यह लैटिन अमेरिका के एक समृद्ध देश चिली की तस्वीर है। चिली की कुल जनसंख्या 18.1 मिलियन है और इस वक्त 1 मिलियन लोग प्रोटेस्ट करते हुए देश से असमानता दूर करने की मांग कर रहे हैं।
क्यों हो रहा है प्रोटेस्ट
सरकार द्वारा मेट्रो किराया बढ़ाए जाने के विरोध में कुछ दिनों पहले यह आंदोलन शुरू हुआ था। सरकार ने किराए में बढ़ोतरी का फैसला तो वापस ले लिया लेकिन इसके बावजूद प्रदर्शन नहीं थमा। वजह, इस देश में लगातार आर्थिक असमानता बढ़ती जा रही है। अर्थात चुनिंदा लोगों के पास बहुत धन है।
इसी गैर-बराबरी और रहन-सहन के खर्च में बढ़ोतरी की चिंताओं को लेकर प्रदर्शन जारी है। चिली में इस वक्त It was not depression, it was capitalism (यह डिप्रेशन नहीं था, यह पूंजीवाद था) और If there is no bread for the poor there will be no peace for the rich (अगर गरीबों के लिए रोटी नहीं है, तो अमीरों के लिए शांति नहीं होगी), जैसे हज़ारों कोट आपको दीवारों पर लिखें दिख जाएंगे।
इस वक्त चिली की सड़कों पर चिली के वामपंथी कॉ. विक्टर जारा (Vector Jara) का गाया गया गीत el derecho de vivir en paz (शांतिपूर्ण रहने का अधिकार) भी खूब गूंज रहा है।
हॉन्गकॉन्ग, चिली, लेबनान, लीबिया जैसे कई देशों की जनता अपनी सरकारों की गलत नीतियों और साम्राज्यवादी नीतियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रही है।
भारत में भी है ऐसे आंदोलन की ज़रूरत
एक तरफ चिली में सिर्फ मेट्रो का किराया बढ़ने पर जनता सड़क पर आंदोलन के लिए उतर आई है, वहीं दूसरी तरफ भारत देश है जहां बेरोज़गारी, गिरती अर्थव्यवस्था, बलात्कार, किसानों की दुर्दशा, महंगाई, भुखमरी, निजीकरण, पूंजीवाद, साम्राज्यवाद आदि के चरम पर होने के बावजूद भी जनता आंदोलन का रास्ता नहीं अपना रही है। बल्कि भारत देश की जनता जाति, धर्म, मंदिर-मस्जिद, गाय, राम, वंदे मातरम् और पाकिस्तान के नाम पर आपस में ही लड़ रही है।
भारत में लोकतंत्र के नाम पर तानाशाही जन्म ले रही है और सत्ता में बैठे लोग इस देश को गृहयुद्ध की तरफ धकेलना चाहते हैं। फिर भी इस देश के लोग या तो चुप बैठे हैं, या आपस में लड़ रहे हैं या फिर सोशल मीडिया पर वीडियो बना रहे हैं।
भारतीय सरकार के झूठ, दिखावटीपन, साम्प्रदायिक सोच और नाकारेपन के खिलाफ जनता को घरों से निकलने की ज़रूरत है। लेकिन लगता है कि ऐसी ताकत और जज़्बा भारतीय जनता में नहीं है, क्योंकि हर कोई यह चाहता है कि भगत सिंह, चे ग्वेरा, बिरसा मुंडा, पेरियार, फुले, अम्बेडकर मेरे घर में नहीं बल्कि पड़ोसी के घर में पैदा हो। मैं तो अपने परिवार का लालन-पोषण कर लूं, यही बहुत है।
नोट: इसी बीच चिली के राष्ट्रपति ने 15 दिन का आपातकाल लगाते हुए पूरी कैबिनेट को बर्खास्त कर दिया था। इस आंदोलन के दौरान लगभग 20 लोगों की जान जा चुकी है। चिली के इस आंदोलन में महिलाओं और युवाओं की भागीदारी ज़बरदस्त है। साथ ही आज चिली के राष्ट्रपति ने आपातकाल खत्म करने की घोषणा भी कर दी है लेकिन आंदोलन लगातार जारी है।