका था, जिससे पूरा समाज बेइंतेहा खुश गया लेकिन हमारी यह खुशी अधिक दिनों तक ना रह सकी और 2 अगस्त 2019 से हमारे ‘जाहेर परिसर’ में प्रशासन ने सारे वायदे और आश्वासन को ताक पर रख पंचायत मंडप का निर्माण आरम्भ कर दिया। हमने पुन: अंचल अधिकारी से लेकर ज़िला स्तर तक फरियाद की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। पंचायत मंडप का निर्माण अब भी जारी है।

हरिराम टुडू।

एक अन्य युवा हरिराम टुडू ने बताया कि ‘जाहेर गढ़’ के रास्ते में मंडप बनने से हम अब पूजा नहीं कर पाएंगे। उन्होंने आगे बताया कि क्षेत्र के गाँवों  में 80% आबादी आदिवासियों की है, तो वहीं जाहेर स्थल पर “बाहा” जैसे आदिवासी पर्व में लगभग बीस से पचीस हज़ार लोग एकत्र होकर प्रकृति की पूजा करते हैं।

हरिराम टुडू आगे कहते हैं, “अत: आज आदिवासी समाज अपनी संस्कृति बचाने को मजबूर है, जबकि प्रशासन से बार-बार यही फरियाद की गई कि हमारा समाज पंचायत मंडप के खिलाफ नहीं है लेकिन प्रशासन कुछ सुनना और समझना ही नहीं चाहता है। इसलिए प्रशासन के इस निंदनीय रवैये के बाद हम भूख हड़ताल पर बैठने के लिए मजबूर हुए। आज भूख हड़ताल का तीसरा दिन है लेकिन ज़िला प्रशासनिक अधिकारियों ने अब तक कोई सुध नहीं ली।”

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