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“क्या जामिया में शांतिपूर्ण विरोध भी गलत है?”

“मैं इस विश्वविद्यालय में बीए की छात्रा हूं, मैं झारखंड से आती हूं। बीते 9 अक्टूबर को जामिया प्रॉक्टर ऑफिस की तरफ से मेरे घर पर फोन करके मेरे माता-पिता को कहा जाता है कि आप लोग तीन दिनों के भीतर दिल्ली आइए और मिलिए, नहीं तो आपकी बेटी के खिलाफ डिसिप्लीनरी एक्शन का मामला दर्ज किया जाएगा। अब कोई व्यक्ति कैसे इतनी जल्दी झारखंड से यहां आ सकता है? सच कहे तो जामिया प्रशासन हम बच्चों के भविष्य को ‘बर्बाद’ करना चाह रहा है।”

यह कहना है जामिया प्रशासन की तरफ से ‘कारण बताओ नोटिस’ पाने वाली छात्रा सुमेधा पोद्दार का। पोद्दार आगे कहती हैं,

हम पांच लोगों के खिलाफ ‘कारण बताओ नोटिस’ जारी किया गया है और अपनी बात रखने के लिए सिर्फ 7 दिन का समय दिया गया था। इसकी मियाद पिछले 15 अक्टूबर को पूरी हो गई है लेकिन हमलोग इस नोटिस का जवाब नहीं देंगे, क्योंकि हमने शांतिपूर्ण तरीके से प्रोटेस्ट करके कोई गलती नहीं की है।

कैसे शुरू हुआ यह मामला?

धरना पर बैठे स्टूडेंट्स।

बीते पांच अक्टूबर को यूनिवर्सिटी में आर्किटेक्चर फैकल्टी की ओर से रखे गए प्रोग्राम ‘ग्लोबल हेल्थ जेनिथ: कॉन्फ्लूएस 19’ में इज़राइल को पार्टनर रखने का विरोध इन स्टूडेंट्स ने किया था, जिसके बाद जामिया प्रशासन की तरफ से गौहर, अनस, सुमेधा पोद्दार, अर्जुन और अबू दरदा के खिलाफ शो-कॉज़ नोटिस जारी किया गया।

टर्किस डिपार्टमेंट में बीए तृतीय वर्ष के छात्र अनस बाताते हैं,

हमलोग शांतिपूर्ण तरीके से इसका विरोध कर रहे थे, तभी प्रॉक्टर के गार्ड ने हमलोगों के साथ बदतमीज़ी करनी शुरू कर दी। इसके बाद शो-कॉज़ नोटिस जारी करते हुए हमलोगों के खिलाफ कार्रवाई करने की धमकी दी जाने लगी। क्या एक स्टूडेंट को अब इस लोकतंत्र और माइनॉरिटी इंस्टीच्यूट में शांतिपूर्ण तरीके से विरोध करने का भी अधिकार नहीं है।

अनस बताते हैं कि कल यानि शुक्रवार को हम लोगों के धरने का पांचवां दिन है। रात में हम छात्रों के साथ-साथ लड़कियां भी रुकती हैं पर जामिया प्रशासन की तरफ से कोई सुरक्षा व्यवस्था नहीं है।

गौहर बताती हैं,

इन पांच दिनों में विश्वविद्यालय की तरफ से कोई सुध लेने नहीं आया है। रात में हर डिपार्टमेंट बंद हो जाने की वजह से हमलोग ठीक से पानी तक नहीं पी पाते हैं। यहां तक कि पुरुष शौचालय व वॉशरूम हम लड़कियों को मजबूरी में इस्तेमाल करना पड़ रहा है पर कोई सुनने वाला नहीं है।

स्ट्राइक के लिए सेंट्रल कैंटीन ही क्यों चुना?

इस पर स्टूडेंट अनस बताते हैं,

इस जगह को जामिया का हृदय बोला जाता है, क्योंकि यहां पढ़ने वाला हर विद्यार्थी इस कैंटीन में लंच या डिनर करने के लिए आता है। इस कारण से हमने यह जगह चुनी, ताकि हर स्टूडेंट इस चीज़ को महसूस कर सके कि एक आवाज़ को कभी भी दबाया नहीं जा सकता है। आप दीवार पर सामने देख रहे हैं ना ‘पाश’ की पंक्ति, ‘सबसे खतरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना’ और हम अपने सपनों को कभी मरने नहीं देंगे।

अब आगे क्या कदम उठा सकते हैं ये स्टूडेंट?

जामिया में विरोध प्रदर्शन करते स्टूडेंट्स।

गौहर और अनस बताते हैं कि जब तक हमारी बात को माना नहीं जाता है, हमलोग यहां से उठने वाले नहीं हैं। सीधे-तौर पर देखे तो जामिया प्रशासन हमलोगों की आवाज़ को बंद करना चाहती है। ज़रूरत पड़ी और यदि हमारी आवाज़ नहीं सुनी जाती है तो अगले सोमवार से हमलोग भूख हड़ताल पर बैठेंगे।

पोद्दार बताती हैं, “प्रशासन की मनमानी की वजह से हमारी पढ़ाई बाधित हो रही है। अगले सप्ताह से हम लोगों का इंटर्नल एग्ज़ाम भी है लेकिन हम हार नहीं मानने वाले हैं। ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन (आईसा) के माध्यम से हम स्टूडेंट अपनी मांग लेकर ही रहेंगे। हमलोगों की कोई गलती नहीं है। मारपीट और गाली गलौज़ प्रॉक्टर के गार्डों ने हमारे साथ किया है।”

क्या कहना है प्रशासन का?

वहीं इस मामले में जामिया के चीफ प्रॉक्टर प्रोफेसर वसीम अहमद खान से बात करने पर उन्होंने बताया कि इस इवेंट में इज़राइल का किसी भी तरह का कोलैबोरेशन नहीं था। उन्होंने बताया कि 5 तारीख को इज़राइल-फिलिस्तीन मुद्दे पर इंटरनैशनल कॉंफ्रेस की गई थी और उस इंटरनैशल कॉंफ्रेस में स्टूडेंट्स ने प्रोटेस्ट किया, नारेबाज़ी की। हमें यह बात एक दिन पहले ही कहीं से पता चल गई थी कि कुछ स्टूडेंट प्रोटेस्ट करेंगे मगर हमें यह नहीं पता चला था कि वे स्टूडेंट्स कौन हैं।

हमें प्रोटेस्ट के बारे में जैसे ही पता चलता हमने संबंधित डिपार्टमेंट के डीन से पूछा कि क्या उनके इंटरनैशल कॉंफ्रेस में इज़राइल का कोई कोलैबोरेशन है? डीन ने हमें बताया कि ऐसा कुछ भी नहीं है, बस इज़राइल के एक कैंडिडेट (वहां के एक प्रोफेसर) का पेपर प्रेजेंट करने के लिए आया है।

प्रोफेसर वसीम अहमद खान ने इस बारे में आगे बात करते हुए कहा कि हमने स्टूडेंट्स को बुलाकर बात की। उनकी गलती के लिए उन्हें शो-कॉज़ नोटिस भी दिया। लेकिन उन स्टूडेंट्स ने इसका कोई जवाब नहीं दिया। हमने इनके घर तक टेलीफोन करवाएं कि आप लोग आइए और हमसे मिलिए। वाइस चांसलर ने कहा था कि इनके घर से बात कीजिए। हमने फ्राइडे तक का वक्त दिया। हमने इनके लिए कल डीसी (डिसिप्लिनरी कमेटी) करवा दी है, डीसी में भी कोई अपीयर नहीं हुआ है।

मेरा कहना है कि ये बच्चे हमसे बात करते, हमें इनफॉर्म करते। मैं बिलकुल मानता हूं कि उनका डेमोक्रेटिक राइट है लेकिन प्रोटेस्ट के पहले हमसे मिलना भी तो चाहिए था। अगर आप जंतर-मंतर पर प्रोटेस्ट करते हैं तो क्यों पुलिस से परमिशन लेते हैं या उन्हें इन्फॉर्म करते हैं।

हम उनके डेमोक्रेटिक राइट का कोई हनन नहीं कर रहे हैं। ना हम हनन करना चाहते हैं, अगर वे मुझसे दो दिन पहले आकर यह कहते कि इसमें इज़राइल का कोई इनवॉल्मेंट है, तो मैं उस डिपार्टमेंट के डीन से खुद बात करता। मगर स्टूडेंट्स ने बिना बताए इंटरनैशनल कॉंफ्रेस में प्रोटेस्ट किया। अगर ये दादागिरी करना चाहेंगे तो जामिया में ऐसा नहीं होगा, 20 स्टूेंड्च 20 हज़ार स्टूडेंट को डिस्टर्ब कर रहे हैं।

डिसिप्लिनरी कमेटी ने इस संबंध में फैसला ले लिया है, उम्मीद है सोमवार तक फैसला सुना दिया जाएगा।

 

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