तुम तो हमेशा से इंकार
करते आ रहे हो,
फिर क्या था?
क्या था जिसकी वजह से
मेरी उम्मीद नहीं टूटती है।
मैं जब भी किसी
भूख से तड़पते बच्चे को
खाने के इंतज़ार में बैठा देखती हूं
तो मुझे खुद पर दया
और तरस दोनों आता है।
याद आता है तेरा वादा
जिसमें तुमने कहा था
कि तुम आओगे, सिर्फ मेरे लिए,
तुम लौट आओगो।
मैं इसी वादे के धागे से बंधी
उम्मीद को नहीं तोड़ना चाहती
यह उम्मीद किसी
भूखे बच्चे को आशा की रोटी देता है।
जब नींद आने पर भी
सोने की कोशिश में
थक जाती हैं, मैं और नींद दोनों
तब याद आते हैं
कुछ बिखरे सपने
जिनके टूटने की आवाज़
एक दम शोर में तब्दील हो गई है
और उस शोर में भी
मुझे तुम्हारी ना पुकारती हुई
पुकार सुनाई देती है।
मुझे जगाती है
मेरे टूटे सपने से
मुझे एहसास होता है कि
इस दुनिया में कुछ और भी है
जो मोहब्बत नहीं करने देता
किसी की भूख,
किसी की गरीबी
और फिर तुम्हारे बहुत बड़े आदमी बनने की महत्वाकांक्षा।
इसके साथ तुम मनुष्य मात्र
बन लेते हो?
कोशिश करना कि
तुम्हारे इस महत्वाकांक्षा की
तलवार की मोटी धार
मेरे उम्मीद के धागे को
कहीं रेत कर काट न दें
और फिर लोगों का
विश्वास उम्मीद पर से भी उठ जाए।