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हेलेन का शरणार्थी से क्वीन ऑफ कैबरे बनने का सफर

हेलेन, यह नाम पहचान का मोहताज नहीं है। इस नाम को सुनते ही हमारे दिमाग में कभी “हावड़ा ब्रिज” का “चिन चिन चू”, तो कभी “शोले” का “महबूबा महबूबा”, तो कभी “डॉन” का “ये मेरा दिल” गाना आंखों के सामने जीवंत हो उठता है।

फिर भी हमने हेलेन के फिल्म जगत में दिये योगदान पर प्रकाश डालने का प्रयास शायद ही किया है।

संघर्षों से भरा हुआ बचपन

हेलेन के बचपन की बात करें तो उनका बचपन संघर्षों से भरा हुआ था। उनका जन्म 21 नवंबर 1938 में हुआ। हेलेन भारतीय मूल की नहीं हैं। दरअसल, बर्मा में हुए जापानी अंत:प्रवेश के कारण उनका परिवार भी बाकी लोगों के साथ वहां से भाग निकला था। पिता जॉर्ज डेस्मियर की मृत्यु तो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ही हो गई थी।

बेघर एवं बेसहारा पैदल यात्रा करते हुए कठिनाइयों से भरे इस सफर में कई लोग पीछे छूट गये। हेलेन की मां का गर्भ भी ना ठहर पाया। तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए, उन लोगों को शरणार्थी के रूप में भारत में स्थान मिला। वह लोग बर्मा से डिब्रूगढ़, डिब्रूगढ़ से कलकत्ता एवं कलकत्ता से बम्बई पहुंचे।

बम्बई अलबत्ता हेलेन का ही इंतज़ार कर रहा था। बम्बई पहुंचकर हेलेन की माँ ने नर्स का काम करना शुरू किया लेकिन उनकी कमाई में पूरे घर का खर्च नहीं चल पाता था। जिसके कारण हेलेन को स्कूल भी छोड़ना पड़ा। हेलेन बचपन में ही मुश्किलों से रूबरू हो चुकी थीं।

हेलेन का सिनेमा का शुरुआती सफर

कुकू, जो पहले से ही हिंदी सिनेमा में अपनी पहचान बना चुकी थीं। हेलेन की माँ की दोस्त थीं। कुकू ने ही हेलेन को फिल्मों में प्रवेश दिलाया।
उनका फिल्म जगत से राब्ता 1951 में हुआ, जब वह 13 साल की थीं। शबिस्तान एवं आवारा जैसी फिल्मों में उन्होंने कोरस डांसर्स के बीच काम किया। इसी दौरान उन्होंने मणिपुरी, भरतनाट्यम एवं कथक भी सीखा।

आवारा के बाद उन्हें सन 1952 में आई फिल्म अलिफ-लैला में “ये बहारें फिर ना आएंगी” गाने में मुख्य डांसर के रूप में काम करने का मौका मिला। कारवां यूं ही बढ़ता रहा और हेलेन को पहचान मिली 1958 में आई फिल्म “हावड़ा ब्रिज” के गाने “चिन चिन चू” से।

हेलेन ने एक साक्षात्कार में इससे जुड़ी एक दिलचस्प बात भी बताई थी कि जब यह गाना लोकप्रिय हुआ तो वह एक दिन अपनी माँ के साथ कहीं जा रही थीं। तभी सिग्नल पर जब गाड़ी रूकी तो कुछ लोगों ने उनको पहचाना एवं उनका नाम लिया। यह देखकर उनकी माँ इतनी उत्साहित हुईं कि उन्होंने हेलेन का मुंह बाहर निकालकर कहा कि यही हेलेन है।

यह सिलसिला जब शुरू हुआ तो थमा ही नहीं। इसके बाद हेलेन ने यहूदी, सावन, अनाड़ी, गंगा-जमुना, हम हिंदुस्तानी, चा चा चा, आदि अनेक फिल्मों में काम किया।

क्वीन ऑफ कैबरे

वैसे तो कैबरे को हिंदी सिनेमा में लाने का श्रेय कुकू को दिया जाता है लेकिन जिस अंदाज़ और परिधान के साथ हेलेन ने कैबरे को प्रस्तुत किया, उन्हें “क्वीन ऑफ कैबरे” की ख्याति दी गई। वह कैबरे के लिए अपने परिधान एवं मेकअप खुद ही चुना करती थीं।

हेलेन विदेशी सिनेमा से बहुत प्रभावित हैं। इसी कारण जब वह उस दौर में विदेशी यात्राओं पर जाती थीं, तो वहां से फैदर आदि खरीदकर लाती थीं। जो उनके गानों मे देखे जा सकते हैं।

बतौर डांसर 60 एवं 70 के दशक में उनकी प्रसिद्धि ऐसी थी कि निर्देशक उनका एक गाना अपनी फिल्म में ज़रूर चाहते थे। यदि उनके पास समय नहीं होता था तो निर्देशक अपनी फिल्मों की डेट्स बढ़ा दिया करते थे। इसी कारण वह एक अभिनेत्री के रूप में अधिक फिल्में नहीं कर पाईं।

बेटे सलमान खान के साथ भी किया काम

1979 में आई फिल्म “लहू के दो रंग” के लिए उन्हें सहायक कलाकार का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला। हिंदी सिनेमा के उस दौर में जब अभिनेत्रियां लाज-शर्म का घूंघट ओढ़े, पर्दे पर प्रस्तुत की जाती थीं। हेलेन ने अपने बेबाक चरित्र का परिचय देते हुए, अपना अलग मुकाम बनाया।

हेलेन ने ना सिर्फ कैबरे बल्कि भारतीय शास्त्रीय नृत्य को भी बखूबी निभाया। जब उन्होंने 90 के दशक में फिल्मों में वापसी की तो उन्हें अपने बेटे सलमान खान के साथ काम करने का मौका भी मिला। 1999 में आई फिल्म “हम दिल दे चुके सनम” में हेलेन ने सलमान की माँ का किरदार निभाया। 700 से भी अधिक फिल्मों में काम करने के लिए उनके अमूल्य योगदान को 2009 में पद्मश्री से नवाज़ा गया।

उन्होंने एक टी़वी सीरियल ‘दो लफ्जों की कहानी’ में भी काम किया। हेलेन ने अधिक शिक्षा प्राप्त नहीं की। परंतु वह हमेशा से ही किताबें पढ़ने की शौकीन रही हैं। बॉलीवुड में बोल्डनेस लाने वाली यह अभिनेत्री इस वर्ष 81 बरस की हो जाएंगी। इस समय वह अपने परिवार एवं दोस्तों के साथ अपना बेहतरीन वक्त बिता रही हैं।

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