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सरदार पटेल के दो साथी जिन्होंने भारत को एकजुट करने में दिया था साथ

आज हम देश के पहले गृहमंत्री लोहपुरूष सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती माना रहे हैं। इस दिन को हम राष्ट्रीय एकता दिवस कहते हैं क्योंकि सरदार पटेल ने देश के गृहमंत्री और रियासती मामलों का मंत्री रहते हुए, देश को एक धागे में पिरोने का काम किया था।

सरदार पटेल ने भारत को एक करने में भूमिका निभाई थी। खास तौर पर भोपाल, जूनागढ़ और हैदराबाद के मसले को उन्होंने जिस तरह से सुलझाया था, उससे देश को काफी फायदा हुआ है। वे देश को एक करने वाले इंसान थे। हालांकि आज इस लेख के ज़रिए मैं सरदार पटेल के साथ-साथ उन लोगों को भी ज़िक्र करना चाहता हूं जिन्होंने सरदार पटेल का साथ दिया था।

सरदार वल्लभ भाई पटेल, फोटो साभार- सोशल मीडिया

वे दो व्यक्ति जिन्होंने सरदार पटेल का साथ दिया

सरदार पटेल की तरह 2 लोग और थे जिन्होंने 562 रियासतों और ब्रिटिशों की हुकूमत में  बंटे भारत को एक करने में सरदार पटेल की मदद की थी पर उनके इस काम का कभी ज़िक्र नहीं हुआ।

उनमें से एक सरदार साहब के साथ चल कर इस काम में सहयोग दे रहे थे और दूसरे सरदार के पीछे खड़े रहकर। इन दोनों के नाम थे लॉर्ड लुइस माउंटबैटन और वी पी मेनन। माउंटबैटन जहां भारत के आखरी वॉयसरॉय थे और पहले गवर्नर जनरल। तो वहीं मेनन सरदार पटेल के रियासती मंत्रालय के सचिव थे। इन दोनें ने सरदार साहब का पूरा साथ दिया था।

देश की एकता का हीरो लॉर्ड लुइस माउंटबैटन 

लॉर्ड लुइस माउंटबैटन को तो वैसे प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली द्वारा देश का बंटवारा कराने के लिए भेजा गया था। उन्होंने 3 जून 1947 को देश के आज़ादी और बटवारे का एलान भारतीय रेडियो यानी एआईआर (AIR) पर किया। फिर अगले दिन 4 जून 1947 को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की जिसमें उन्होंने एलान किया,

मैंने 15 अगस्त की स्ट्रीमर टिकट कर ली है तो वही सत्ता हस्तांतरण की तारीख होगी।

लॉर्ड माउंटबैटन, फोटो साभार- सोशल मीडिया

पर फिर ऐसा क्या हुआ कि माउंटबैटन एक साल और रुके और देश का पहला गवर्नर जनरल बनने का फैसला लिया। जबकि वे 15 अगस्त को भारत छोड़ने वाले थे। देश का बंटवारे का एलान करने वाला देश की एकता का हीरो कैसे बना, इसका ज़िक्र एक किताब में मिलता है जिसका  नाम है दि स्टोरी ऑफ इंटीग्रेशन ऑफ इंडियन स्टेट्स (The Story of Integration of Indian states)।

वीके मेनन जिन्होंने माउंटबैटन का मार्गदर्शन किया

यह किताब (The Story of Integration of Indian states) खुद वी पी मेनन ने लिखी थी जो उस वक्त माउंटबैटन के सलाहकार थे। वे लिखते हैं,

जुलाई 1947 में उनकी माउंटबैटन से मुलाकात हुई थी जिसमें माउंटबैटन यह सोच कर परेशान थे कि अभी तो बंटवारा हुआ नहीं है और अभी से इतना खून-खराबा हो गया है।

वे लिखते हैं कि माउंटबैटन को इस चीज़ की चिंता थी की कहीं इस बंटवारे और खून-खराबे के लिए इतिहास और लोग उन्हें ही ज़िम्मेदार ना समझे। तब वी पी मेनन ने उनको सुझाव दिया था कि अगर आप इन 562 रियासतों को भारत में मिलने में काग्रेस की मदद करेंगे, तो हमारा देश एक होगा और भविष्य भी सुरक्षित हो जाएगा।

वी पी मेनन. फोटो साभार- सोशल मीडिया

उन्होंने माउंटबैटन से कहा इस रोल के लिए इतिहास उनके प्रति नरम होगा (इसी वजह से मेनन को भी देश को एक करने वाले लोगो में गिना जाना ज़रूरी है)। हालांकि माउंटबैटन को यह भी शक था कि शायद काँग्रेस उनकी मदद ना ले, पर वी पी मेनन ने उन्हें समझाया कि काँग्रेस देश को एक रखने के लिए कुछ भी कर सकती है।

तब माउंटबैटन ने थोड़ा सोचा और फिर हाँ कह दिया। मेनन साहब ने जो भी कहा था वह सच साबित हुआ। सरदार पटेल और पंडित नेहरू दोनों ने ही माउंटबैटन का इस काम के लिए स्वागत किया।

दोनों ने कश्मीर को भारत में विलय के लिए राज़ी किया

माउंटबैटन का भारत की एकता को बचाए रखने का प्रयास, सबसे बड़ी मदद साबित हुई थी। 25 जुलाई 1947 को माउंटबैटन ने आज की संसद और तब की चैम्बर ऑफ प्रिंसेस में भाषण दिया था, जिसमें उन्होंने यह साफ कर दिया था कि 15 अगस्त के बाद इन राजा महाराजाओं को इंग्लैंड से कोई मदद नहीं मिलेगी। तो ऐसे में उनका भारत में चले जाना ही सही रहेगा।

भारत के राजा महाराजाओं के साथ लॉर्ड माउंटबैटन के साथ, फोटो साभार- Flicker

हालांकि सीधे-सीधे उन्होंने यह बात नहीं की थी। काफी घुमा-फिरा कर उन्होंने यह प्रस्ताव रखा था।

राजाओं को समझ में आ गया था कि अब उन्हें भारत में शामिल हो जाना चाहिए। ऐसे में उनके साथ कई रियासतें भी गईं। खुद जोधपुर जिसके विलीनीकरण में सरदार पटेल की सबसे अहम भूमिका थी, उसके जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी के पूर्व चांसलर लक्ष्मण सिंह राठौर ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि माउंटबैटन के इसी स्पीच की वजह से भारत को काफी फायदा हुआ था।

कश्मीर के समय भी वे माेउंटबैटन ही थे, जिन्होंने राजा हरि सिंह को यह समझाने की कोशिश करते हुए कहा था,

या तो भारत में मिल जाइए या पाकिस्तान में। लेकिन आज़ाद कश्मीर का ख्याल छोड़ दें।

राजा साहब ने उनकी बात नहीं मानी। बाद में पाकिस्तान ने हमला कर दिया और जब हमले में कश्मीर की सेना हारने लगी तो वी पी मेनन कश्मीर के श्रीनगर गए।

वहां उन्होंने सबसे पहले महाराजा को श्रीनगर छोड़ जम्मू चले जाने के लिए कह दिया क्योंकि वे जानते थे कि कबायली हमलावर मुश्किल से कुछ ही किलोमीटर दूर हैं। ऐसे में वे अगर यहां आ गए और महाराजा को बंदी बना लिया तो कश्मीर भारत के हाथ से चला जायेगा।

महाराज जम्मू चले गए। वहां उन्होंने कश्मीर रियासत का विलीनीकरण भारत में कर दिया और उसके गवाह दो लोग थे। एक कश्मीर के प्रधानमंत्री मेहर चंद महाजन और वी पी मेनन। बाद में पंडित नेहरू, सरदार पटेल और माउंटबैटन ने वह फौजे भेज के कश्मीर से पाकिस्तानी हमलवारों को निकाल बाहर किया।

सरदार वल्लभ भाई पटेल, फोटो साभार- Flicker

विलीनीकरण पर सरदार पटेल की भूमिका ज़्यादा

हालांकि जूनागढ़ हो या हैदरबाद हो, इसमें विलीनीकरण के फैसले में सरदार पटेल की भूमिका इनसे ज़्यादा थी क्योंकि दोनों में ही भारतीय फौज को भेजकर जूनागढ़ को वहां के सनकी राजा मुहम्मद महावत खानजी और हैदराबाद रियासत को वहां के बड़े और ज़ालिम नेता कासिम रिज़वी से आज़ाद करवाया था।

खुद हैदराबाद को स्पेशल स्टेटस देने वाले माउंटबैटन थे। जिसके लिए उन्होंने सरदार पटेल और पंडित नेहरू को राज़ी कर लिया था और बाद में इसी को लेकर उनकी मुखालफत भी हुई थी। पर जब माउंटबैटन के जाने के बाद हैदरबाद रियासत ने उसे भी ठुकरा दिया तो सरदार पटेल ने अपना तरीका आज़माया।

भारत को एक करने में सरदार पटेल की मदद जितनी इन दोनों व्यक्तियों ने की थी, शायद ही किसी और ने की हो। 1948 तक माउंटबैटन ने सरदार पटेल का साथ दिया उनके बाद वी पी मेनन ने और उनका यह साथ उनके मरने तक रहा।

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