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“गाँधी जयंती पर आखिर क्यों ट्रेंड करता रहा गोडसे अमर रहे?”

गाँधी

गाँधी

2 अक्टूबर यानि गाँधी जयंती, क्या आपने इस दिन अपने मित्रों और रिश्तेदारों का व्हाट्सएप स्टेट्स और फेसबुक वॉल देखा? एक सज्जन ने लिखा था, “जब 15 साल से देश में किसी बलात्कारी को फांसी नहीं हुई हो, तो समझ लें देश को गाँधी की नहीं बल्कि गोडसे की ज़रूरत है।” 

एक दूसरे सज्जन ने गाँधी जयंती के दिन व्हाट्सएप पर सिर्फ शास्त्री को याद किया तो मैंने उन्हें याद दिला दिया कि आज शास्त्री के साथ बापू की भी जयंती है, तो वह उबल पड़े और अंदर की कुंठा बहार आ गई। वह कहने लगे कि मैं भगत सिंह, असफाक और बोस को अपना आदर्श मानता हूं, गाँधी को नहीं।

उन्हें कौन बताए कि जिस शास्त्री की जयंती की बधाई देकर वह गाँधी को छोड़ रहे हैं, वह शास्त्री गाँधी के कितने बड़े दीवाने थे, जो गाँधी के एक आह्वान पर पढ़ाई छोड़कर स्वतंत्र आंदोलन में कूद पड़े थे लेकिन मामला यहीं तक नहीं था। बापू की जयंती के दिन “गोडसे अमर रहे” देर रात तक ट्विटर पर ट्रेंड करता रहा। मैं पूछता हूं आखिर क्यों?

सोशल मीडिया पर अफवाहों का दौर

यह कोई पहला मौका नहीं था जब फेसबुकिया ज्ञान के ज्ञानी और व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरों ने गाँधी को लेकर अफवाह फैलाई हो। नेहरू और गाँधी को लेकर जितने फेक इनफॉर्मेशन व्हाट्सएप पर दौड़ रहे हैं, शायद ही किसी और के बारे इन फर्ज़ी जानकारियों को फैलाने का काम किया जा रहा होगा। 

फोटोशॉप पर गाँधी और नेहरू की तस्वीरों का खूब इस्तेमाल किया गया। उनकी महिलाओं के साथ अश्लील तस्वीरें बनाई गई और खूब फैलाई गई। एक तस्वीर दस अलग-अलग रूपों और संदेशों के साथ पेश की गई और इस बात को साबित करने की कोशिश की गई कि गाँधी चरित्रहीन, डरपोक, अंग्रेज़ों के एजेंट, मुस्लिम परस्त और विभाजन के ज़िम्मेदार थे। गाँधी को नीचा दिखाने के लिए गोडसे के पक्ष में कसीदे लिखे गए, उसे महान क्रांतिकारी और देशभक्त बताया गया।

अगर गाँधी होते तो?

कई बार सोचता हूं अगर गाँधी होते तो इन लोगों के साथ क्या करते? उत्तर मिलता है, वह इन्हें भी गले से लगा लेते क्योंकि यह लोग अज्ञानता के अंधकार और नफरत की आग में जल रहे हैं, जिन्हें नफरत नहीं बल्कि प्यार और सहानभूति की ज़रुरत है। 

गाँधी तो अंग्रेज़ों से भी नफरत नहीं करते थे शायद इसलिए चौड़ी-चौड़ा अग्नि कांड के बाद असहयोग आंदोलन वापस ले लिया गया था। हालांकि वह जानते थे कि इसका प्रभाव बुरा होगा और देश में स्वतंत्रता के लिए उठा उबाल शांत हो जाएगा। गाँधी जेल में डाल दिए गए मगर उन्होंने अपने मूल्यों से समझौता नहीं किया।

बापू को पता था कि भारत में बने कट्टे और जंग खा चुकी बन्दूकें दुनिया के सबसे ताकतवर देश से सामना नहीं कर सकती। उनके लिए एक ऐसा हथियार चाहिए जो उन्हें झुकने पर मजबूर कर दे। गाँधी आज़ादी के लिए खून का एक और कतरा बहाने के खिलाफ थे लेकिन वह उन लोगों का भी सम्मान करते थे जो गाँधी की इस अहिंसा वाली सोच से असहमत थे और उनका विरोध करते थे।

गाँधी का एक आह्वान

1857 की क्रांति के बाद यह पहली बार था जब गाँधी ने पूरे देश को एक सूत्र में बांध दिया और उनके एक आह्वान पर कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और कराची से लेकर कोलकाता तक सत्याग्रह शुरू हुआ था। बापू देश के हर प्रान्त, भिन्न भाषा और अलग खान-पान वाले लोगों की भावना से जुड़ चुके थे और इसलिए जब खिलाफत आंदोलन शुरू हुआ तो बापू ने उसको अपना समर्थन दे दिया। 

हालांकि उसका ताल्लुक देश से नहीं था लेकिन देश की एक बड़ी आबादी की भावना उस आंदोलन से जुडी़ थी। बापू की सभाओं में जब वैष्णव भजन गया जाता था तो सभी धर्मो के लोग उसे सुनते और गाते भी थे।

आज टिक-टॉक के युग वाले युवाओं से यह अपेक्षा नहीं कर सकते कि वे गाँधी के बारे में पढ़ते या उनके बारे में सब कुछ जानते हैं। हम बस उनसे इतना चाहते हैं कि वे गाँधी को जितना जाने सही जाने।

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