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“उमर खालिद पर गोली चलाने वाले को टिकट देना हिंसा की राजनीति है”

उमर खालिद

उमर खालिद

नए भारत में जब गोली चलती है या कहीं लिंचिंग होती है, तब ज़मीनी कार्यकर्ताओं को निराश होना पड़ता है क्योंकि एक टिकट बुक हो जाता है। शिवसेना ने हरियाणा विधानसभा चुनावों में नवीन दलाल को बहादुरगढ़ से अपना प्रत्याशी घोषित किया है।

गौरतलब है कि नवीन दलाल वही व्यक्ति है, जिसने दरवेश शाहपुर के साथ मिलकर पिछले साल 14 अगस्त को कॉन्स्टिट्यूशन क्लब के बाहर एक्टिविस्ट उमर खालिद पर गोली चलाने की कोशिश की थी। नवीन दलाल खुद को गौ रक्षक मानते हैं। शिवसेना से जुड़ने का कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि गौ रक्षा और राष्ट्रवाद पर उनकी सोच समान है।

शिवसेना प्रत्याशी नवीन दलाल। फोटो साभार- Twitter

नवीन दलाल के प्रत्याशी बनाए जाने की पुष्टि करते हुए शिवसेना के दक्षिण हरियाणा के अध्यक्ष विक्रम यादव ने कहा कि नवीन गौ रक्षा के लिए और भारत विरोधी नारे लगाने वालों के खिलाफ लड़ते रहते हैं इसलिए उन्हें टिकट दिया गया है। विक्रम यादव ने आगे कहा कि उमर खालिद पर गोली चलाना नवीन दलाल का देशभक्ति दिखाने का तरीका था।

गौरतलब है कि शिवसेना केंद्र में भाजपा की सहयोगी दल है। इनकी विचारधारा के हिसाब से बिना किसी सबूत के छात्रों को देशद्रोही घोषित कर देना और उन पर गोली चला देना देशभक्ति है।

नवीन दलाल जीते या ना जीते लेकिन उनको टिकट देना हिंसा के राजनीतिकरण का प्रतीक है। क्या शिवसेना अपने बाकी कार्यकर्ताओं को यह संदेश देना चाहती है कि उन्हें भी टिकट पाने के लिए हिंसा का रास्ता अपनाना होगा?

इस मुद्दे पर बात करते हुए उमर खालिद ने कहा, “नए भारत में टिकट पाने के लिए अपना पसीना नहीं, बल्कि दूसरों का खून बहाना पड़ता है। अब हिंसा के आगे टिकट है। किसी को भी देश का दुश्मन घोषित करके, उस पर हमला करके आप राष्ट्रवादी पार्टियों की नज़र में आ सकते हैं।”

उमर खालिद। फोटो साभार- Twitter

उन्होंने आगे कहा, “इससे पहले भी हमने देखा है कि अखलाक के हत्या के आरोपियों को योगी सरकार ने नौकरियां दी हैं। झारखंड में अलीमुद्दीन के हत्या के आरोपी को बेल मिलने पर केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा ने फूल, मालाओं से उनका स्वागत किया। ये सारी घटनाएं यह साबित करती हैं कि “लिंचिंग इज़ द न्यू एक्टिविज़्म”। हिंसा को राजनीतिक मान्यता इसलिए दी जा रही है ताकि समाज में हिंसा को ऊंचा स्थान दिया जा सके और उसके विरोध में उठ रही आवाज़ों को दबाया जा सके।”

बहरहाल, आदित्य ठाकरे जो अपनी लिबरल युवा वाली छवि बनाना चाहते हैं, वह इसके विरोध में एक ट्वीट ही कर देते। या वह खुद एक युवा नेता होकर दूसरे युवा नेता पर गोली चलाने की कोशिश करने वाले का समर्थन करते हैं?

अभी हाल ही में देश ने गाँधी जी की 150वीं जयंती मनाई है। इस मौके पर प्रधानमंत्री ने गाँधी पर आर्टिकल भी लिखा। आज के दौर में कोई भी गाँधी से सार्वजनिक रूप से असहमत नहीं होना चाहता है। गाँधी पर आर्टिकल लिखने वाले प्रधानमंत्री के हाथ हिंसा को बढ़ावा देने वालों को क्यों नहीं रोक पा रहे हैं? कम-से-कम विरोध में शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे को अपना लिखा आर्टिकल ही भेज देते।

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