Site icon Youth Ki Awaaz

“राज्य महिलाओं के गर्भपात जैसे निजी फैसलों और जीवन में दखल क्यों दे रहा है?”

सन 2009 में डाॅ निखिल दातार ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। उन्होंने यह जनहित याचिका गर्भपात की समय सीमा को बढ़ाने के लिए डाली थी।

महिलाओं के लिए ज़रूरी थी यह याचिका

अभी तक महिलाओं को केवल 20 हफ्ते तक ही गर्भपात कराने की अनुमति थी लेकिन डाॅ दातार चाहते है कि यह समय सीमा बढ़कर 26 हफ्ते हो जाए। डॉ दातार का मानना है,

गर्भ में पल रहा शिशु किसी तरह से शारीरिक या मानसिक रूप से अवस्थ तो नहीं है, इसका अधिकांशतः पता भ्रूण के पूर्ण विकसित होने पर ही चलता है। अगर ऐसे में गर्भपात की समय सीमा बढ़ जाए तो महिला के पास काफी समय होता है कि वह डॉक्टर की सलाह ले और निर्णय ले सके कि उसको गर्भपात कराना चाहिए या नहीं।

इस मामले में सवाल उठने तब शुरू हो गए जब 11 सितंबर को सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट को जवाब भेजा, जिसमें यह लिखा था कि महिलाओं को गर्भपात कराने का पूर्ण अधिकार नहीं है। महिला और उसके गर्भ में पल रहे बच्चे की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी राज्य की है।

इसके जवाब में याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील स्नेहा मुखर्जी ने कहा,

राज्य को यह स्वीकार करना चाहिए कि महिलाओं के अपने शरीर से संबंधित निर्णय व्यक्तिगत और निजी हैं। गर्भपात सहित यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं से संबंधित नीति और कानून बनाने के केंद्र में महिला की स्वायत्तता को बनाए रखना अनिवार्य है।

महिलाओं के अधिकार हड़पना चाहता है राज्य

सवाल यह उठता है कि किसी भी महिला का शरीर उसका है या उसपर राज्य का अधिकार है? राज्य, जो कि अपने निर्माण या विकास के समय से ही एक पितृसत्तात्मक संस्था रही है, जिसमें महिलाओं की भागीदारी ना के बराबर रही है। क्या अब वह यह निर्णय लेगी कि महिलाओं को अपना गर्भपात कराना है या नहीं?

यह वही लोग हैं जो मानते हैं कि जब लड़की छोटी हो तो अपने बाप और भाई के अधीन रहे, बड़ी हो जाए तो शादी होने के बाद अपने पति के अधीन रहे और पति की मृत्यु के बाद बेटे के अधीन रहे।

राज्य नाम की संस्था जो कि हमेशा से जनता का शोषण करती आई है, वह क्या अब महिलाओं के निजी अधिकारों को भी छीन लेगी? राज्य की शक्तियों की कुछ सीमाएं होनी चाहिए या फिर यूं कहें कि सरकार के इस जवाब के पीछे उस मनुवादी सोच का हाथ है, जिसके बल पर वो सत्ता में आए हैं।

किसी से यह नहीं छिपा की बीजेपी और आरएसएस की विचारधारा मनुवादी विचारधारा है और मनु, शूद्रों और महिलाओं के अधिकारों को लगभग एक समान बतलाते हैं।

सालों साल से महिलाओं को अपने निजी फैसले लेना का अधिकार नहीं था। वह गर्भपात तो करवा ही नहीं सकती थी क्योंकि यह उनके धर्म में निषेध है।

अब जब प्रगतिवादी विचारों के कारण महिलाओ को यह अधिकार मिला है, तो वे इसका उपयोग अब भी धर्म के कारण नहीं करती या अपने पति की इच्छा से करती हैं। उनके पास केवल दिखावे मात्र के लिए यह अधिकार है और राज्य उसको भी हड़पना चाहता है।

Exit mobile version