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“पटना के 90% इलाकों का जलमग्न हो जाना हथिया नक्षत्र नहीं हो सकता”

फोटो साभार- अनुपमा सिंह

फोटो साभार- अनुपमा सिंह

27 सितंबर की रात 9 बजे से जब बारिश शुरू हुई, तब हमें एहसास था कि तेज़ बारिश होगी मगर बारिश नॉन स्टॉप सुबह तक होती रही और देखते ही देखते पटना के लगभग 90 फीसदी इलाके जलमग्न हो गए।

सुबह के उजाले के साथ जल जमाव देखकर दिमाग सन्न रह गया मगर हम पटना वाले परिस्थिति के साथ खुद को ऐसे ढालते चले गए कि घंटे दो घंटे की तेज़ बारिश में एक-डेढ़ फीट जलजमाव के साथ एडजस्ट तो कर गए लेकिन इस बार एक-डेढ़ फीट नहीं, बल्कि पांच से दस फीट के बीच तक का जल जमाव था।

कई लोग तो पहले दिन ही कहने लगे कि बाढ़ आ गया, बाढ़ आ गया। हम उस वक्त भी कहते रहे कि यह हमारे ड्रेनेज सिस्टम का फेलियर है, यह डबल इंजन वाली सरकार की फेलियर है और इस फेलियर में नगर निगम की भी भूमिका है।

यह उन तमाम आला अधिकारियों की भी विफलता है, जिनपर संप हाउस और नाले को दुरुस्त करने का ज़िम्मा था। खैर, ये चीज़ें तो पहले दिन हमारी राय थी मगर 27 की रात से हम अब 2 अक्टूबर की रात तक पहुंच गए हैं और अब लग रहा है सबसे बड़ा फेलियर हमारा था, हम बिहार की जनता इतना टॉलरेंस लाते कहां से हैं?

हमें तोड़नी होगी अपनी चुप्पी

हम तब क्यों नहीं जागे थे जब किसी गली में बिन मौसम चेंबर लिकेज की वजह से पानी जमा रहता था? हम तब क्यों नहीं जागे थे जब पटना के कई कॉमर्शियल से लेकर रेज़िडेंशियल इलाकों में एक डेढ़ फीट तक पानी भर जाया करता था?

हम तब क्यों नहीं जागते थे जब शहर में सड़क किनारे नालों को पाटकर उस पर गलत तरीके से कंस्ट्रक्शन करके दुकान-मकान का रेंट वसूला जा रहा था? हम तब क्यों नहीं जागे थे जब शहर के तमाम पोखड़ और तलाब को बंद कर उन सब जगह बड़ी-बड़ी बिल्डिंग से लेकर सोसाइटी की नींव रखी जा रही थी?

फोटो साभार- Twitter

हम तब क्यों नहीं जागे जब पटना के पेड़ों को काटे जा रहे थे? हम तब क्यों नहीं जागे जब पटना के हरेक घाट को छोड़ गंगा हमसे दूर जा रही थी? हम तब क्यों नहीं जागे जब ग्राउंड वॉटर लेवल कम हो रहे थे।

अगर हम समस्या की शुरुआत में ही जागरुक होते, तो पटना शहर के साथ पूरे बिहार की ऐसी हालत नहीं होती। अब तो मामला काफी बड़ा हो गया है। अब तो राजनीतिक और प्रशासनिक तंत्र से लेकर इको सिस्टम तक के फेलियर को सही करने में वक्त लगेगा।

सीएम का हथिया नक्षत्र वाला बयान शर्मनाक है

नीतीश कुमार तीन दिनों से त्रासदी झेल रही पटना की सैर पर रात के वक्त निकले थे और मीडिया को दिए बयान से इतने बेशर्म नज़र आ रहे थे, जिसका ज़िक्र शब्दों में करना संभव ही नहीं है।

क्या हम 343 मिलीमीटर पानी बरसने को मुख्यमंत्री के अनुसार क्लाइमेट चेंज का इम्पैक्ट मानकर चुपचाप रहें? प्रकृति के दोहन को दोष देकर पूरे सरकारी तंत्र और बिहार सरकार की नाकामी को छुपा लेना शर्मनाक है।

फोटो साभार- Twitter

मेरा घर दिनकर चौक से पूरब की ओर काजीपुर मेन रोड पर है और यहां बारिश की वजह से 5 फीट पानी का जमाव हो गया और मेरे घर के पीछे आधे किलोमीटर पर नए टोले-मोहल्ले में कीचड़ के अलावा तीन दिनों की बारिश में ज़रा भी जल जमाव नहीं हुआ। यह सिर्फ एक उदाहरण मात्र है, पूरे शहर की यही हालात है। कहीं बिल्डिंग का एक एक फ्लोर डूब गया है, तो कहीं बारिश के बाद भी रोड में जलजमाव नहीं है।

अब ऐसे में सुशासन बाबू को कोई तो नींद से जगाकर यह समझाए कि यह हथिया नक्षत्र वाला पानी या क्लाइमेट चेंज नही है। यह फेलियर आपके 38 के 38 संप हाउस के बंद होने का है। कितनी अजीब बात है कि शहर में 9 बड़े नाले तो हैं मगर उन्हें समय-समय पर दुरुस्त ही नहीं किया जाता है। हथिया नक्षत्र वाला बयान बेहद शर्मनाक है। शहर के लगभग 90 फीसदी इलाकों का जलमग्न हो जाना हथिया नक्षत्र तो कतई नहीं हो सकता है।

गली-मोहल्लों में अब वृक्ष नहीं दिखाई पड़ते

कंकड़बाग और राजेंद्र नगर पटना का काफी पुराना रेज़िडेंशियल एरिया है, जिसमें वीआईपी से लेकर वीवीआईपी लोगों का घर रहा है और यह इलाका भी बरसात में संवेदनशील बना रहा है। मतलब जल जमाव थोड़ी सी बारिश में आम बात है, तो क्या सरकार को नहीं चाहिए था कि इन इलाकों को भी ऊंचा करवाया जाए?

फोटो साभार- अनुपमा सिंह

अपना पटना पाटलीपुत्र की स्वर्णिम इतिहास से निकलकर मेट्रो सिटी बनने की ओर अग्रसर हो रहा था। इसी दौरान नमामि गंगे परियोजना, गैस पाइप लाइन जैसे कई और कार्य समानांतर चल रहे थे लेकिन आप पटना सिटी से लेकर फुलवारी शरीफ और दानापुर तक गलियों, मुहल्लों और पार्कों में देख आइए आपको 500 पेड़ भी नहीं मिलेंगे। यह कैसा विकास कर रहे हैं सुशासन बाबू?

निराशा चरम पर है लेकिन दिक्कत यह है कि हम ना तो सवाल खड़े करते हैं और ना ही हंगामा। अभी जो कुछ भी हुआ उस पर क्रांतिकारी जनता कैंडल मार्च से लेकर अनशन तक करेगी और प्रगतिशील लोगों का जत्था ए.सी. वाले रूम में बंद होकर चर्चा और परिचर्या करेगी।

सरकारी तंत्र करोड़ों रुपये की योजना बनाकर खुद की पीठ थपथपाएगा फिर पौधारोपण के नाम पर चारों तरफ हैशटैग गो ग्रीन के साथ फोटो शेयर होगा, जिसको एक नन्हें पौधे के साथ आधा दर्ज़न लोग लगा रहे होंगे। साल दो साल या फिर अगले साल जब फिर से ऐसा झटका हमें मिलेगा तब हम कहेंगे, “हमनी से कौन पाप हो गेल है? भगवान कितना खिसिया गेलथिन हे, नवरात्रि में सजा दे रहलथिन है।”

भगवान-भगवान करके हम सब ज़िम्मेदारी मुक्त होकर निकल लेंगे।

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