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मुंबई शहर को हर साल जलमग्न होने से बचाता है आरे जंगल

मुंबई के फेफड़े कहे जाने वाला आरे जंगल आज अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। सरकार आरे जंगल को मेट्रो कार शेड बनाने के लिए काट रही है।

4 अक्टूबर को बम्बई हाई कोर्ट ने कहा कि आरे जंगल नहीं है। मैं पूरी तरह इस बात से सहमत हूं कि आरे एक जंगल नहीं है, अपितु एक संपूर्ण जैव विविधता है। आरे जंगल के भीतर लगभग 25 से अधिक छोटे-बड़े गाँव हैं और इन गाँवों में सदियों से तकरीबन 5000 आदिवासी रहते हैं।

इस जंगल में लगभग 5 लाख से अधिक पेड़ हैं। 50 से अधिक अलग-अलग जानवर हैं। आरे जंगल में कुछ लुप्तप्राय जानवर भी पाए जाते हैं।सबसे महत्वपूर्ण बात आरे जंगल मीठी नदी का जलग्रह है और इसी कारण मुंबई शहर हर वर्ष अत्याधिक जलमग्न होने से बचता है। इतने सारे रहस्य को छुपाए बैठा है आरे जंगल।

आरे जंगल, फोटो साभार – ट्विटर

क्या हम विकास विरोधी हैं?

हमारा यह मानना है कि पर्यावरण संरक्षण खुद में एक विकास का पैमाना है। हम सभी चाहते हैं कि मेट्रो का निर्माण जल्द से जल्द हो, जिससे मुंबई के आम नागरिकों को आवागमन में सुविधा मिल सके। हम अंतिम मील कनेक्टिविटी में विश्वास रखते हैं, परंतु प्रश्न यह है कि हम कैसा विकास चाहते हैं?

विकास की आड़ में हम मौत को आमंत्रण तो नहीं दे रहे? देश- दुनिया में कई ऐसे शहर है जो विकास की आड़ में खुद को बर्बाद कर बैठे हैं। साउथ अफ्रीका के शहर केप टाउन में पानी के लिए त्राहि-त्राहि मची हुई है। आने वाले कुछ सालों में जकार्ता, इंडोनेशिया की राजधानी नहीं रहेगी, इसके पीछे की वजह है जलवायु परिवर्तन।

इसलिए हमें इस विकास के मॉडल को छोड़ कर सतत विकास की ओर ध्यान देना होगा।

आरे जंगल को बचाने के लिए विरोध प्रदर्शन करते लोग, फोटो साभार- ट्विटर

क्या आरे जंगल में कार शेड का निर्माण अवैध है?

सरकार के खुद के रवैए से यह पाक साफ होता है कि आरे जंगल में कार शेड का निर्माण अवैध है। पहले आरे जंगल का क्षेत्र नो-डेवलपमेंट ज़ोन में था,परंतु सरकार ने इसे डेवलपमेंट ज़ोन में तब्दील कर दिया और दूसरा ये क्षेत्र इको सेंस्टिव ज़ोन में है।

इस क्षेत्र में कार्य करना पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 का उल्लंघन है।

कैसे पहुंचा यह मामला उच्चतम न्यायालय तक?

आरे जंगल को बचाने का प्रयास आज से नहीं बल्कि कई सालों से किया जा रहा है। मुंबई के नागरिक कई बार सड़क पर उतर कर इसका विरोध भी कर चुके हैं लेकिन हर बार सरकार इस विरोध को कुचल देती है।

4 अक्टूबर को जब बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा इससे संबंधित सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया गया तो उसके कुछ ही घंटे बाद ही बीएमसी ने पेड़ काटना शुरू कर दिया। इसका विरोध करने गए नागरिकों को मुंबई पुलिस ने गैर-ज़मानती वॉरंट की धाराएं लगा कर अरेस्ट कर लिया।

इसके बाद लॉयड लॉ कॉलेज के एक छात्रों का समूह जिसकी अगुवाई ऋषव रंजन कर रहे थे, उन्होंने मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर इस मुद्दे पर कार्यवाही करने की मांग की।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को संज्ञान में लिया और 2 जज बेंच की एक कमिटी का गठन किया। 7 अक्टूबर को यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लिस्ट हुआ और सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश दिया  कि अगली सुनवाई तक यथास्थिति बरकरार रहे। अब अगली सुनवाई 21 अक्टूबर को है।

________________________________________________________________________________लेखक आरे जंगल को बचाने हेतु मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखने वाले स्टूडेंट डेलीगेशन का पार्ट हैं।

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