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हिन्दू बहुल कश्मीर बौद्ध धर्म और इस्लाम से कैसे प्रभावित हुआ?

लेखक अनुराग पांडेय दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं। कश्मीर के इतिहास और वर्तमान स्थिति पर उनके लेखों की शृंखला की यह दूसरी कड़ी है।

पिछले लेख में आपने पढ़ा कि किस तरह अशोक के अतिरिक्त कारकोटा और उत्पला राजवंशों ने कश्मीर पर शासन किया। उसके बाद 1585 से 1751 तक मुगल वंश का शासन रहा और 1751 में दुर्रानी वंश (जो मूलतः अफगानी थे) ने मुगल सेना को हराकर दुर्रानी साम्राज्य की स्थापना की।

दुर्रानी शासन ने मुस्लिम, बौद्ध और हिन्दू सभी कश्मीरियों पर बहुत अत्याचार किए। टैक्स की राशि कई गुना कर दी गई और आम कश्मीरियों की हालत बद से बदतर होती चली गई लेकिन उसके बाद दुर्रानी शासन का भी अंत हुआ।

दुर्रानी शासक अहमद शाह, फोटो साभार -YouTube

सिख शासन का उदय और दुर्रानी शासन का अंत

सन् 1819 में सिख राजा रणजीत सिंह ने कश्मीर पर आक्रमण करके दुर्रानी शासक को हराया। इसमें रणजीत सिंह को कश्मीर की आम जनता का पूर्ण समर्थन मिला क्योंकि दुर्रानी शासन आतताई था और कश्मीरियों को यह उम्मीद थी कि रणजीत सिंह सुशासन लाएंगे लेकिन सिख शासक दुर्रानी शासकों से भी ज़्यादा अत्याचारी निकले।

सिख शासन सभी कश्मीरियों के लिए घाटी में दमनकारी साबित हुआ। जिनमें मुस्लिम, हिन्दू, बौद्ध और सिख सभी शामिल थे। सिख शासकों ने जनता पर लगने वाला टैक्स दुर्रानी साम्राज्य से भी ज़्यादा किया, जिससे कश्मीर की जनता पर बोझ कई गुना बढ़ गया और सिख शासकों के राजस्व में कई गुना बढ़ोतरी हुई।

सिख शासकों ने मुस्लिमों पर कई तरह के कानूनी प्रतिबंध लगाए। जैसे, जानवर हत्या के लिए फांसी की सज़ा, श्रीनगर की जामा मस्ज़िद को बंद करने का आदेश और नमाज़ अदा करने पर पूर्ण प्रतिबंध, अज़ान पर प्रतिबंध और तीज-त्यौहार का सार्वजिक क्षेत्रों में मनाने पर प्रतिबंध इत्यादि।

सिख शासक रणजीत सिंह, फोटो साभार- YouTube

सनद रहे, मीर साम्राज्य पहला मुस्लिम शासन था। दुर्रानी शासन आतताई था, मगर मुगल शासकों ने कश्मीरियत का सम्मान किया। इनमें से किसी भी शासक ने हिन्दू या बौद्ध पर किसी भी तरह का कोई धार्मिक प्रतिबंध नहीं लगाया था।

सिख शासन के समय ही यूरोपियन व्यापारियों का आवागमन शुरू हुआ और कश्मीरी शॉल विश्व में प्रसिद्ध हुई। सिख शासकों को यूरोपियन व्यापारियों एवं स्थानीय व्यापारियों से मोटा टैक्स मिलता था।

सिख शासन पूरे जम्मू-कश्मीर और लद्दाख क्षेत्र तक फैला। जिसमें राजा गुलाब सिंह का रणकौशल और नीतियां महत्वपूर्ण थीं और सन् 1822 में राजा रणजीत सिंह ने गुलाब सिंह को (जो राजा रणजीत सिंह के सबसे ज़्यादा विश्वासपात्र अधिकारी थे) जम्मू का राजा घोषित किया।

राजा गुलाब सिंह ने जम्मू में डोगरा साम्राज्य स्थापित किया

राजा रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद गुलाब सिंह के दो बेटों ने सिख अधिकृत भाग पर हमला किया मगर दोनों बेटे युद्ध में मारे गए। गुलाब सिंह के सबसे छोटे बेटे की हत्या उसके चचेरे भाई हीरा सिंह ने की जो सिख शासन के विश्वासपात्र थे और सिख साम्राज्य में प्रधानमंत्री के पद पर आसीन थे।

राजा गुलाब सिंह, फोटो साभार- सोशल मीडिया

गुलाब सिंह ने ही हीरा सिंह को सिख दरबार में प्रवेश दिलवाया था ताकि हीरा सिंह को कश्मीर का शासक बनाया जा सके और डोगरा साम्राज्य पूरे जम्मू-कश्मीर और लद्दाख क्षेत्र में फैल जाए लेकिन हीरा सिंह की अति- महत्वाकांक्षा ने गुलाब सिंह की योजना को सफल नहीं होने दिया और परिणामस्वरूप गुलाब सिंह के तीनों बेटे मारे गए।

सिख हीरा सिंह की चाल समझ गए थे और जब हीरा सिंह ने सिख राजा शेर सिंह के खिलाफ बगावत की तब उन्हें मार दिया गया। धीरे-धीरे गुलाब सिंह ने सिख राजाओं की कमज़ोरी का फायदा उठाकर डोगरा साम्राज्य को पूरे कश्मीर तक फैला दिया और इसका प्रमुख कारण था सन् 1845 में सिख शासन और ब्रिटिश सैनिकों के मध्य युद्ध।

राजा गुलाब सिंह 1846 तक इस युद्ध से अलग रहे। सनद रहे, राजा गुलाब सिंह और लाल सिंह (जो सिख सेना के साथ थे) ने मिलकर सिख पराजय सुनिश्चित की ताकि डोगरा वंश का शासन स्थापित किया जा सके।

अमृतसर संधि और राजा हरि सिंह के प्रतिबंध

ब्रिटिश-सिख युद्ध के बाद गुलाब सिंह ने संधि का प्रस्ताव रखा। इस संधि के तहत ब्रिटिशर्स ने राजा गुलाब सिंह को पूरे क्षेत्र का शासक घोषित किया और राजा गुलाब सिंह ने ब्रिटिश द्वारा जीती हुई ज़मीन को 75 लाख रुपए अदा करके वापस खरीदा।

इस संधि को अमृतसर की संधि के नाम से जाना जाता है, जो सन 1846 में हुई थी। इसी संधि में डोगरा राजा ने यह प्रावधान करवाया कि कश्मीर से बाहर का कोई भी व्यक्ति कश्मीर की ज़मीन को नहीं खरीद सकता है और इसी वंश के आखिरी राजा हरि सिंह ने कश्मीरी लड़की का किसी दूसरे राज्य के लड़के से शादी करने पर प्रतिबन्ध लगाया था।

वहीं दूसरी लाहौर की संधि थी, जो उसी वर्ष ब्रिटिश और हारे हुए सिख राजा के मध्य हुई। जिसने सिख शासन का अंत किया और गुलाब सिंह को पूरे कश्मीर का राजा घोषित किया।

राजा हरिसिंह, फोटो साभार – YouTube

डोगरा वंश ने 1846 से 1952 तक पूरे कश्मीर क्षेत्र पर शासन किया। इस वंश के आखिरी राजा हरि सिंह हुए।

अब आपकी जिन्गोइस्ट भावना इस प्रमाणिक तथ्य को नहीं मानेगी और आप दोष मुस्लिम को ही देंगे क्योंकि बचपन के बाबा की कहानी की तरह ही मुस्लिम की कहानी भी आपके दिमाग में भर दी गई है और आपका जिन्गोइस्ट तर्क इस बात को सच नहीं मानेगा। भले ही इस संधि के दस्तावेज़ आपको दिखा दिए जाएं और राजा हरि सिंह का कश्मीरी लड़की का राज्य से बाहर विवाह ना करने वाला फरमान आपको दिखा दिया जाए।

धर्म बदले लेकिन सामाजिक व्यवस्था अत्याचारी रही

इस दौर में जिसे प्राचीन एवं मध्यकालीन कश्मीर कहा जाता है, उस दौर में आम लोग कहां थे, वह क्या कर रहे थे? प्रमुख सवाल यहां यह आता है कि हिन्दू बहुल कश्मीर बुद्धिज़्म और बाद में इस्लाम से कैसे और क्यों प्रभावित हुआ?

कश्मार में बोद्ध धर्म के अनुयायी, फोटो साभार- Pixabay

इसका जवाब हिन्दू धर्म की चार वर्ण व्यवस्था में है। प्राचीन कश्मीर में जब बुद्धिज़्म फैला तब लाखों हिन्दुओं ने चार वर्ण व्यवस्था के खिलाफ बुद्ध धर्म अपनाया, जिसमें लद्दाख का एरिया बुद्धिज़्म का प्रमुख केंद्र बना।

मध्यकालीन कश्मीर में और शाह मीर के शासन काल में कई ब्राह्मण, राजपूत और दलित वर्गों ने इस्लाम कुबूल किया। ब्राह्मण और राजपूत सत्ता के नज़दीक या सत्ता में रहना चाहते थे इसलिए वह इस्लाम की तरफ आकर्षित हुए और दलित उस दौर में कश्मीरी पंडितों (जो ज़मीन पर मालिकाना हक रखते थे) की ज़मीनों पर मज़दूर या बंधुआ मज़दूर बनकर कार्य करते थे, जिसमें कभी-कभी उन्हें मेहनताना दिया जाता था और कभी-कभी ज़बरन काम करवाकर मेहनताना नहीं दिया जाता था।

राजनैतिक व्यवस्था तो फिर भी कभी-कभी ही डावाडोल हुई लेकिन कश्मीर की सामाजिक व्यवस्था पूरी तरह से शोषण, असमान और अत्याचारी थी, जिसमें वर्चस्व वाली जातियां, कमज़ोर जातियों पर ज़ुल्म किया करती थीं।

जब लाखों लोगों ने इस्लाम को अपनाया तब भी यह सामाजिक व्यवस्था नहीं बदली। वह इस्लाम या बौद्ध बनने के बाद भी कश्मीरी पंडितों की ज़मीन पर मज़दूर ही रहे।

इस तथ्य पर एक प्रगतिशील पत्रकार प्रेम नाथ बजाज (जो कश्मीरी पंडित थे) लिखते हैं,

मुस्लिम जनसंख्या के मध्य गरीबी भय उत्पन्न करने वाली थी। अधिकतर मुस्लिम कश्मीरी पंडितों की ज़मीन पर कृषिदास और बंधुआ मज़दूर थे। जब भी हिन्दू, मुस्लिम या सिख शासक ने टैक्स बढ़ाया, उसकी सबसे ज़्यादा मार इन गरीब मुस्लिम मज़दूरों पर पड़ी क्योंकि इनमें से लाखों ऐसे थे, जिनको काम के बदले पैसे नहीं मिलते थे। एक छोटे से हिन्दू, मुस्लिम और सिख अभिजन ने इस बड़ी जनसंख्या पर आर्थिक एवं राजनीतिक शासन कायम किया।

फोटो साभार- Pixabay

दमनकारी नीतियां लगाने वाले कौन थे?

इस पूरे इतिहास में कश्मीरियों पर दमनकारी नीतियां लगाने वाले हिन्दू, मुस्लिम या सिख नहीं थे। पूरे कश्मीर से ज़बरन अनैतिक टैक्स वसूलने वाले भी हिन्दू, मुस्लिम या सिख नहीं थे। गुलाब सिंह के बेटों को मारने वाला कोई मुस्लिम नहीं था और जिसने ब्रिटिश के साथ खड़े होकर सिख पराजय सुनिश्चित की वह भी मुस्लिम नहीं था।

यह सभी शासन सत्ता अपने हाथ में रखने की लालसा रखने वाले एक बहुत सीमित राजनैतिक अभिजन थे। आप खुश हो सकते हैं कि मुस्लिम को हराकर सिख शासन स्थापित हुआ और सिख को धोखा देकर हिन्दू (डोगरा) शासन।

आप बाकी तथ्यों पर आंख बंद करने के लिए स्वतंत्र हैं और डोगरा राजा को अंग्रेज़ों का साथ देने के लिए देशद्रोही बोल सकते हैं या ब्रिटिश संरक्षण में हिन्दू राज्य स्थापित करने के लिए राष्ट्रवादी।

आप यहां यह सोचने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र हैं कि सत्ता के संघर्ष का धर्म से कोई लेना देना नहीं है और साथ ही आप सत्ता की लड़ाई को धर्म से जोड़ने के लिए भी पूरी तरह से स्वतंत्र हैं।

प्रजातंत्र होने का मतलब है तार्किक

भारत विश्व का सबसे बड़ा प्रजातंत्र माना जाता है, सबसे बड़ा प्रजातांत्रिक देश होना इस बात का द्योतक नहीं है के वह सबसे मज़बूत प्रजातंत्र भी हो। भारत को एक मज़बूत प्रजातंत्र बनाने के लिए नागरिकों को तार्किक होना पड़ेगा और सवाल पूछने पड़ेंगे तथा सत्ता पर काबिज़ लोगों को घेरना होगा।

आप अगर ऐसा नहीं करते हैं, तो आप जिन्गोइस्ट बन रहे हैं, बन चुके हैं या बना दिए गए हैं। एक ऐसा नागरिक जिसको प्रजातांत्रिक मूल्यों से कोई लेना देना नहीं है। यहां सिर्फ नफरत और डर है क्योंकि बचपन के बाबा की जो कहानी आपको सुनाई गई उसे आप सच मानते हैं।

इस लेख का दूसरा भाग 1846 से अब तक के इतिहास और वर्तमान विवाद पर चर्चा करेगा।
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यह लेख पूर्व में 10 अगस्त 2019 को डॉ अनुराग पांडेय द्वारा “इंडियन डेमोक्रेसी” में  प्रकाशित हुआ है।

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