औरंगाबाद का नाम आपने महाराष्ट्र की पर्यटन की राजधानी और एक औद्योगिक शहर के तौर पर तो सुना ही होगा। एलोरा और अजंता केव्स के कारण खासतौर पर लोग औरंगाबाद को लोग जानते हैं। पर्यटकों लिए औरंगाबाद शहर और उसके आसपास बहुत सारे पर्यटन स्थल हैं।
औरंगाबाद को वैसे भी उद्योग के क्षेत्र में भी तेज़ी से बढ़ने वाला शहर कहा जाता था मगर आज बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि यह शहर बहुत बुरे हालात में है।
हमारे प्रधानमंत्री टूरिज़्म को बढ़ावा देने की बात हमेशा करते हैं मगर वैश्विक दर्जे़ के पर्यटन स्थल होने के बावजूद भी आज ज़रूरी और बुनियादी सुविधाओं के अभाव के कारण यह शहर बहुत पिछड़ रहा है। यहां तक कि मैंने देखा है पर्यटकों की संख्या भी बड़ी तेज़ी से घटती जा रही है।
सही तरीके से अगर औरंगाबाद के पर्यटन का विकास किया जाएगा और बड़े शहरों के साथ अच्छी कनेक्टिविटी और वैश्विक दर्जे़ की सुविधाएं पर्यटकों को मुहैया की जाएगी, तब यहां रोज़गार के ज़्यादा अवसर तैयार किए जा सकते हैं। यहां की अर्थव्यवस्था भी तेज़ी से आगे बढ़ सकती है।
दिल्ली से हैदराबाद के बीच एक वैश्विक दर्ज़े का टूरिज़्म कॉरिडोर बनाया जा सकता है, जिसमें तमाम पर्यटक दिल्ली से लेकर मथुरा, आगरा का ताज महल, झांसी, भोपाल, महाराष्ट्र के पर्यटन स्थल, औरंगाबाद का एलोरा-अजंता और बीवी का मकबरा जैसे टूरिस्ट प्लेस का लुत्फ उठा सकते हैं।
इसके लिए रेलवे को पर्यटकों के लिए एक स्पेशल ट्रेन शुरू करनी चाहिए, जो कि वैश्विक दर्जे़ की हो और जिसमें पर्यटकों को ज़रूरी जानकारी मिले।
रोड सेफ्टी औरंगाबाद में एक मज़ाक है
औरंगाबाद शहर के लोगों की जान को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है, क्योंकि यहां की बहुत सारी सड़कें खराब हैं। औरंगाबाद रेलवे स्टेशन से बीड बाईपास को जोड़ने वाला ब्रिज बेहद खराब अवस्था में है, जिसका रखरखाव कई वर्षों से नहीं किया गया है। दरगाह चौक के पास भी बहुत खराब सड़क है, जो बारिश के दिनों में और भी खतरनाक बन जाता है।
स्कूल के बच्चों को ले जाने वाले ऑटो के लिए तो ये सड़कें और भी खतरनाक हैं। बीड बाईपास रोड औरंगाबाद में जानलेवा साबित हो चुका है।
बीड बाईपास जो कि औरंगाबाद का एक प्रमुख रास्ता है, वह आज बस नाम का बाईपास बनकर रह गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह अब शहर के अंदर आ चुका है मगर यहां पर शहर के अंदर ट्रैफिक मैनेजमेंट के लिए कोई प्लान नहीं है। इस वजह से एक्सीडेंट तो आम बात है।
बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि ऐसे ही एक एक्सीडेंट में मेरे पड़ोस में रहने वाली महिला की जान गई और उनके परिवार के आज के हालात के लिए यहां की प्रशासन ज़िम्मेदार है।
ऐसे बहुत सारे एक्सीडेंट्स इस रोड पर हुए हैं मगर आज भी यहां का अतिक्रमण हटाया नहीं गया है। स्कूल बस से उतरने वाले स्टूडेंट्स को रिसीव करने के लिए उनके पेरेंट्स को सभी काम छोड़कर कम-से-कम अपना आधा घंटा यहां पर देना ही पड़ता है। इससे आपको अंदाज़ा हो गया होगा कि लोगों में इस सड़क को लेकर कितना डर फैल चुका है।
इसी बीड बाईपास रोड पर एक बड़ा अस्पताल है और उस अस्पताल के लिए जो एम्बुलेंस रेलवे स्टेशन से आती है, उसे बिना मतलब के यू-टर्न लेने के लिए आगे जाना पड़ता है।
पलायन एक बड़ी समस्या
औरंगाबाद सूखे से प्रभावित मराठवाड़ा का प्रमुख शहर है और हर साल सुखाड़ के कारण पुरे मराठवाड़ा के किसान परेशान रहते हैं। बेरोज़गारी काफी ज़्यादा बढ़ रही है और रोज़गार के लिए यहां के लोग औरंगाबाद आते हैं मगर यहां भी रोज़गार के पर्याप्त अवसर ना होने के कारण उन लोगों को अन्य शहरों में जाना पड़ रहा है।
उच्च शिक्षित युवाओं को भी अच्छी जॉब के लिए पुणे और मुंबई जैसे शहरों में जाना पड़ रहा है। उच्च शिक्षा के लिए भी औरंगाबाद और मराठवाड़ा के युवा पुणे और मुंबई जा रहे हैं। नए बिज़नेस करने के लिए भी लोगों को अन्य शहरों में जाना पड़ रहा है। ऑटोमोबाइल क्षेत्र को छोड़ दिया जाए तो आईटी और आउटसोर्सिंग की कोई भी बड़ी कंपनी औरंगाबाद में आई नहीं है।
औरंगाबाद एक तेज़ी से बढ़ने वाला औद्योगिक शहर था मगर आज यह शहर अन्य शहरों से हर क्षेत्र में पिछड़ रहा है। महाराष्ट्र के चुनाव में औरंगाबाद की खस्ता हालात के बारे में नेता और इलेक्ट्रॉनिक्स मीडिया को बात करनी चाहिए और यहां के हालात में सुधार लाने की कोशिश करनी चाहिए।
वैसे भी महाराष्ट्र के चुनावों में असल मुद्दों की बात नहीं हो रही है। इन चुनावों में पीने का पानी, शिक्षा, आरोग्य, किसानों की आत्महत्याएं और बेरोज़गारी जैसे असल मुद्दों को कोई जगह नहीं है। गठबंधन हुआ या नहीं, किसको टिकट मिला, कौन नाराज़ है, कौन किसके खिलाफ क्या बोल रहा है, यही मुद्दे हैं बस।