Site icon Youth Ki Awaaz

“तेजस एक्सप्रेस कॉरपोरेट लूट का सुहाना सफर है”

पिछले रविवार भारत की पहली निजी ट्रेन ‘तेजस एक्सप्रेस’ ने अपनी यात्रा लखनऊ से दिल्ली तक के लिए प्रारम्भ कर दी है। इसके साथ ही भारतीय रेलवे में ‘कॉरपोरेट युग’ का आरंभ भी हो गया है। आधिकारिक रूप से कहा गया है कि तेजस एक्सप्रेस एक ट्रायल है।

यह समझना मुश्किल है कि इस फिक्सड ट्रायल के क्या मायने हो सकते हैं, जब रेलवे मंत्रालय ने खुद विभिन्न ज़ोन को निर्देश दिए हैं कि वे लगभग 50 रूट्स पर प्राईवेट ट्रेनों के संचालन हेतु संभावनाएं तलाशे।

तेजस एक्सप्रेस का लखनऊ से दिल्ली का सफर शुरू, फोटो साभार- ट्विटर

तेजस असफल नहीं हो सकती

आज भी इस देश में ऐसी कई लोकल ट्रेनें दौड़ रही हैं, जिनमे शौचालय तक नहीं हैं। जहां जनरल बोगियों में लोग गंदगी के बीच भेड़-बकरियों की तरह ठुसे रहते हैं। जहां जनरल टिकटिंग की कोई सीमा नहीं है, जितने लोग आएंगे, सबको टिकट मिलेगा। आप अटक के जाएंगे या लटक के जाएंगे यह आपकी ज़िम्मेदारी है।

ऐसे हालात में आधुनिक सुविधाओं से लैस तेजस, असफल हो भी कैसे सकती है? इसको लेकर समाज में काफी खुशी व्याप्त है। लोग खुशी में मिठाइयां बांटना चाहते हैं, पटाखे छोड़ना चाहते हैं। सौभाग्य से ATM  बंद है।

लोगों को पूरा यकीन है कि जिस तरह यह सरकार रेलवे स्टेशन, एयरपोर्ट, लाल किला, एवं कई तेल कंपनियों को प्राईवेट हाथों में सौंपकर मील के पत्थरों का ढेर लगा चुकी है, उसी प्रकार प्राईवेट ट्रेनों के परिचालन के साथ, रेलवे को पूरी तरह प्राईवेट कंपनियों के हाथों में देकर सरकार ज़िम्मेदारी मुक्त हो जाएगी ।

भारतीय रेलवे, फोटो साभार- Pixabay

सरकार के निजीकरण की नीति

जिस प्रकार से राष्ट्र-विरोधी बुद्धिजीवी ताकतों के विरोध के बावजूद देश में सरकारी शिक्षण सिस्टम को बर्बाद करके, गाँव-गाँव में खुले सरकारी स्कूलों को तबाह कर, प्राईवेट स्कूलिंग सिस्टम को मज़बूत किया गया है।

जिस प्रकार सरकारी स्वास्थ्य सिस्टम को ध्वस्त करके, सरकारी अस्पतालों को बर्बाद कर,प्राईवेट अस्पतालों को मज़बूत किया गया है। जहां ज़िंदा की कौन कहे, मुर्दों तक का इलाज मात्र लाखों के खर्च में हो जाता है।

जिस प्रकार सरकारी कॉलेज और यूनिवर्सिटी को बर्बाद करके, प्राईवेट कॉलेज यूनिवर्सिटी स्थापित किए गए, जहां इंसान की क्या कहें, जानवर भी डिग्री प्राप्त कर सकते हैं।

उसी प्रकार सरकारी रेलवे सिस्टम को बर्बाद कर, रेलवे का निजीकरण एक व्यापक एवं ऐतिहासिक राष्ट्रवादी कदम है। इससे देश की गरीब जनता के जीवन में तरक्की आएगी और धन-दौलत की वर्षा होगी। वर्षा अमीरों के यहां भी होगी, थोड़ी कम होगी ।

सोशल स्टेटस डेवलप होगा

बकौल देशभक्त, देश को अब तरक्की करने से कोई नहीं रोक पाएगा क्योंकि सारा देश तेजस में बैठ, तेज़ रफ़्तार से असीम आनंद के साथ तरक्की की पटरी पर दौड़ेगा लेकिन हमेशा की तरह देश के राष्ट्रविवादी तत्व फिर बखेड़ा खड़ा कर रहे हैं।

इन्हें कौन समझाए कि अपनी ही गाड़ी को किसी और को बेचकर, उसपर किराया देकर चढ़ने का आनंद क्या होता है। यह आनंद अब सभी रेलवे, सेना आदि के ऑफिसर भरपूर उठाएंगे। आनंद से याद आया, इसमें सफर परमानंद को महसूस कराएगा, बशर्ते खयालात ‘चीन में आनंद’ वाले हो, हरकत नहीं।

सबसे अच्छी बात तो यह है कि जिस तरह महंगे से महंगे प्राईवेट स्कूल में बच्चों को पढ़ा हम अपना सोशल स्टेटस डेवलप करते हैं और सरकारी विद्यालयों को निकम्मों/लफंगो का अड्डा मानते हैं, उसी प्रकार हम इन ट्रेनों में सफर करके अपना सोशल स्टेटस डेवलप कर सकते हैं।

साथ ही आपको भिखारियों की लूट से आज़ादी मिलेगी क्योंकि लूटने का ठेका अब अमीरों के हाथ में रहेगा। वो आपको पूरे इज़्जत, सम्मान के साथ लूटेंगे, आपको फील भी नहीं होगा। एक ग्लास खूबसूरत पानी देने के बदले, जब 50 रूपये चार्ज होंगे तो स्वाभिमान स्वतः ही रिचार्ज हो जाएगा।

तेजस एक्सप्रेस, फोटो साभार- ट्विटर

सरकार खुद तेजस जैसी ट्रेने क्यों नहीं चला सकती?

कुछ बेवकूफ यह सवाल कर रहे हैं कि प्राईवेट ही क्यों ? क्या सरकार खुद तेजस जैसी ट्रेने अपने सिस्टम में नहीं चला सकती? काहे चलाएगी भाई, किसी भी सरकार की अनैतिक ज़िम्मेदारी है कि लोगों से टैक्स ले और फिर उसे पूंजीपतियों पर लुटाए।

टैक्स के पैसे से ज़मीन अधिग्रहण करे, पटरिया बिछाए, प्लेटफॉर्म, रेलवे स्टेशन बनवाए और फिर उसे प्रयोग करने के लिए निजी कंपनियों को दे दे। फिर निजी कम्पनियां भी हमसे अलग-अलग सुविधाओं/दुविधाओं के नाम पर वसूली करे। इससे दुनिया में अपना स्टेटस स्ट्रॉन्ग होता है।

जब प्राईवेट कंपनियां अधिक से अधिक पैसा हमारी जेब से निकालेंगी तो देश तरक्की करेगा, औद्योगिक सेक्टर मज़बूत होगा

वैसे भी जो छोटे-मोटे काम प्राईवेट में ही हो सकते हैं, उसके लिए इतनी बड़ी लोकतान्त्रिक सरकार काहे तकलीफ ले। अगर भूल से भी टेंशन लेने के चक्कर में नेताजी को कोई सदमा आ गया, तो देश खुद को कभी माफ नहीं कर पाएगा।

आज़ादी को 72 वर्ष हो गए हैं, इस उम्र में सारी ज़िम्मेदारियों से मुक्त होकर राम-राम कहना सही है। शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, बिजली, पानी, सड़क , यातायात, ट्रांसपोर्ट, एयरपोर्ट सब उपलब्ध कराना सरकार की ज़िम्मेदारी होती है लेकिन चालाक सरकारें, इन सब का टेंशन नहीं लेती। सबका ठेका कॉरपोरेट को देकर, धर्म-कर्म के कामों में खुद को और जनता को लीन कर लेती हैं ।

इसलिए आप भी टेंशन मत लीजिए, राम-राम कहिये इससे सामाजिक स्वास्थ्य ठीक रहता है। समय पर योग और भाषण का भोग करें। जब भी मौका मिले तो प्राईवेट ट्रेन में सफर करें। इसके लिए आप कॉरपोरेट बैंकों से लोन भी ले सकते हैं।

कॉरपोरेट बैंकों के कर्ज़ से कॉरपोरेट ट्रेन में सफर करें और निजी कंपनियों को जल्द से जल्द मुनाफे में पहुंचाएं। कंपनियां तरक्की करेंगी तो पार्टियां तरक्की करेंगी, पार्टियां तरक्की करेंगी तो नेता तरक्की करेंगे। कंपनियों, पार्टियों, नेताओं की तरक्की ही देश की सच्ची तरक्की है।

Exit mobile version