अनजान शहर, अनजान रास्ते
अगर किसी से कुछ पूछा तो
हर शख्स अपना ही ज्ञान बांटने में लगा है
यहां कुछ ऐसे भी हैं, जो किसी का भी सर खाए बिना नहीं रह सकते।
इस अनजान सफर के कुछ राही
मदद करने में लगे हैं, तो
कुछ झगड़ा करने में
कुछ फिक्र करते हुए दिखें
तो कुछ घूरते हुए मिले।
अनजानों के बीच कुछ अपने बनते हुए भी दिखे हैं
इन सभी के बीच ज़हन में सवाल भी हज़ार हैं
शक किया जाए या यकीन
पर खुद पर भरोसा होना ज़रूरी है।
कुछ मजबूरी में काम करते हुए, तो
कुछ खुद को निखारते हुए
और कुछ ऐसे भी हैं जो सिर्फ
अपने दर्द को छुपाए शांत होकर काम करते दिखें।
वक्त के साथ एक-एक कर लाइट बन्द होती जा रही हैं
वहीं दूसरी तरफ सब घर लौटते दिखें,
कुछ साइकिल पर सवार हैं, तो
किसी के पास गाड़ियों की भरमार है।
किसी के लिए रात की सुनसान सड़क
डर की मोहताज है, तो
किसी के लिए अपना खुला बागान है।
कोई असहज महसूस करता है, तो
कोई धुएं के छल्ले बनाते हुए घूमता है
कोई अकेला है, तो कोई झुंड में है
किसी का साथी डर है, तो
किसी का आत्मविश्वास।
यही है अनजान शहर में
अनजानों के बीच
एक अकेली “लड़की”
के सफर की कहानी।
बातें तो बहुत होती हैं
पर आज भी सच्चाई कुछ और ही है
वक्त तो बदल रहा है और इंसान भी
पर “सोच” बदलने का वक्त ना जाने कब आएगा?