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जब बेटी के शव के लिए इंतज़ार कर रहे पिता नहीं भूले देशभक्ति

1 अक्टूबर 2017 अर्थात महात्मा गांधी के पुण्य तिथि से एक दिन पहले, राजकीय पॉलीटेक्निक उत्तरकाशी में एक तृतीय वर्ष की छात्रा आत्महत्या कर बैठती है कारण किसी को भी नही पता। धर्म से वह मुसलमान थी और देहरादून की रहने वाली थी। वह बहुत मिलनसार थी सबके प्रति अच्छा व्यवहार रखती थी, घर की सबसे छोटी और लाडली होने के साथ-साथ मेरी मुंह बोली बहन भी थी।

करीब दिन में यह घटना घट जाती है लेकिन मुझे शाम को पता चलता है कि ऐसा कुछ हुआ है। करीब शाम 6:30 पर मेरी एक मित्र जो बी टेक घुड़दौड़ी में थी, उसने कॉल करके बताया कि यह घटना हो गयी है।

परिजनों को बताया बेटी की तबियत खराब

मैंने जब यह सुना तो मैं तुरंत ज़िला अस्पताल पहुंच गया। वहां छात्रा (मृत) के लगभग 15-20 क्लासमेट थे। परिवार वालों को पता नहीं था कि ये सब हो गया है लेकिन पुलिस वालों के माध्यम से उन्हें सूचना दे दी गयी थी और यह बताया गया था कि छात्रा की तबियत खराब है।

परिवार वालों को पहुंचने में टाईम लगना था और रात भी हो चुकी थी इसलिए वहां पर मौजूद उसके सभी साथी घर चले गए। अस्पताल में मैं और मेरा एक दोस्त रुका रहा। करीब 9 बजे मुझे छात्रा की बड़ी बहन का कॉल आया कि उसकी तबियत कैसी है? मैंने भी मन रखने के लिए कह दिया कि ठीक है डॉक्टर उसके पास है। अब कह भी क्या सकता था, तभी मैंने उन्हें पूछा कि वे कब तक आएंगें। उन्होंने कहा लगभग 11 बजे तक। तब तक मैं वहीं अस्पताल में बैठा रहा, रात 11:20 पर परिवार वाले पहुँच गए।

मैं उन्हें लेकर पुलिस स्टेशन ले गया। वहीं सब इंस्पेक्टर ने बडी विनम्रता से कह ही डाला कि आपकी बेटी इस दुनिया मे नहीं रही। एकाएक सन्नाटा छा गया उसकी बड़ी बहन रोने लगी। अब होनी को कौन टाल सकता था।

पोस्टमॉर्टम की लड़ाई

तभी अचनाक उसके परिवार वालों ने कहा कि हमें अपनी बेटी दे दो लेकिन पुलिस ने कहा कि उसका पोस्टमॉर्टम होगा तभी मिलेगी। शायद छात्रा के मज़हब में पोस्टमार्टम नहीं होना चाहिए। परिवार वालों ने ज़िद्द की कि वे घर जाना चाहते हैं लेकिन रात बहुत हो चुकी थी और ज़िला प्रशासन(DM) से घर जाने की परमिशन लेना इतनी रात को मुश्किल था इसलिए पुलिस कर्मचारी ने उन्हें अपनी व्यवस्था से होटल में ठहरा दिया।

फिर मैं सुबह 4:30 पर उनसे मिलने होटल में आया और थोड़ी देर बाद हम DM से मिलने DM आवास पर चले गए। सुबह के करीब 6:30 मिनट हो चुके थे पर हमारा किसी से कोई सम्पर्क नही हुआ। तभी वहां एक कर्मचारी आया, उसने कहा,

आपको बिना पोस्टमार्टम के आपको बेटी नहीं मिल सकती है और ना ही मुझे लगता है कि DM सर आपको परमिशन देंगे। आप एक काम कीजिए किसी स्थानीय विधायक जी से बात करिए।

फिर मैं उन्हें विधायक आवास पर ले गया लेकिन वे वहां नहीं थे। मैंने उन्हें कॉल किया तो उन्होंने भी वही जवाब दिया कि ऐसे बिना पोस्टमार्टम के आप बॉडी नहीं ले जा सकते हैं क्योंकि रूल यही कहता है कि जब किसी व्यक्ति (महिला/पुरुष) की अपने क्षेत्र से बाहर मृत्यु हुई हो तो बिना पोस्टमार्टम के आप उसे नहीं ले जा सकते हैं।

दुख की घड़ी में भी नहीं भूले देशभक्ति

अब उनकी आखिरी उम्मीद DM सर थे पर उन्होंने भी साफ- साफ कह दिया था कि पहले पोस्टमॉर्टम कराओ। अंत में परिवार वाले थक-हार कर मान गए।
अब हम ज़िला अस्पताल में थे लेकिन सारे डॉक्टर साहब  गाँधी जी की जंयती मानने में व्यस्त थे। उन्हें उन बुज़ुर्गों की आंखों के आंसू नजर नहीं आ रहे थे। वे सब भाषण-बाज़ी में व्यस्त थे।

उसके बाद जो पल आया उसे शायद मैं कभी भूल नही पाऊंगा। करीब साढ़े सात बजे राष्ट्रीय ध्वज को फहराया गया जिसके बाद सब राष्ट्रगान गाने लगे। वहां मौजूद हर शख्स राष्ट्रगान और ध्वज के सम्मान में खड़ा हो गया। तभी मेरी नज़र उस लड़की के बेबस बुज़ुर्ग पिता पर पड़ी जो धर्म से मुसलमान था, पढ़ा-लिखा भी नहीं था और जो अभी बेटी के गम में गमगीन था, वह पिता खड़ा होकर राष्ट्र गान गाने लग गया।

यह देख के पता चला कि देश में आज भी देशभक्ति गरीब और लाचार लोगों से ही है। पढ़े-लिखे लोग तो आज भी सिनेमा घरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान ना हो इसका विरोध करते हैं।

उसके बाद लड़की का पोस्टमॉर्टम हुआ। इतनी सुबह हमारे इलाके में मार्केट नहीं खुलता। फिर भी एक मित्र को कॉल करके मैंने कपड़ा मंगवाया। लड़की के बेजान पड़े शरीर को कपड़े में लपेटा और उसे गाड़ी में रखकर उसके परिवार वालों को उनके घर देहरादून की ओर रवाना कर दिया।

 

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