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अगले 100 सालों में पृथ्वी पर ऑक्सीजन मिलना हो सकता है मुश्किल

मास्क पहने लोग

मास्क पहने लोग

विकास की तलाश में मौत के इतने पास आ जाएंगे, यह हमने कहां सोचा था। वास्तव में वह बेहतर ज़िन्दगी की तलाश ही थी, जब हम इंसानों ने औधोगिकीकरण, इंफ्रास्टक्चर, अनुसंधान और विकास की अंधाधुंध दौड़ में प्रकृति का इतना दोहन किया कि आज हम मौत के मुंह में प्रवेश कर चुके हैं।

हमने प्रकृति को तबाह किया, प्रकृति अब हमें तबाह करने को व्यग्र है। पृथ्वी एक मात्र ग्रह है, जहां जीवन संभव है। इसकी वजह यहां की प्राकृतिक बनावट है, जिसके साथ हम एक प्रकार से लगातार ‘बलात्कार’ कर रहे हैं।

फोटो साभार- Twitter

प्रकृति की अवस्था और व्यवस्था के साथ लगातार छेड़खानी कर रहे हैं। आज जिस प्रकार से हमारा वायुमंडल जीवन के लिए हानिकारक गैसों का भंडार बन चुका है, जिस प्रकार से ग्रीन हाउस गैसों, मुख्य रूप से कार्बन डाई-ऑक्साइड बढ़ रहा है, हम ना सिर्फ खुद को मार रहे हैं, अपितु आने वाली पीढ़ियों को भी मौत की सौगात दे रहे हैं।

पूरी दुनिया से सैकड़ों मिलियन मेट्रिक टन कार्बन प्रतिदिन उत्सर्जित होकर हमारे वायुमंडल को जहरीला बना रहा है। इसे रोकने के नाम पर दुनिया के नेता हर वर्ष मीटिंग पर मीटिंग कर तो रहे हैं लेकिन दिन पर दिन कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि के आकड़े साबित कर रहे हैं कि अब तक बात चाय-पानी से आगे नहीं बढ़ी है।

हां, हालात से फिक्रमंद कुछ पर्यावरणविद सार्थक पहल करने की कोशिश कर रहे हैं। लोगों को आने वाले खतरे को लेकर जागरूक कर रहे हैं लेकिन अब भी बात लोगों के पल्ले नहीं पड़ रही है। हम सभी अपनी-अपनी लाइफ स्टाइल को एन्जॉय करने में व्यस्त हैं। अपनी दुनिया के ऐशों-आराम में मस्त हैं, हमें कहां पता कि इसी ऐशों-आराम ने हमारी दुनिया में आग लगा दी है।

क्लाइमेट स्ट्राइक। फोटो साभार- Twitter

हमें लगता है कि कार्बन-फार्बन हमारा क्या बिगाड़ लेगा? हमें इससे क्या लेना-देना? यह तो निकम्मे लोगों का काम है, जो टाइमपास के लिए पर्यावरण, ग्लोबल वॉर्मिंग, प्रदूषण, कार्बन उत्सर्जन को लेकर चिल्लाते रहते हैं। कुछ लोगों को लगता है कि हम अकेले क्या कर लेंगे? सोचिए, दुनिया के अरबों लोग इसी अकेलेपन की वजह से पहल नहीं कर पा रहे हैं? ज़िन्दगी से प्रेम है लेकिन आपकी तरह उन्हें भी लगता है, ”हम अकेले थोड़े ना मरेंगे।

सामूहिक मौत अगर हमें मौत को भी सहने की ताकत दे सकती है, तो क्या सामूहिक ज़िन्दगी हमें जीवन के लिए लड़ने की ताकत नहीं दे सकती है? अगर आप भी ऐसी गलतफहमी का शिकार हैं, प्लीज़ होश में आइये और कार्बन उत्सर्जन के खतरे को समझिए :-

कार्बन उत्सर्जन और इसके दुष्परिणाम

‘कार्बन’ हमारे वायुमंडल के निचले परत में मौजूद सर्वाधिक जहरीली गैस है। यूं तो पौधों को छोड़कर इस सृष्टि का हर जीव, उसकी जीवनशैली कार्बन उत्सर्जन की वजह है लेकिन जो बड़ा खतरा हमारे सामने है, उसकी सबसे बड़ी वजह अंधाधुंध जीवाश्म ईंधन, कोयला, कच्चा तेल, औधौगिक कचरे के जलने और अनियंत्रित विधुत उपयोग हैं।

प्रदूषण की वजह से मास्क पहने लोग। फोटो साभार- Flickr

दुनियाभर में आज भी बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां हैं, जिनमें प्रतिदिन लाखों टन कोयला, ऊर्जा उत्पादन और अन्य कार्यों के लिए प्रयोग हो रहा है। करोड़ों लीटर कच्चे तेल प्रतिदिन फैक्ट्रियों, यातायात साधनों एवं अन्य ज़रूरतों में उपयोग हो रहे हैं। साथ ही पूरी दुनिया में जंगलों की कटाई होने से स्थिति बद से बदतर हो रही है। विश्व के सबसे बड़े वन क्षेत्र में से एक ब्राज़ील के अमेज़न के जंगलों में भीषण आग आज वैश्विक चिंता का विषय है।

कार्बन उत्सर्जन के दुष्परिणामों की बात करें तो सीधे-सीधे हम मौत को अपना रहे हैं। वायुमंडल में बढ़ते कार्बन डाईआक्साइड के प्रभाव से जीवनदायी ऑक्सीजन गैस निष्क्रिय हो रही है। श्वांस लेने के लिए शुद्ध ऑक्सीजन मुश्किल होता चला जा रहा है।

श्वास हम ले तो रहे हैं लेकिन फेफड़ों में ज़हरीली गैसें पहुंच रही हैं, जिसके फलस्वरूप दुनिया में प्रतिदिन लाखों लोग हृदयाघात, डायबिटीज, रक्तचाप, किडनी से सम्बंधित बीमारियों, कैंसर, डिप्रेशन, खांसी, दमा आदि की चपेट में आकर मृत्यु को प्राप्त कर रहे हैं।

वैज्ञानिकों की मानें तो अगले 100 वर्षों में पृथ्वी पर ऑक्सीजन दुर्लभ गैस होगा। इसी प्रकार अत्यधिक कार्बन उत्सर्जन की वजह से हमारे वायुमंडल का ओजोन परत तेज़ी से निष्प्रभावी हो रहा है। इस परत पर मौजूद ओजोन गैस, जो सूर्य की अति-प्रभावी एवं हानिकारक किरणों के दुष्प्रभाव को रोकती है, निष्क्रिय हो रही है। अगर स्थिति इसी तरह बनी रही, वह दिन दूर नहीं जब सूर्य की तीखी और हानिकारक किरणों के प्रभाव से पृथ्वी पर जीवन असंभव हो जाएगा।

साथ ही वायुमंडल तेजी से गर्म हो रहा है, जिसकी वजह से मौसम और जलवायु अनयिमित होता चला जाएगा। कार्बन के अत्यधिक घनत्व की वजह से बादल यात्रा नहीं कर पाएंगे, फलस्वरूप कहीं अत्यधिक वर्षा से बाढ़ तो कहीं सूखे की स्थिति बनेगी।

सर्वाधिक कार्बन उत्सर्जित करने वाले देश

फोटो साभार- Flickr

पर्यावरण का आंकलन करने वाली एजेंसी एडगर डाटाबेस के 2017 के आकड़ों के अनुसार हमारा पड़ोसी देश चीन दुनिया में सर्वाधिक कार्बन उत्सर्जित करने वाला देश है, जो हमारे लिए बेहद खतरनाक संकेत है।

अगर हम प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन की बात करें तो क्रमशः अमेरिका, कनाडा, रूस, जापान, जर्मनी, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे देश हैं। स्पष्ट है भारत में अधिक कार्बन उत्सर्जन की बड़ी वजह जनसख्या है, अन्यथा विकसित राष्ट्रों की भूमिका ज़्यादा गंभीर है फिर भी सीमाएं और पहरे सिर्फ ज़मीन पर हो सकती हैं, वायुमंडल में फैल रहे जहर से हम सभी बराबर प्रभावित होंगे।

कैसे रुकेगा, खतरनाक कार्बन उत्सर्जन?

आज विकास की अंधी दौड़ अब विनाश की अंधी दौड़ साबित हो चुकी है। निःसंदेह ऊर्जा’ हमारी प्राथमिक आवश्यकता है लेकिन ऊर्जा उत्पादन के लिए जीवाश्म ईंधन, कोयला और कच्चे तेल जैसे अत्यधिक कार्बन उत्सर्जित करने वाले परम्परागत स्रोतों को 2050 तक पूरी तरह में बंद करना होगा। इसकी जगह हमें गैर-परम्परागत व अक्षय ऊर्जा के स्रोत सौर ऊर्जा एवं पवन ऊर्जा का प्रयोग करना होगा।

साथ ही अन्य दैनिक कार्यों में कार्बन उत्सर्जित करने वाले उपक्रमों में सीसीएस यानी ‘कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज’ तकनीक से उत्सर्जन को कम करना होगा। पौधे एक मात्र पृथ्वी पर पाए जाने वाले सजीव हैं, जो कार्बन डाई-आक्साइड अवशोषित करते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं। अतः अत्यधिक मात्रा में पेड़ लगाना होगा।

कार्बन उत्सर्जन को लेकर ‘भारतीय पहल’

कार्बन उत्सर्जन को लेकर भारत लगातार वैश्विक मंच पर पहल कर रहा है और अत्यधिक कार्बन उत्सर्जित करने वाले विकसित राष्ट्रों को नसीहत दे रहा है। पिछले दिनों भारतीय रेलमंत्री पीयूष गोयल ने कहा, “भारतीय रेलवे 2030 तक कार्बन रहित यात्रा करेगा।” नवीन व नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय लगातार सौर-ऊर्जा को बढ़ावा दे रहा हैय़

हालांकि सरकार बड़े पैमाने पर कोई कार्यक्रम अब तक नहीं बना सकी है। साथ ही मुंबई का फेफड़ा माने जाने वाले आरे के जंगलों की कटाई भी एक बेहद अमानवीय कदम है।

वैश्विक संगठनों को आगे आना होगा

सबसे पहले पूरी दुनिया के नेताओं को इस मामले में भाषणबाज़ी से आगे बढ़कर ठोस कदम उठाने होंगे। इसके लिए संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे वैश्विक संगठनों को आगे आना होगा। वैश्विक स्तर पर कार्बन फ्री औधौगिक, यातायात एवं ऊर्जा नीति तैयार करनी होगी। संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी देशों को इसके दायरे में लाना होगा।

ऐसा ना करने वाले देशों की सदस्यता समाप्त करते हुए उनके विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय गोलबंदी करनी होगी। ऐसे देशों के खिलाफ ठोस रणनीति के तहत उन्हें दंडित करना होगा। उन्हें किसी भी प्रकार की वैश्विक सहायता बंद करनी होगी। उनके साथ सजग देशों को हर प्रकार का द्विपक्षीय रिश्ता समाप्त करना होगा।

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

सोचिए 20 वर्ष पूर्व तक बोतल बंद पानी सिर्फ रेलवे या कुछ सरकारी कार्यक्रमों में दिखता था। आज बढ़ते जल प्रदूषण की वजह से गाँव-गाँव में बोतल बंद पानी लोगों की ज़रूरत बन गई है। वह वक्त दूर नहीं जब वायु प्रदूषण की वजह से कल हमें ऑक्सीजन सिलेंडर लेकर चलना पड़े। आज हम और आप जाति, धर्म, गाय, गोबर, मंदिर और मस्जिद के लिए लड़ रहे हैं, कल हम लड़ेंगे ऑक्सीजन के लिए।

घर-घर कौन कितना ऑक्सीजन लेगा, इसके लिए झगड़े होंगे। चाकू की नोक पर ऑक्सीजन सिलेंडर लुटे जाएंगे। जिस प्रकार आज आसमान से पंक्षी गायब हो गए, इंसान भी गायब होने लगेंगे। एक बात याद कर लें, हम जंगली थे जो विकास की तलाश में विनाश के पास आ गए। अब लौटना होगा, पुनः जंगली बनना होगा।

चलिए एक उम्मीद के साथ इस लेख को विराम देता हूं कि पर्यावरण संकट पर हम और आप मिलकर कुछ पहल करेंगे ताकि चीज़ों में सुधार हो। आज दिवाली है और आज के दिन हानिकारक पटाखों से निकले धुएं की वजह से भारत में प्रदूषण का स्तर उच्चतम होता है।

अगर हम अपनी और अपने बच्चों की ज़िन्दगी को लेकर वाकई फिक्रमंद हैं, तो इस दिवाली प्रण लें कि हम पटाखे फोड़कर अपनी तबाही का जश्न नहीं मनाएंगे । हम सुरक्षित रहेंगे तो धर्म, परंपरा, संस्कृति और त्यौहार सब सुरक्षित रहेगा।

संदर्भ-  https://bit.ly/2N7zXFJ

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