जेएनयू प्रशासन ने हॉस्टल स्टूडेंट्स के लिए एक नया फरमान जारी किया है, जो सीधे-सीधे स्टूडेंट्स की आज़ादी पर हमले के समान है। जेएनयू स्टूडेंट्स यूनियन ने इसके लिए कड़ा ऐतराज जताया है। उनका कहना है कि वीसी जेएनयू में कर्फ्यू राज चलाना चाहते हैं।
इसे लेकर रविवार को ही जेएनयूएसयू की जनरल मीटिंग भी रखी गई। बता दें कि हॉस्टल के ये नियम आखिरी बार 2005 में अपडेट हुए थे। वहां कुल 18 हॉस्टल हैं, जिनमें 8 पुरुष, 5 महिला और 5 दोनों के लिए हैं।
132 पन्ने के नए हॉस्टल मैनुअल में भोजन कक्ष में उचित ड्रेसिंग नियम और शुल्क संरचना में संशोधन के संदर्भ में स्टूडेंट्स और शिक्षकों से सुझाव मांगे गए हैं। मैनुअल में यह भी सुझाव दिया गया है कि हॉस्टल के स्टूडेंट्स को किसी अन्य व्यक्ति के कमरे में रात 10:30 बजे के बाद जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
नियमों का पालन नहीं करने पर जुर्माना लगाया जाएगा
रात में हॉस्टल से बाहर रहने पर वॉर्डन से पूर्व में लिखित अनुमति लेनी होगी। इसके अलावा इस बात का भी ज़िक्र है कि हॉस्टल में समान्य ड्रॉइंग रूम मिलेगा और मनपंसद खाने का डिमांड करने पर भुगतान करना होगा। हॉस्टल रूम में कोई विज़िटर नहीं जा सकता है। लड़के और लड़कियों पर भी एक नियम लागू होते हैं, वो यह कि एक-दूसरे के हॉस्टल कमरों में वे नहीं जा पाएंगे।
अभी तक रात के दस बजे भी बॉइज़ हॉस्टल में लड़कियां चली जाती थीं मगर अब ऐसा नहीं होगा। कमरों में खाना बनाना, शराब व सिगरेट के सेवन पर भी रोक होगी। खाना बेकार फेंकने की मनाही है। ऐसा करने पर जुर्माना लगाया जाएगा। नए नियमों का पालन नहीं करने पर जुर्माने का प्रावधान है। यह तीन हज़ार से तीस हज़ार रुपये तक हो सकता है और यहां तक कि नियम तोड़ने पर हॉस्टल से निकालने तक का प्रावधान है।
क्या कहा अध्यक्ष आइशी घोष ने?
मुख्य सवाल यह है कि जेएनयू के स्टूडेंट्स की औसत आयु 24-28 वर्ष के बीच है और विश्वविद्यालय में विवाहित स्टूडेंट्स के लिए छात्रावास भी हैं। यदि स्टूडेंट्स को 11:30 बजे तक अपने कमरे में रहने के लिए कहा जाता है, तो जेएनयू में 24 घंटे लाइब्रेरी सिस्टम का क्या लाभ है?
जेएनयू की अध्यक्ष आइशी घोष ने कहा, “जेएनयू मुख्य रूप से अनुसंधान विद्धानों का एक विश्वविद्यालय है, जो अपने उदार परिसर के लिए जाना जाता है। जेएनयू के स्टूडेंट्स ने प्रशासन को सुझाव भेजने के बजाय इस कदम के खिलाफ हस्ताक्षर अभियान शुरू करने का फैसला किया है।”
वैसे भी जेएनयू में ऐसे नियम कभी नहीं रहे हैं। सभी स्टूडेंट 25 साल से ऊपर के होते हैं। वे अपने फैसले खुद लेने में सक्षम हैं। ऐसे में इस तरह की निगरानी की क्या ज़रूरत है? हमें रिसर्च आदि के लिए फील्ड पर जाना होता है। इसके बारे में हमारे सुपरवाइज़र को जानकारी भी होती है।
क्या सिद्ध करना चाहती है जेएनयू प्रशासन?
सवाल यह भी है कि स्टूडेंट्स की निगरानी करने या उन पर तुगलगी फरमान लादकर प्रशासन सिद्ध क्या करना चाहती है? जब जेएनयू के स्टूडेंट्स अब के माहौल में ही बेहतर परिणाम देते रहे हैं, तब इन नियमों को लादकर उन पर अंकुश लगाने का तुक क्या है? क्या एकेडमिक एक्सीलेंस के लिए इस तरह की बंदिशें अनिवार्य शर्त होती हैं?
कम-से-कम जेएनयू के स्टूडेंट्स ने इसके उलट इस बात को अब तक सिद्ध किया है कि एकेडमिक ज्ञान के लिए क्लास और लाइब्रेरी के अलावा उन बहसों में शामिल होना अधिक ज़रूरी है, जो समसामयिक होते हैं और जो जेएनयू के ढाबों पर स्टूडेंट्स आपस में मिलकर चाय की चुस्कियों के साथ करते हैं।
जेएनयू के स्टूडेंट्स में अपने विषयों के साथ-साथ दूसरों के विषयों पर भी जानकारी प्राप्त करने की ललक होती है। हॉस्टल में अगल-बगल के कमरों में रह रहे लड़कों से बातचीत, कब बहस का रूप ले लेती है पता ही नहीं चलता है।
इन सभी प्रशासन के फरमानों के पीछे असल में स्टूडेंट्स की गतिविधियों पर नियंत्रण लगाने की कोशिश है। जिस महौल का निमार्ण जेएनयू के स्टूडेंट्स ने दशकों से किया है, उस परंपरा को समाप्त करने के लिए इस तरह के नियम-कानून लादना प्रशासन की वह मजबूरी है जिसका आदेश झंडेवालान के संघ के दफ्तरों से मिलता है और विद्यार्थी परिषद उन्हें लागू करवाने के लिए एड़ी-चोटी लगा देता है, जिसका विरोध दर्ज़ करने पर विरोध करने वालों को देशद्रोही घोषित कर दिया जाता है।