डस्ट एलर्जी होने की वजह से मुझे अकसर छींक, खासी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस तरह की समस्याओं का सामना इन दिनों मैंने कई लोगों को करते देखा है। ये समस्याएं बदलते जलवायु परिवर्तन का परिणाम हैं। जलवायु परिवर्तन की वजह से आजकल हर व्यक्ति एक एलर्जिक इंसान की तरह जीवन जी रहा है। हवा में बढ़ रही कार्बन की मात्रा कई तरह की बीमारियों की वजह बन रही है।
ये बदलाव 21वीं सदी में ज़्यादा दिखाई देने लगे हैं। बढ़ते तापमान के साथ, पानी से होने वाले रोग भी बढ़ने लगे हैं। तापमान के साथ मलेरिया फैलाने वाले Anopheles mosquito और डेंगू फैलाने वाले Andes mosquito भी तेज़ी से फैलते हैं।
जलवायु परिवर्तन का स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव
- जलवायु परिवर्तन की वजह से जो नैसर्गिक आपदा बढ़ रही है, वे ज़्यादा-से-ज़्यादा स्वास्थ्य पर प्रभाव डालती हैं। ऐसी आपदाओं के समय में पलायन के साथ ही लोगों को कई स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों का सामना करना पड़ता है।
- ग्लोबल स्तर पर गेंहू, चावल, सोयाबीन जैसे खाद्य पदार्थों को नुकसान हो रहा है और अन्न सुरक्षा का सवाल खड़ा हो रहा है।
- भोजन की बर्बादी से कार्बन उत्सर्जन बढ़ता है।
- फॉसिल फ्यूल के ज़्यादा इस्तेमाल से हम अस्थमा जैसे रोगों को बुलावा देते हैं, जिससे आने वाली कई पीढ़ियों को खतरा होता है। हम आने वाली पीढ़ी के लिए कोई आदर्श स्थिति नहीं छोड़ रहे हैं पर इस तरह से उनके लिए बीमारियों को छोड़ देना भी उचित नहीं है।
- आंधी-तूफान की वजह से कई मौत होती हैं। 2015-2016 के बीच एल निंनो के कारण भारत में 2,500 से ज़्यादा मौते हुई थीं।
- जंगलों में लगती आग के कारण हवा प्रदूषित हो जाती है और हम सीधे-सीधे उसी हवा को शरीर के अंदर लेते हैं।
क्लाइमेट चेंज का अर्थव्यवस्था पर असर
क्लाइमेट चेंज स्वास्थ्य के साथ-साथ अर्थव्यवस्था को भी बुरी तरफ प्रभावित कर रहा है। वर्ल्ड बैंक का कहना है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से 2050 तक भारत की GDP को 2.8% का नुकसान हो सकता है। महाराष्ट्र में लगातार हो रही बारिश के कारण खेती का बेहद नुकसान हो रहा है और अगस्त के महीने में आई बाढ़ ने भी अर्थव्यवस्था पर भारी असर डाला है। इसका एक उदाहरण दूध की सप्लाई का प्रभावित होना है।
बाढ़ में गाय-भैंसों की मौत की वजह से पश्चिम महाराष्ट्र के तीन ज़िलों की बड़ी डेयरियां प्रभावित हुईं। मुंबई और पुणे में दूध की भयंकर किल्लत देखने को मिली।
आपदा के कारण, कच्चे माल की कमी हो जाती है, जो उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
मौसम में इस तरह के बदलाव की वजह ग्रीन हाउस गैसों की बढ़ती मात्रा है, जो लगातार पृथ्वी का तापमान बढ़ा रही है और बढ़ता तापमान मौसम में हो रहे बदलावों के रूप में सामने आ रहा है।
क्लाइमेच चेंंज को लेकर हमारी ज़िम्मेदारियां
हमें क्लाइमेट चेंज और अर्थव्यवस्था को लेकर एक नया समीकरण बनाना होगा। इस दिशा में हम सोलर एनर्जी जैसे स्त्रोत का इस्तेमाल करके एक नए रोज़गार का निर्माण कर सकते हैं।
गुजरात में सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करने पर लोन देने की नीति शुरू हुई थी। अन्य राज्यों को भी ऐसे ज़रूरी कदम उठाने चाहिए।
सारी दुनिया की सरकारें, उपाय के तौर पर सिर्फ एग्रीमेंट करती हैं लेकिन ज़मीनी स्तर पर कोई ठोस उपाय नहीं दिख रहे हैं। सरकार के साथ-साथ हमारी भी ज़िम्मेदारी है कि हम इस बात को समझें कि हमें क्लाइमेट चेंंज के इस भयावह परिणाम से बचने के लिए हमें अपनी लाइफ स्टाइल में बदलाव लाने की ज़रूरत है। अगर हम बिजली का कम इस्तेमाल करें, प्लास्टिक, कांच, ऐलुमिनियम और पेपर का रियूज़ करें, पब्लिश ट्रांसपोर्ट का ज़्यादा इस्तेमाल करें, तो हम इस दिशा में एक ज़रूरी योगदान दे सकेंगे।
अंत में नोबल पुरस्कार प्राप्त जोसेफ स्टिग्लिट्ज़ के शब्द याद रखना ज़रूरी है। उन्होंने कहा था,
हमें किसी भी हाल में क्लाइमेट चेंज पर खर्च करना है, तो क्यों ना उत्सर्जन कम करने के लिए खर्चा उठाया जाए? क्योंकि, क्लाइमेट चेंज से आए नतीजों पर खर्चा करना ज़्यादा महंगा पड़ सकता है।