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“मैंने तो अपनी ज़िन्दगी से प्लास्टिक को ना कह दिया है, क्या आपने कहा?”

आजकल हर कोई बदलाव की बातें कर रहा है। दुनिया में ये बदलाव हो, वो बदलाव हो। चाहे पर्यावरण को लेकर चर्चा हो या सामाजिक सरोकारों को लेकर, चाहे राजनीति को लेकर चर्चा हो या कूटनीति को लेकर, बात चाहे गॉंव की हो या शहर की, लोग कुछ-ना-कुछ बदलाव ज़रूर चाहते हैं। मगर हर कोई ये बदलाव दूसरों में ही देखना चाहता है। अपने आपका मूल्यांकन करके कोई खुद में ज़रा सा भी बदलाव नहीं लाना चाहता है।

मैं आपका ध्यान पटना शहर की हालिया त्रासदी की ओर ले जाना चाहूंगा। 12 दिन लगे बारिश के पानी को शहर से निकलने में। क्या मंत्री, क्या आम जनता सबने जीते जी नरक के समान ये दिन बिताएं। मानो पूरा शहर किसी ने बंधक बना लिया हो। वह जल जिसे हम जीवन कहते हैं, पटनावासियों के जीवन के लिए अभिशाप बन गया था।

पटना में जलजमाव की तस्वीर। फोटो सोर्स- सोशल मीडिया

प्लास्टिक रही होगी जलजमाव की एक बड़ी वजह

इतना जलजमाव इतने लंबे समय के लिए क्यों हुआ, इसके बहुत से कारण सामने आएंगे परन्तु हर छोटे से बड़े व्यक्ति द्वारा प्लास्टिक उत्सर्जन इसमें सबसे बड़ा कारण बनकर सामने आएगा।

बड़े पैमाने पर प्लास्टिक उत्सर्जन व निम्नस्तर का उसका निस्तारण इसकी एक बड़ी वजह समझ आती है। प्लास्टिक की वजह से जहां पानी की निकासी अवरुद्ध हुई, वहीं अब जलजमाव की वजह से लोग गंभीर बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं।

प्लास्टिक उत्सर्जन के खिलाफ बदलाव कहां से शुरू हो उसका एक उदाहरण मैं देना चाहूंगा

फोटो प्रतीकात्म है। फोटो सोर्स- Getty

पिछले कुछ महीनों से मैंने खुद को लेकर एक प्रयोग करने की सोची कि कैसे मैं प्लास्टिक समेत अन्य प्रकार से पर्यावरण को दूषित करने वाले कचरों के उत्सर्जन में कमी ला सकता हूं। इसके लिए मैंने प्रतिदिन के हिसाब से ज़ीरो प्लास्टिक का इस्तेमाल करने की कोशिश शुरू की और कम-से-कम कचरा उत्सर्जन करने का प्रयास किया।

कई महीनों से ऐसे करते हुए आज जब मैं यह लेख लिख रहा हूं, तो मुझे यह सुखद अनुभूति हो रही है कि मुझे याद भी नहीं कि आखिरी बार मैंने कब प्लास्टिक की कोई वस्तु खरीदी थी या प्लास्टिक से बने किसी वस्तु का इस्तेमाल किया था।

इन बीते दिनों में मैंने कोशिश की कि घरेलू उपयोग में आने वाली बहुत सी चीज़ें जो प्लास्टिक बंद होती हैं, उनका भी विकल्प तलाशा जाए। अब यह याद करना भी मुश्किल हो रहा है कि कब किसी प्लास्टिक की चीज़ का इस्तेमाल करने के बाद उसे कहीं फेंका हो। घर से निकलकर बाज़ार जाना हो, तो अब थैला साथ ही होता है। खरीदारी में भी उन्हीं चीज़ों को प्राथमिकता देता हूं, जो प्लास्टिक में पैक ना हों।

अपने अंदर के इन बदलावों से अब लोगों को इस तरह के बदलाव के लिए प्रेरित करने का एक नया जज्बा व नई प्रेरणा खुद से ही मिल गई है। तो चलो सबको बदलने से पहले खुद को बदलें, इसी संकल्प को आगे बढ़ाते हैं। इसी संकल्प से ही समाज की बहुत सारी चुनौतियों का सामना हम कर पाएंगे। आपके विचार भी बदलाव की इस मुहिम में मेरा मार्गदर्शन कर सकते हैं।

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