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“ट्यूशन वाले सर के यहां हमें शौचालय वाले मग से पानी पिलाया गया”

जातिवाद

जातिवाद

अभी हाल ही में मैंने जातिवाद पर एक लेख लिखते हुए यह बाताया था कि किस तरह से झारखंड के दुमका ज़िले के नोनीहाट प्रखंड के ठारी गाँव में शादी अटेंड करने के दौरान दलितों के साथ भेदभाव किया जा रहा था। मैंने जातिगत भेदभाव को लेकर उस लेख में बहुत सारी बातें बतााई थी मगर वहां सामूहिक तौर पर दलितों के साथ भेदभाव किया गया था।

आज इस लेख के ज़रिये जातिगत भेदभाव से जुड़ी बहुत सारी बातें मैं आपको बताने जा रहा हूं, जो हमारे समाज में परत दर परत बैठी हुई है। साल 2007 की बात है, जब दोस्तों के साथ मैं पास के गाँव में गणित पढ़ने जाया करता था। हम सभी स्टूडेंट्स मस्ती में अमरूद खाते-खाते गाँव की कच्ची सड़कों पर मस्ती करते हुए मास्टर साहब के यहां लगभग पहुंचने ही वाले थे।

हर रोज़ की तरह हमें अंदाज़ा था कि हम मास्टर साहब के यहां जाकर बैठेंगे, जिसके काफी देर बाद वह हाथ में छड़ी लेकर आएंगे मगर उस रोज़ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। मास्टर साहब तो आए, उनके हाथ में छड़ी भी थी मगर शहर की एक महिला भी उनके पीछे-पीछे आ रही थी, जिनकी निगाहें दूर से ही हमें घूर रही थीं।

अब शुरू हुआ असल जातिवाद। यूं तो रोज़ाना हमारे पैरों में धूल लगे होते थे फिर भी मास्टर साहब की चौकी पर बैठ जाते थे। हमसे कोई नहीं पूछता था कि हमारे पैरों में मिट्टी क्यों लगी है लेकिन उस रोज़ जो हुआ, आज भी हमारे ज़हन में उसकी यादें ज़िंदा हैं। हम सभी स्टूेंड्स चौकी पर बैठ चुके थे और इसी बीच शहर से मास्टर साहब के पीछे-पीछे आने वाली महिला ने हमें फटकार लगाते हुए चौकी से उतर जाने के लिए कहा।

पहले तो हम समझ भी नहीं पाए कि हो क्या रहा है फिर उन्हें कहते सुना कि डोम, चमार, दुसाध और मुसहर के बच्चों को इतनी आज़ादी क्यों दिया है तुमने? मास्टर साहब ने ये बातें सुनकर कुछ नहीं कहा मगर उस महिला ने हम सभी के पैर धुलवाए, हममें से कुछ स्टूडेंट्स ने चप्पल पहने थे, उन्हें बाहर ही उतारने के लिए कहा गया और इस प्रकार से उस रोज़ पढ़ाई के बाद हम अपने-अपने घर लौट गए।

हमें लगा कि दूसरे दिन उस महिला से हमारी मुलाकात नहीं होने वाली है मगर वह तो पहले से ही दरवाज़े पर खड़ी होकर हमारा इंतज़ार कर रही थी। उन्होंने सभी को हाथ और पैर धुलवाया फिर अंदर आने दिया।

चलिए हाथ और पैर धुलवाने वाली बात को यह मानकर चल सकते हैं कि स्वच्छता के हिसाब से वह सही था मगर डोम, चमार, दुसाध और मुसहर बोलकर संबोधित करना जातिवाद नहीं तो और क्या?

इन महिलाओं को कौन समझाए कि मौत के बाद श्मशान घाट में डोम के सानिध्य में ही जाना पड़ता है। इन्हें कौन बताए कि जूते-चप्पल का फैला हुआ व्यापार चमार शब्द के इर्द-गिर्द ही टिका हुआ है और इन्हें कौन बतलाए कि दुसाध और मुसहर से भी जीवन के अलग-अलग पड़ाव पर हर किसी का पाला पड़ता ही है।

प्रतीकात्मक तस्वीर।

खैर, अभी तो मास्टर साहब के यहां दूसरे दिन की बात पूरी भी नहीं हुई है। तो यहां तक हमने बता दिया कि हमारा हाथ-पैर धुलवाकर हमें अंदर जाने दिया गया। इसी बीच हमारे एक दोस्त को जब प्यास लगी, तब वह हमेशा की तरह पानी पीने अंदर आंगन में चला गया।

वहां वही महिला खड़ी थी, जिन्होंने शौचालय वाले मग में हमारे दोस्त को पानी दिया। यह सिलसिला कुछ रोज़ तक जारी रहा और इस दौरान लगभग सभी दोस्तों को उस शौचालय वाले मग में पीने के लिए पानी दिया गया।

उसी रोज़ देर रात हम टहलते-टहलते मास्टर साहब के घर की तरफ से गुज़र रहे थे और अब जो देखा, वह वाकई में बेहद शर्मनाक था। मास्टर साहब हमलोगों को जिस चौकी पर बैठकर पढ़ाते थे, उसे पानी से धोया जा रहा था।

हम दोस्तों को काफी बुरा लगा और हममें से कई स्टूडेंट्स मास्टर साहब के यहां पढ़ने जाना बंद कर दिए। आज ये चीज़ें बरबस याद आ गई तो लेख के ज़रिये साझा कर दिया। आपसे गुज़ारिश है कि यदि आपने भी जातिगत भेदभाव का सामना किया है, तो अपनी बात ज़रूर साझा करिए।

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