इन दिनों दुनिया भर में अफरा-तफरी का माहौल है। अमेरिका और खाड़ी देशों से लेकर हॉन्गकॉन्ग तक हर दिन कहीं ना कहीं कोई ना कोई प्रदर्शन ज़रूर हो रहे हैं। इन प्रदर्शनों की शुरुआत हॉन्गकॉन्ग से हुई थी, जहां की जनता पिछले पांच महीने से भी ज़्यादा समय से प्रत्यर्पण के कानून के खिलाफ है। हॉन्गकॉन्ग की जनता प्रत्यर्पण के कानून के खिलाफ सड़कों पर उतरी थी मगर धीरे-धीरे यह प्रदर्शन आज़ादी की मांगों की ओर बढ़ गया।
हालांकि वहां की लीडर कैरी लैम ने प्रत्यर्पण के कानून को वापस लेने का ऐलान भी किया है लेकिन उसके बाद भी प्रदर्शन नहीं थम रहे हैं। अब हॉन्गकॉन्ग की जनता आज़ादी की मांग कर रही है और लगभग पिछले पांच महीनों से उनका यह प्रदर्शन अब भी जारी है।
इस दौरान मानव अधिकारों की देख रेख करने वाली संस्था ने इन प्रदर्शनों पर रिपोर्ट भी मांगी है। हॉन्गकॉन्ग के प्रदर्शन की खास बात यह भी रही है कि शनिवार और रविवार को इसमें काफी तेज़ी देखी जाती है।
इसी महीने की शरुआत में स्पेन के अधीन आने वाले क्षेत्र कैटेलोनीया में प्रदर्शन उस वक्त शरू हो गया जब वहां की सुप्रीम कोर्ट ने कुछ अलगाववादी नेताओं को कैद की सज़ा सुना दी। इस सज़ा के बाद वहां की जनता भड़क गई और सड़कों पर उतरकर आज़ादी की मांग करने लगी।
हालांकि यह पहला मौका नहीं था जब वहां की जनता ने आज़ादी की मांग की हो। वर्ष 2017 में वहां एक रेफरेंडम हुआ था, जिसमें वहां की 90 फीसद से ज़्यादा जनता ने कैटेलोनीया की आज़ादी के समर्थन में वोट किया था, जिसके बाद से ही स्पेन की सरकार इन नेताओं पर अलगाववाद और देश के खिलाफ काम करने का मुकदमा चला रही थी।
अमेरिकी देश बोलीविया में भी इन दिनों प्रदर्शन का सिलसला शरू हो गया है। वहां की जनता सरकार के खिलाफ सड़कों पर है। जनता का आरोप है कि राष्ट्रपति ने देश में हुए चुनाव में धांधली की है। इस दौरान पुलिस के साथ हुई झड़पों में कई लोगों की जानें भी गई हैं।
अमेरिकी महाद्वीप की एक और देश चिली भी इन दिनों प्रदर्शनकारियों की चपेट में है। चिली की जनता सरकार द्वारा हाल ही में पब्लिक ट्रांसपोर्ट के किरायों में वृद्धि के बाद से सड़कों पर है, जिसमें अब तक 15 से ज़्यादा लोगों ने अपनी जान भी गंवा दी है।
अमेरिकी महाद्वीप से ही एक दूसरा देश इक्वाडोर है, जहां पेट्रोल के दामों में बढ़ोतरी को लेकर ज़बरदस्त प्रदर्शन हो रहे हैं। इक्वाडोर की प्रदर्शन पुरानी है और यहां भी प्रदर्शन होते रहते हैं मगर हाल के प्रदर्शन अलग थे।
वहीं, खाड़ी देश लेबनान और इराक में अब भी प्रदर्शन जारी है। इराक में हो रहे प्रदर्शन में अब तक लगभग 23 लोग मारे जा चुके हैं जबकि हज़ारो की संख्या में प्रदर्शनकारी घायल भी हुए हैं। ये प्रदर्शनकारी देश की आर्थिक स्थिति और सरकार के घोटालों व धांधलियों के विरोध में सड़कों पर हैं।
ऐसा ही कुछ हाल लेबनान का भी है, वहां की जनता भी पिछले कुछ दिनों से सड़कों पर है। ये प्रदर्शनकारी सरकार को बदलना चाहते हैं। उनका इल्ज़ाम है कि सरकार ने देश की ज़्यादातर चीज़ो पर कब्ज़ा कर रखा है, जिसके कारण जनता को कोई फायदा नहीं मिल पा रहा है। वहीं, सरकार अपने मनमाने ढंग से काम कर रही है। यहां प्रदर्शन मूलतः फोन कॉल और दूसरी सोशल मीडिया साइट्स पर लगाए गए नए टैक्स के बाद शरू हुई है।
लेबनान के प्रदर्शनकरियों का प्रदर्शन कई मायनों में अनोखा भी रहा। यह शायद दुनिया का पहला ऐसा प्रदर्शन था जिसमें लोगों की शादियां भी हो रही थी, लोग अपने घरों की बालकनी से डीजे बजा रहे थे और प्रदर्शनकारी उस पर थिरक भी रहे थे। लोग सड़कों पर हुक्के का आनंद भी ले रहे थे।
इसके अलावा दुनिया के और भी कई देशों में छोटे-बड़े प्रदर्शन लगातार जारी हैं। पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी वहां की सरकार विरोधी पार्टियों ने एक बड़े देशव्यापी प्रदर्शन का प्लान बनाया है।
अगर हम हॉन्गकॉन्ग और स्पेन के कैटेलोनीया को छोड़कर अन्य देशों की बात करें तो लगभग सभी देशों में सरकार की नीतियों, देश की आर्थिक स्थिति और भ्रष्टाचार के खिलाफ लोग सड़कों पर हैं। गौरतलब है कि हॉन्गकॉन्ग और कैटेलोनीया में आज़ादी के लिए प्रदर्शन किए जा रहे हैं।
याद दिला दें कि टेक्नोलॉजी के इस युग में अब भी लोग अपने अधिकारों के लिए सड़कों का ही रुख करते हैं। इन सबके बीच हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि दुनिया भर में आर्थिक और राजनीतिक अस्थिरता भी काफी बढ़ गई है।