बेशक देश और समाज में परिवर्तन चाहिए तो आवाज़ बुलंद करनी पड़ेगी। ज़रूरी नहीं हिंसा से ही अधिकार प्राप्त किए जाए, अधिकार अहिंसा के रास्ते चलकर भी मिल सकते हैं। अगर एकजुट होकर असिंहक आन्दोलन किया जाए, तो वह छदम् हिंसक आन्दोलन से कई गुना बेहतर साबित होता है।
वैसे भी हम लोग कब तक राजनैतिक ढकोसलों को सहते रहेंगे। मैं तो गरीबी, अशिक्षा, बेरोज़गारी, पानी, किसानों की स्थिति के सुधार करने वाले, तमाम लोक लुभावने वायदे सुन-सुनकर तंग आ गया हूं, अब सीधे-सीधे बताने का समय आ गया है कि आपकी नीतियां क्या हैं और उसे कैसे और कब तक पूरा करोगे।
जैसे ठेकेदारों को ठेका मिलता है एक निश्चित समय अवधि के लिए, उसी प्रकार अब राजनैतिक दलों व नेताओं को एक निश्चित समय मिलना चाहिए, काम पूरा करो, वरना ठेका खत्म मतलब वापस पदविहीन कर दिया जायेगा।
भाजपा हो, कॉंग्रेस हो या कोई अन्य दल हो, सभी को स्पष्ट बताना होगा। मैं पूरे समाज से अपील करता हू़ं, जब जिसे वोट या सर्पोट करने की ठाने तो यह ज़रूर जान लें कि उसकी क्या नीतियां हैं और उन्हें कैसे पूरा करेगा और कब तक करेगा। अगर उन सब बातों पर वह खरा ना उतर पाए, तो उसे किसी भी कीमत पर दोबारा ना चुनें, चाहे वह अपनी जान ही क्यों ना दे दे, तभी कुछ होगा। वरना ऐसे कुछ नहीं होने वाला।
अपने अधिकारों के लिए हमें जागरूक होना होगा
वैसे भी हम लोगों ने बहुत समय जाति-पाति, धर्म वर्चस्ववाद में गंवा दिया है। अब तो विकास के नए आयामों पर बात कर लो, सवाल पूछो, कब तक मूक बने रहोगे, कब तक अपने अधिकारों का किसी और के द्वारा हनन करवाते रहोंगे?
जब तक राजनैतिक दलों और नेताओं की जवाबदेही सुनिश्चित नहीं होगी, तब तक काम नहीं होगा। अगर हुआ भी तो सिर्फ कागज़ों में होगा ज़मीन पर उतरने में उसे सालों लग जाएंगे। वह हमें कभी हमें हासिल नहीं हो पायेगा, जिसके हम असल में हकदार हैं। और हां किसी पूर्णतया ईमानदार नेता की उम्मीद तो करो ही मत कि वह आयेगा और सब ठीक कर देगा। ऐसा सिर्फ फिल्मों में होता है, हकीकत फिल्मों से बिल्कुल जुदा होती है, इसलिए ख्वाबों से बाहर आने की कोशिश करो और अपने अधिकारों को पहचानो और उनके लिये संघर्षरत रहो।
हम लोग अपना ही उदाहरण ले लेते हैं, अगर हमें किसी भी प्रकार का व्यक्तिगत लाभ होता है, तो हम उसे पाने के लिए अपने आदर्शों, सिद्धान्तों को एक तरफ रख देते हैं और उसे हासिल करने जुट जाते हैं, किसका बुरा होगा, किसका अच्छा होगा, यह नहीं सोचते हैं, बस अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करते हैं।
इसी प्रकार सभी हैं, सभी उसी समाज के माहौल की उपज ही तो हैं, जिसकी आप हो, तो वे भला कैसे अलग हो सकते हैं, चाहे चुना हुआ आम नेता हो या राष्ट्रीय नेता हो सभी की अपनी आकांक्षाए होती हैं, वह उसे ही पूरा करना चाहता है।
आज के दौर में किसी से परोपकार की उम्मीद करना खुद को धोखा देने जैसा है। व्यक्ति कोई भी काम या तो स्वंय की इच्छा से करता है या भय से। वह स्वंय से काम करना नहीं है और भय है नहीं तो वह काम क्यों करेगा। इसलिए सभी अपने व्यक्तिगत लाभ की भावना का त्याग कर समाज के बारे में एक बार ज़रूर सोंचे, जिससे आपको भी अप्रत्यक्ष लाभ होगा।
अपने अधिकारों का हनन होने से बचाने के लिए, अपने जीवन स्तर को सुधारने के लिए, चाहे वह किसान, मज़दूर, सरकारी कर्मचारी या किसी अन्य पेशे से हो, सभी एक आवाज़ बनकर अपने हकों के लिए आवाज़ बुलंद करें, जिससे जो आज हम भोग रहे हैं, जिससे हम वंछित हैं, उससे हमारी आने पीढ़ी वंछित ना रहे, वह कष्ट ना उठाने पाये।