कल हमने दशहरा मनाया और हर बार की तरह इस बार भी हमने कहा, आज हमने बुराई पर अच्छाई की जीत दर्ज़ कर ली है, जबकि यह बात और है कि हर बार की तरह इस बार भी हमने प्रदूषण द्वारा एक बुराई को पैदा किया है।
रावण ने ऐसा कौन-सा पाप किया है, जो उसे हर बार इस कदर जलाया जाता है और राम ने ऐसे कौन-से पुण्य किए हैं कि उनको सुप्रीम कोर्ट ढूंढ रहा है?
आइये दोनों के व्यक्तित्व पर नज़र डालते हैं। राम दैवीय उत्पत्ति माने जाते हैं, जो सारी शक्तियों से परिपूर्ण हैं। बचपन से ही उन्हें सारी सुख-सुविधाएं प्राप्त थीं। उन्हें तीन माँ का प्यार मिला था और भारत के प्रमुख शिक्षक से शिक्षा मिली। इसके साथ अच्छा व्यक्तिव, प्रजा का प्यार और सबसे बड़ी बात सीता जैसी जीवनसाथी मिली।
राम का क्या त्याग था?
उन्होंने अपना घर प्रजा की भलाई के लिए नहीं, बल्कि परिवारिक द्वेष के कारण छोड़ा और उनके पिता की मृत्यु घर की समस्याओं के कारण हुई। जब राम जंगल में गए, तब वहां भी उन्हें बहुत से लोगों का साथ मिला, चाहे वह सुग्रीव हो या हनुमान।
उन्हें पूरी एक सेना का साथ मिला, जिससे उन्होंने रावण का वध किया और जब सीता माँ वापस आईं तब उन पर आरोप लगाकर अग्नि परीक्षा ली गई और अयोध्या वापस आने पर किसी के कहने पर सीता को जंगलों में भटकने के लिए छोड़ दिया गया।
इतनी कठिन तपस्या के बाद जब उनका मिलना हुआ, तब भी उन्हें प्रताड़ित किया गया, जिससे की वह धरती में समा गईं। यह श्री राम का एक छोटा-सा जीवन वृत्तांत था, जो आज भी बहस का मुद्दा है।
अब बात रावण की
अब बात उस पापी की करते हैं, जो हर साल जलाया जाता है। अगर त्याग भरत का है, तो त्याग कुम्भकरण, मेघनाथ और अक्षय कुमार का भी होना चाहिए। रावण नाम ही बहुत बुरा दिखाया गया है, जिसे देवताओं की तरह दैवीय शक्ति नहीं मिली थी और ना ही वह देवताओं की तरह नृत्य का शौकीन था।
वह शिव का परम भक्त और पुजारी था। उसने अपने राज्य की शक्ति को बढ़ाने के लिए अपने सभी भाईयों को लेकर पूजा की मगर देवता उसमें भी परेशान हो गए। अंततः शिव प्रसन्न हुए और सभी को वर दिया। वहां भी कुम्भकरण के साथ धोखा हुआ मगर आज तक देवताओं को धोखे की सज़ा नहीं मिली।
अपनी बहन की नाक काट दिए जाने के बाद, हर भाई जो करता वही रावण ने भी किया, जो गलत था। गलत तो नाक कटते हुए देखना भी था मगर यह गलती तो देवताओं ने की थी, इंसान ने नहीं।
शायद रावण राम से बढ़कर था
आज के बाबाओं की तरह रावण ने सीता के सतीत्व को कभी हाथ भी नहीं लगाया और उनकी मर्ज़ी को सराहता रहा। उनके साथ कभी किसी तरह की ज़बरदस्ती नहीं की तो क्या यह भी पाप था?
हनुमान ने जब छोटी-सी बात पर पूरी लंका जला दी थी, तब उसने अपनी प्रजाहित के लिए घर, कपड़ा, खाना और पानी की व्यवस्था की थी, जो शायद राम से बढ़कर था मगर वह देवता तो नहीं था इसलिए यह भी पाप हो गया।
अपनी प्रजा के लिए उसने अंतिम सांस तक जान लगा दी मगर भागा नहीं और बिना मोक्ष की कामना किए, वह अंतिम समय में भी लक्ष्मण को उपदेश देकर गया।
क्या रावण सच में गलत था?
सोचिए कितना गलत था रावण, जिसकी सज़ा समाज आज तक उसे दे रही है। ऐसे दीन-हीन समाज से आप कल्पना ही क्या कर सकते हैं, जो आज के समय में बाबाओं के चरणों में गिरा पड़ा है, जिन्होंने श्रद्धा को बाज़ार और मंदिर को व्यापार बना रखा है।
ऐसे समाज से क्या आप रावण के त्याग को समझने की उम्मीद लगाएंगे?
खैर, जो भी हो यह तो विचारनीय है और हमेशा रहेगा, तय तो हमें करना है कि ज़रूरी क्या है?