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केहर सिंह को फाँसी की सजा, वास्तव में हमारी न्याय पालिका पर सवालिया चिन्ह है

जहां हमारा दिल्ली का राष्ट्रीय मीडिया 31 अक्टूबर को इंदिरा गांधी की हत्या के संदर्भ में उनके सिख अंगरक्षकों बिअंत सिंह और सतवंत सिंह को एक आतंकवादी, देशद्रोही, राष्ट्रद्रोही के रूप में दिखाता है, वहीं पंजाब में बिअंत सिंह और सतवंत सिंह कभी भी एक आतंकवादी के रूप में स्वीकार नहीं किये गये।

बिअंत सिंह और सतवंत सिंह इसी देश के नागरिक थे और इसी देश के संविधान के तहत आज़ाद थे, वह अपनी सरकारी नौकरी श्रीमती इंदिरा गांधी की सुरक्षा में हिफाज़त के लिए हथियारों के साथ तैनात थे। उन पर 31 अक्टूबर 1984 के पहले कभी भी किसी भी गैर कानूनी कार्यवाही में कभी भी दोष नहीं लगा था। अगर हम थोड़ा गूगल करे तो इस बात को समझ सकते हैं इन दोनों के सिवा कई और सिख पुलिसकर्मी श्रीमती इंदिरा गांधी की हिफाज़त में हथियारों के साथ तैनात थे

लेकिन तारीख 31 अक्टूबर 1984 को श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या जब बिअंत सिंह और सतवंत सिंह द्वारा की गई उसके बाद वह देश के लिये बहुत बड़ा खतरा बन गये इतना बड़ा खतरा की इतने दशकों के बाद भी बिअंत सिंह और सतवंत सिंह को हमारा राष्ट्रीय मीडिया नकारता ही आया है। इसके तुरंत पश्चात देश में खासकर उत्तर भारत के हिंदी भाषित क्षेत्र में सिख कत्लेआम में हज़ारों बेकसूर, इसी देश के नागरिक होने के बावजूद सरेआम कत्ल किये गये।

इसके पश्चात 1984 के अंत में लोकसभा चुनाव हुए जिसमें राजीव गांधी काँग्रेस का चेहरा बने। वहीं श्रीमती गांधी की हत्या और उसके पश्चात सिख दंगो के कारण श्री राजीव गांधी को सहानुभूति के कारण लोगों ने वोट किया। मेरा यह व्यक्तिगत मानना है कि यहां भारत की लोकतांत्रिक छवि धुंधली हुई। जहां ब्लूस्टार, श्रीमती इंदिरा गांधी और उसके पश्चात हुए सिख दंगो में हुई हिंसा को किसी ने भी नाजायज़ करार नहीं दिया।  वास्तव में हम अगर खुद को एक लोकतांत्रिक देश के रूप में देखना चाहते हैं तो हमें हर किस्म की जायज़ ओर नाजायज़ हिंसा को हर तरह से अस्वीकार करना होगा खासकर व्यक्तिगत रूप से, क्योंकि नागरिक से ही देश और समाज बनता है।

बिअंत सिंह और सतवंत सिंह को इस बात का पूरा इल्म रहा होगा कि इसके बाद उनकी ज़िंदगी भी बदल जाने वाली है। उनको इस बात का एहसास होगा कि उन्हें या तो पुलिस की गोली से या कानून के फंदे से मौत दे दी जायेगी और हुआ भी ऐसा ही। श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कुछ ही पल में बिअंत सिंह को सरकारी सैनिकों ने मार दिया। यहां बिअंत सिंह की मौत कैसे हुई इसके कई तरह के कयास लगाये जाते रहे हैं।

सरकार ने बिअंत सिंह की मौत पर ज़्यादा पुष्टि करने में संकोच ही किया है जंहा कुछ हालात ये बयान करते है कि बिअंत सिंह को उसी समय सरकारी मुकाबले में मार दिया गया लेकिन अगर केहर सिंह के वकील श्री राम जेठमलानी जी के कथन को माने तो श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद बिअंत सिंह और सतवंत सिंह ने खुद को कानून को समर्पित कर दिया था जहां उन्हे हिरासत में ले लिया गया था ये तर्क इसलिये भी जायज लगता है क्योंकि श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के समय और कोई व्यक्ति भी बिअंत सिंह और सतवंत सिंह की गोली लगने से मारा गया हो इसकी व्यक्तिगत मुझे कोई जानकारी नहीं मिल पाई, लेकिन इसके बावजूद जवाबी गोली चली जंहा बेअंत सिंह की मौके पर ही मौत हो गई और एक से ज्यादा गोली लगने के बावजूद सतवंत सिंह ज़ख्मी हो गए जहां बाद में उन्हे अस्पताल में भर्ती करवाया गया।

इंदिरा गांधी के कत्ल के केस में आगे चल कर केहर सिंह और बलबीर सिंह को भी हिरासत में लिया गया, इन पर इल्ज़ाम था कि ये श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या की साज़िश में शामिल थे। यहां केहर सिंह के बारे में थोड़ी सी जानकारी देने की ज़रूरत है कि यह रिश्ते में बिअंत सिंह के अंकल लगते थे, जिसकी वजह से इनका अक्सर बिअंत सिंह से मिलना होता था। ये धार्मिक दृष्टिकोण से सिख थे और इनकी सिख धर्म में अपार श्रद्धा थी। ये, देल्ली में ही आपूर्ति एवं निपटान विभाग के डायरेक्टर जनरल के सहायक थे।

इन्हें, तारीख ३०-नवम्बर-१९८४ को गिरफ्तार करके अदालत में पेश किया गया जहाँ इन्हें पहले तारीख ५-दिसम्बर-१९८४ तक और बाद में तारीख १५-१२-१९८४ तक, पुलिस रिमांड पर भेज दिया गया जहाँ श्रीमती इंदिरा गांधी के केस इनसे पूछ पड़ताल की जा सके. यहाँ, ये कहा गया की इनसे मिली जानकारी के आधार पर पुलिस ने इनके घर की तफतीश की जहाँ पुलिस को कई आपत्तिजनक आर्टिकल या लेख मिले थे।

वही बलबीर सिंह, बतौर पुलिस सब-इन्सपैक्टर श्रीमती इंदिरा गांधी की सुरक्षा कर्मियों में शामिल थे. जिन्हें पुलिस ने तारीख ३-दिसम्बर-१९८४ को हिरासत में लिया था और इस धरपकड़ के दौरान, इनके घर से भी कई आपत्तिजनक आर्टिकल या लेख मिले थे. लेकिन, बलबीर सिंह का कहना था की श्रीमती गांधी के हत्या के दिन जब ये शाम को अपनी ड्यूटी पर हाजिर हुये तो इन्हें सीक्यूरिटी लाइन्स में जाने के लिये कहा गया. उसी सुबह ०३:०० बजे, तारीख ०१-नवम्बर-१९८४, को इनकी घर की तलाशी ली गयी जहाँ इनके घर से संत भिंडरावाला की किताब को जब्त किया गया और सुबह ०४:०० बजे, इन्हें यमुना वेलोड्रम ले जाया गया जहाँ इन्हें तारीख ३-दिसम्बर-१९८४ तक रखा गया. यहाँ अक्सर इनके पूछने पर अक्सर ये कहा जाता था की आप को छोड़ दिया जायेगा. बलबीर सिंह के मुताबिक ये पहले से ही पुलिस हिरासत में थे और तारीख ३-दिसम्बर-१९८४ को दिखाई जा रही इनकी हिरासत बेबुनियाद हैं.

श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या में जिस तरह से अदालती कार्यवाही हुई, वह कई मायनों में सवालों के घेरे में आती हैं. मसलन संविधान के आर्टिकल २१ के मुताबिक अदालती कार्यवाही निष्पक्ष और बिना किसी प्रभाव के हो इसलिये अदालत की न्याय प्रक्रिया खुले में और सार्वजनिक रूप से होनी चाहिये. लेकिन, श्रीमती गांधी की हत्या के केस में,हाई कोर्ट के हुकुम से अदालती कार्यवाही तिहार जेल के भीतर की गयी थी. अब ऐसे क्या हालात थे, सरकारी पक्ष को किस बात का डर था कि सार्वजनिक अदालत के पक्ष में यंहा अदालत नही लगाई गई इस बात की ज्यादा पुष्टि नही हो पाई है,

अब, यहाँ ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही तिहार जेल में होने से अदालत की सार्वजनिक कार्यवाही पर विराम लग जाता हैं. जहां एक आम इंसान ओर मीडिया की कलम इस अदालत की कार्यवाही से ज्यादातर वंचित ही रह गये, वही सविधान के अनुसार, कथित दोषियों को संविधान के सैक्शन ३२७ के अनुसार सार्वजनिक रूप से न्याय प्रक्रिया का कानूनी अधिकार हैं जिस से इन्हें एक तरह से वंचित कर दिया गया था.

यहां, इस बात पर ध्यान देना होगा की ट्रायल कोर्ट के फैसले के आधार पर ही हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट आगे की सुनवाई करता हैं. जिसके तहत, ट्रायल कोर्ट का फैसला अपने आप में बहुत मायने रखता हैं.यहाँ, पूरी कार्यवाही में एक और प्रश्न उठा जहाँ कथित दोषियों को ठक्कर कमीशन की रिपोर्ट से वंचित रखा गया, ये वह रिपोर्ट थी जहाँ अभियोग पक्ष के गवाहों ने अपने अपने बयान दर्ज करवायें थे, ये रिपोर्ट अगर कथित दोषियों की पहुच में होती तो हो सकता था की यहाँ से कुछ जानकारी मिल पाती जो दोषियों के बचाव में पेश की जा सकती। यहां कानूनी कार्यवाही के अधीन, दोषियों पर पहले ट्रायल कोर्ट, फिर हाई कोर्ट और अंत में सुप्रीम कोर्ट में इसकी सुनवाई हुई जहाँ एक मौके पर बलबीर सिंह को हर प्रकार के दोष से मुक्त कर इन्हें रिहा कर दिया गया वही सतवंत सिंह और केहर सिंह को सज़ा-ए-मोत के  ऐलान पर आखिरी मोहर भी लगा दी गयी थी. यहाँ, बलबीर सिंह के खिलाफ किसी पुख़्ता सबूत की ग़ैरमौजूदगी, इनकी बेगुनाही का कारण बनी लेकिन यही पुख़्ता सबूत केहर सिंह के खिलाफ भी मौजूद नही थे जिन्हें सजा-ऐ-मोत हुयी थी.

यहाँ, अभियोग पक्ष की दलील थी की केहर सिंह धार्मिक श्रद्धा से सिख धर्म में यकीन रखते हैं और इसी के तहत इनका मानना था की जून १९८४ में हुआ ब्लू स्टार ऑपरेशन, जिस से अमृतसर के हरमंदिर साहिब गुरुद्वारा पर हमला किया गया और इसी के तहत गुरुद्वारा अकाल तख्त को क्षतिग्रस्त भी किया गया. यहाँ, केहर सिंह, इसका दोषी श्रीमती इंदिरा गांधी को मानते थे और इनसे बदला लेने के लिये आतुर थे.

बिअंत सिंह के नजदीकी रिश्तेदार होने के नाते पहले इन्होने बिअंत सिंह को इस बदले के लिये प्रेरित किया और बाद में सतवंत सिंह को, ये दोनों उस समय श्रीमती गांधी के सुरक्षा खेमे में शामिल थे.. इसी के तहत इन्होने पहले बिअंत सिंह को तारीख १४-अक्टूबर-१९८४ को सिख धर्म के अनुसार अमृत पान करवा के पूर्ण रूप से सिख बनाया और बाद में तारीख २४- अक्टूबर-१९८४ को सतवंत सिंह को आर.के.पुरम के गुरुद्वारा साहिब में अमृत पान करवाया. और ये बाद में बिअंत सिंह को तारीख २०- अक्टूबर-१९८४ को अमृतसर के हरमंदिर साहिब गुरुद्वारा में माथा टिकाने भी ले गये थे.

इस क़ानूनी प्रक्रिया के आखिर में भारत के जाने माने वकील श्री राम जेठमलानी जी ने केहर सिंह के केस की पैरवी की थी. यहाँ श्री जेठमलानी का केहर सिंह के लिये कहना था की ये बड़े शांत इंसान थे और देखने में कमजोर दिखाई देते थे. ये, गुरुद्वारा साहिब में जूतों को साफ़ करने की सेवा करते थे. यहाँ, जेठमलानी जी का मानना था की केहर सिंह के खिलाफ कोर्ट में ऐसा कोई पुख़्ता सबूत पेश नहीं किया गया जिस से इनको श्रीमती गांधी की हत्या की साजिश में किसी भी तरह से जोड़ा जा सके.

लेकिन तारीख ०६-जनवरी-१९८९, को तिहार जेल में, केहर सिंह और सतवंत सिंह को फांसी दे दी गयी थी. शायद ये कहना ग़लत नही होगा  कि राजीव गांधी के कार्यकाल में इस सजा को मुंकम्मल बनाया गया. वही इसके पश्चात संता ओर बंता के चुटकले बहुत आम सुनने में आने लगे, वास्तव में सिख समाज और मेरा भी ये व्यक्तिगत मानना है कि यंहा संता ओर बंता की छवि सतवंत सिंह और बलवंत सिंह से प्रेरित है.

 

जिस दिन केहर सिंह और सतवंत सिंह को फांसी के सजा दी गई, मैं उस समय, अपने परिवार के साथ मेरे ही शहर में ही था यहाँ मेरी  उम्र कुछ १० साल की रही होगी और मैं अपनी माँ से पतंग दिलाने की जिद्द कर रहा था लेकिन उस दिन मुझे मेरी माँ ने घर से बाहर भी नहीं जाने दिया और भोजन भी बिलकुल साधारण ही बनाया था. बड़ा, हुआ तो पता चला की किस तरह बिना किसी सबूत के और सिर्फ और सिर्फ शक के कारण कानूनन एक निर्दोष को भी सजा-ऐ-मोत दी जा सकती हैं. यकीनन इस तरह का फैसला हमारी कानून व्यवस्था पर सवालिया चिन्ह लगा देते है.

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