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कविता: “मेरी गरीबी और मजबूरी पर, किस्मत भी छुपकर रोती है”

फोटो साभार- Flickr

Representational image. Source: Flickr

कुछ पंक्तियां उन सभी गरीब और लाचार बच्चों को समर्पित है, जो हालात के हाथों मजबूर होकर अपने बचपन को भी नहीं जी पा रहे और ना ही उन्हें यह पता है कि उनका भविष्य क्या है। यह तो सच है कि इन पंक्तियों से उनकी हालत बदलने वाली नही है मगर आग्रह है कि समाज के सभी लोग मिलकर इनके लिए कुछ अच्छा करें ताकि देश का भविष्य सुंदर बन सके।

भूखी रहकर भी मैं

जी भर के मुस्काती हूं,

आभावों में जीकर भी मैं

तनिक भी ना घबराती हूं।

 

हां, है पसंद मुझे भी पढ़ना

पढ़कर ही आगे बढ़ना,

मगर राह भरे हैं कांटों से

मुश्किल है इन पर चलना।

 

योजनाएं बहुत आती हैं

जनता को भी लुभाती हैं,

घिरे हैं जो आभावों से

उन तक पहुंच नहीं पाती है।

 

होती है राजनीति भी जमकर

मेरी गरीबी और मजबूरी पर,

किस्मत भी छुपकर रोती है

मेरी हालत और लाचारी पर।

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