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गाँधी बोले, “गोली मारो”

गाँधी

गाँधी

गाँधी बोले, “गोली मारो”

मेरी राख का इक कण लेकर

उससे इक मूरत बनवाओ

लाखों मूरतें बन जाएंगी।

 

मूरतें वो घर-घर बंटवा दो

और सब को बंदूक थमा दो,

औरतों बूढ़ों बच्चों से फिर

इक-इक कर गोली चलवा दो।

 

मेरे जिस्म को कर दो छलनी

मेरे लहू को बह जाने दो,

मुझको फिर से मर जाने दो

गोलियां खत्म ही हो जाने दो।

 

ताकि ज़िंदा इंसानों को

बाज़ारों को, चौराहों को

दबती-घुटती आवाज़ों को

हिन्दुस्तां के अरमानों को

कोई गोली दाग ना पाए।

 

शायद इससे यूं हो जाए

मैं मिट जाऊं, वो बच जाए

गाँधी बोले, “गोली मारो!”

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