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बिहार में दलितों के खिलाफ अत्याचार के मामलों में 15% का इज़ाफा

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देशभर में दलितों के खिलाफ हुए अत्याचार के मामले में उत्तर प्रदेश और बिहार टॉप पर है। वहीं, मध्य प्रदेश तीसरे स्थान पर तथा राजस्थान चौथे स्थान पर है। एनसीआरबी 2017 के आंकड़ों पर नज़र डाले तो देशभर में हुए दलितों के खिलाफ अत्याचार के 57% मामले सिर्फ इन चार राज्यों में दर्ज़ किए गए।

एनसीआरबी 2017 के आंकड़ों के अनुसार,

दलितों पर हुए अत्याचार में देशभर में दूसरा स्थान प्राप्त करने वाले बिहार पर नज़र डाले तो,

देशभर में तीसरा स्थान प्राप्त करने वाले मध्यप्रदेश के आंकड़ों पर नज़र डाले तो,

इसी प्रकार राजस्थान के आंकड़ों पर नज़र डाले तो,

समाज के निम्न वर्ग के खिलाफ कौन लोग हैं?

इतने कठोर कानून के बावजूद देश में दलितों के खिलाफ अत्याचार के मामलों में कोई गिरावट नहीं आ रही है, बल्कि दिन-प्रतिदिन यह आंकड़े बढ़ते ही जा रहे हैं। इससे तो यही साबित होता है कि हमारा समाज आज भी समाज के निम्न वर्ग के खिलाफ है।

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने अपने जजमेंट के माध्यम से दलितों के खिलाफ अत्याचार विरोधी कानून को हटाने का प्रयास किया था जिसके खिलाफ देशभर में आंदोलन हुए, जिसके बाद सरकार ने मजबूर होकर कानून को रिस्टोर किया।

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट का इस मामले पर जजमेंट आया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने भी चिंता जताई कि आज़ादी के 70 साल बाद भी हमारे देश में छुआछूत व्याप्त है और दलितों के खिलाफ अत्याचार हो रहे हैं। हम आज़ादी के 70 साल बाद भी दलितों को उनका हक नहीं दे पाए हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने जजमेंट के माध्यम से अपने पूर्व के जजमेंट को रद्द करते हुए दलितों के अत्याचार के खिलाफ बने एससी-एसटी एक्ट में मुकदमा दर्ज़ होने के बाद बिना किसी उच्च स्तरीय अधिकारी की अनुमति के जांच अधिकारी द्वारा अभियुक्त की गिरफ्तारी के प्रावधान को जारी रखा।

दो साल बाद जारी किए गए एनसीआरबी के आंकड़े

वैसे नियम के तहत एनसीआरबी के आंकड़े पिछले वर्ष ही आ जाने चाहिए थे लेकिन ये आंकड़े 2 साल बाद आए हैं। ऐसे में क्या यह मानकर चला जाए कि मोदी सरकार बच्चों, महिलाओं, दलितों और आदिवासियों के खिलाफ बढ़ते अत्याचार के आंकड़ों को छुपाना चाहती थी? हमें यह भी समझना होगा कि बीच में लोकसभा चुनाव भी था।

खैर, एनसीआरबी का मौजूदा आंकड़ा देश की सामाजिक व्यवस्था के लिए दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है। इससे यह साबित होता है कि हमने आज भी छुआछूत की व्यवस्था को जारी रखा है।

क्या कर रहे हैं दलित नेता?

इन चार राज्यों में बिहार एक ऐसा राज्य है, जहां से वर्तमान में देश के कद्दावर दलित नेता राम विलास पासवान आते हैं। इतने बड़े दलित नेता के सत्ता में होने के बावजूद बिहार में दलितों के खिलाफ हो रहे अत्याचार के मामलों में रिकॉर्ड बढ़ोतरी चिंता का विषय है।

खाद्य आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री राम विलास पासवान। फोटो साभार- Flickr

मैं रामविलास पासवान और नीतीश कुमार से पूछना चाहूंगा कि खुद को दलितों के शुभचिंतक कहने में तो आपलोग पीछे नहीं हटते हैं मगर इनके खिलाफ जब अत्याचार होता है, तब क्यों खामोश हो जाते हैं? देशभर में दलितों की सुरक्षा की दृष्टिकोण से बिहार सबसे खतरनाक क्यों बना हुआ है?

इन तमाम सवालों का जवाब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और भाजपा के अन्य नेताओं को देना चाहिए।

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