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क्या राज्यों के चुनावों में नहीं काम करता है लोकसभा चुनाव का समीकरण?

वोटर्स

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पिछले कुछ सालों में चुनावी राजनीति को समझने और विशेषज्ञों की राय सुनने के बाद मैं यही समझ पाया कि इस देश के ज़्यादातर राज्यों में जब हम (वोटर) केंद्र की सरकार चुनने का काम करते हैं, तब हमारे विचार अलग होते हैं और जब राज्य की बारी आती है तब विचार कुछ और होते हैं।

पिछले कई सालों से भारत में ऐसा देखने को मिलता है कि जिस राजनीतिक दल को लोकसभा चुनाव में जीत मिलती है, उसे विधानसभा चुनावों में उतनी सफलता नहीं मिलती है। ऐसा भी देखा जाता है कि राज्य के चुनाव में अच्छा नतीजा आने पर केन्द्र में पार्टी को सफलता नहीं मिलती है। इससे यह तो साफ है कि केन्द्र और राज्य के चुनावों में वोटरों का नज़रिया अलग-अलग होता है।

इस बात को केवल मैं ही नहीं महसूस कर रहा हूं, बल्कि तमाम राजनीतिक पंडित पिछले कई वर्षों से इस चीज़ को मानते आए हैं। इसी के लिए मैं कुछ राज्यों के उदाहरण देना चाहूंगा।

पहले मैं अपने गृह राज्य हरियाणा का ज़िक्र करना चाहूंगा। 2009 में जब यहां लोकसभा चुनाव हुए थे, तब काँग्रेस को 10 में से 9 सीटें मिली थीं मगर उसी साल जब राज्य सरकार के लिए चुनाव हुए तब 90 विधानसभा सीटों में से काँग्रेस को सिर्फ 40 सीटें मिली।

नरेन्द्र मोदी। फोटो साभार: Getty Images

भाजपा की बात की जाए तो साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी को क्रमश: 7 और 10 सीटें मिली थी। वहीं, जब राज्य चुनाव की बारी आई तब 2014 में भाजपा को 46 तो वहीं 2019 में 40 सीटें मिली।

अब बात देश की राजधानी दिल्ली के चुनावों की कर लेते हैं। 2014 में लोकसभा चुनावों में जहा भाजपा ने 7 की 7 सीटें जीत ली थी, वहीं 2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को सिर्फ 3 सीटें मिली। जबकि आम आदमी पार्टी 67 सीटें जीतने में सफल रही।

2018 मे मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में काँग्रेस पार्टी की जीत हुई थी। इसी के साथ कामलनाथ, भूपेश बघेल और अशोक गहलोत इन राज्यों के मुख्यमंत्री बने मगर जब इन्हीं राज्यों में कुछ महीने बाद लोकसभा चुनाव हुए तब सभी सीटों पर भाजपा ने बाज़ी मार ली और काँग्रेस हाथ मलती रह गई।

अब मैं महाराष्ट्र का ज़िक्र करना चाहूंगा, क्योंकि अभी-अभी वहां चुनाव हुए हैं। जब 2019 में वहां लोकसभा चुनाव हुए थे, तब भाजपा को 23 और शिवसेना को 18 सीटें मिली थीं। राज्य के चुनाव में भाजपा के नतीजे तो लगभग ठीक हैं मगर शिव सेना जिसने लोकसभा चुनाव में 18 सीटें जीती थीं, विधानसभा में सिर्फ 50 सीटें ही पार कर पाई जो लोकसभा के मुकाबले कम है।

राहुल गाँधी। फोटो साभार- Twitter

हालांकि सभी राज्यों में ऐसी बात नहीं है। कई राज्यों में जनता का मिजाज़ स्टेट और केंद्र के चुनाव में एक जैसा होता है। मिसाल के तौर पर पंजाब की बात की जा सकती है, जहां 2017 के विधानसभा चुनाव में काँग्रेस को 117 में से 77 सीटें  मिली थीं और इस साल के लोकसभा चुनाव में कुल 13 सीटों में से काँग्रेस के पाले में 8 सीटें गई।

उत्तर प्रदेश में 2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को 80 में से 72 सीटें मिली। वहीं, 2017 विधानसभा चुनाव में पार्टी के पाले में 300 से अधिक सीटें गई। 2019 विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो 60 से अधिक सीटें पार्टी के नाम दर्ज़ हैं।

देश के वोटरों का जो सोचने का तरीका है वह मुझे काफी सही लगता है, क्योंकि हमें सिर्फ एक पार्टी के पीछे नहीं चलना चाहिए बल्कि दूसरों को भी मौका देना चाहिए।

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