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धुंद का किस्सा

अच्छा सुनो,

क्या तुमने वो किस्सा सुना है

एक धुंद का किस्सा

वर्षो से चला आ रहा है

इस धुंद की है कई तस्वीरें, कई जंजीरे

एक जंजीर

किसी फूल,शब्द या तुम्हारे 

घर में कैद उस तोते की

एक जंजीर

किसी रंग,किसी जात

और उस ढह चुके खण्डहर की

नही तुमने ये किस्सा नही सुना

तुम नही जानते

इस धुंद का जंज़ीरों से रिश्ता क्या है

ये ख़ौफ़ ये चीखों का तमाशा क्या है

 

तुमने क्या किया

बस धुंद के उस तरफ रहकर

बेक़सूरो का लहू बहाया

उनके जबां पर ताले लगाए

बच्चो को अंधा बनाया 

और हम से हमारी कलम

अब बस

मैं ये किस्सा तुम्हे अब नही सुनाऊंगा

पैसों से झुकी तुम्हारे न्याय के मापदंडों को

मेरे इस किस्से से कोई फ़र्क नही आएगा

जो इस धुंद का किस्सा नही जानते 

मेरे जनाजे पर भी न आएं

तो अब

अब क्या

अब जाओ रोते रहो

वक़्त के कैदखाने में

खुद अपने ही गले से लग कर

तुम मेरे सीना के सदरंग के हकदार नही

अब मेरे तुम्हारे दरम्यां

किसी दीदार का असरार ही नही!

 

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