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क्या बिहार की बाढ़ प्रकृति की अनदेखी का नतीजा है?

बीते दिनों से बिहार में हो रही बारिश के कारण जनजीवन बेहाल हो चुका है। बिहार की राजधानी पटना पूरी तरह से बाढ़ की चपेट में है। यहां के अधिकांश घरों के ग्राउंड फ्लोर में पानी भर चुका है और बाढ़ का प्रकोप इतना भयावह है कि अब तक इससे कई लोगों की जान भी जा चुकी है।

बिहार में भारी बारिश की वजह से जो स्थिति पैदा हुई है, उस पर और ज़्यादा बात करने से पहले याद करते हैं ग्रेटा थनबर्ग के उस भाषण को जो उन्‍होंने हाल ही में संयुक्‍त राष्‍ट्र में दिया था।

ग्रेटा ने जलवायु परिवर्तन के बारे में चेताया था

जो लोग इस नाम से परिचित नहीं हैं, उनके लिए यह बताना ज़रूरी हो जाता है कि ग्रेटा थनबर्ग स्वीडन से हैं और 16 साल की हैं। वह अपने देश में पर्यावरण ऐक्टिविस्‍ट के तौर पर काम करती हैं।

ग्रेटा थनबर्ग, फोटो साभार-ग्रेटा थनबर्ग फेसबुक प्रोफाइल

अब बात करते हैं उनके भाषण की। पर्यावरण ऐक्टिविस्‍ट ग्रेटा थनबर्ग ने अपने भाषण में दुनिया भर के नेताओं को जलवायु परिवर्तन से होने वाले नकारात्‍मक प्रभावों को लेकर चेताया था।

उन्‍होंने अपने भाषण में दुनिया भर के नेताओं को संबोधित करते हुए कहा कि आपने हमारे सपने और बचपन अपने खोखले शब्दों से छीना है। हालांकि मैं अभी भी भाग्यशाली हूं लेकिन जो लोग झेल रहे हैं और मर रहे हैं, उससे पूरा ईको सिस्टम बर्बाद हो रहा है।

अब वक्त आ गया है कि हम पर्यावरण को लेकर सचेत हो जाएं। अगर अब भी हमने ऐसा नहीं किया तो आने वाले समय में इंसानों को इसके भयंकर परिणाम झेलने पड़ेंगे।

बिहार की स्थिति का ज़िम्मेदार कौन?

अब वापस बिहार की बाढ़ पर आते हैं। अगर ऐसा कहा जाए कि बिहार में आज जो स्थिति है, वह पर्यावरण को लेकर अनदेखी की वजह से पैदा हुई है, तो क्‍या यह बात आपको सही नहीं लगती? क्या इस बाढ़ का ज़िम्‍मेदार केवल प्रकृति को मानना क्या यह उचित है?

हमने अपने निजी हित के खातिर जंगलों, पहाड़ों और तालाबों को इतना कमज़ोर कर दिया है कि अगर एक दिन भी लगातार बारिश हो जाए तो हमारे देश के कई हिस्‍से पानी में डूब जाते हैं।

आज बिहार में जो भी हालात हैं, उसके लिए हमारा सिस्‍टम ही ज़िम्मेदार है। अगर हमने प्रकृति को ध्‍यान में रखते हुए सड़कों और घरों का निर्माण किया होता तो लगातार बारिश के बाद वहां जो स्थिति पैदा हुई है, वैसी कभी नहीं होती। आसमानों से बारिश के ज़रिये ज़मीन पर गिरने वाले पानी को अगर अपना रास्‍ता नहीं मिलेगा तो वह इसी तरह बाढ़ की शक्‍ल में हमारे घरों में घुस जाएगा।

जलवायु और पर्यावरण के मुद्दे पर चुप्पी

ऐसे में ग्रेटा थनबर्ग का वह भाषण काफी प्रांसगिक हो जाता है, जो उन्‍होंने स्‍वीडन में दिया था। सबसे बड़ी विडम्‍बना यह है कि हर मुद्दे पर अपनी सरकार से सवाल करने वाली जनता जलवायु और पर्यावरण के मुद्दे पर कोई सवाल नहीं करती है।

फोटो साभार- Whatsapp

देश के तमाम सरकारों ने विकास के नाम पर नेचर के साथ जो खिलवाड़ किया है, उसी का नतीजा है कि आज बिहार में सड़कों से लेकर अस्‍पतालों तक पानी भर गया है। पर्यावरण को लेकर हम सभी को सोचना पड़ेगा नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब ग्रेटा थनबर्ग की एक-एक बात हमारे सामने ही हकीकत बन जाएगी।

शायद तब हम यह खुद से सवाल करने पर मजबूर हो जाएंगे कि हमने उस वक्‍त क्‍यों नहीं कुछ किया? शायद तब बहुत देर हो चुकी होगी और हमारे पास अफसोस करने के सिवा कुछ नहीं बचेगा।

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