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दोबारा ऑड-ईवन की घोषणा पर क्या कहना है दिल्ली की जनता का

फ्री में दिन में 44 सिगरेट्स पिलाने की बात पर शायद सिगरेट पीने वाला भी मना कर दे लेकिन आप दिल्ली में रहते हैं, तो यह आपकी मजबूरी है। भले ही आप सिगरेट पीते हो या नहीं, आपको रोज़ाना लगभग 44 सिगरेट्स जितना धुंआ लेना पड़ेगा, क्योंकि आपको दिल्ली के प्रदूषण का सामना करना पड़ेगा।

पिछले 3-4 सालों से केवल हम इस पर बात कर रहे हैं कि प्रदूषण बढ़ रहा है लेकिन इसका हल क्या है, इस पर कोई राजनीतिक दल चर्चा करने को तैयार नहीं है।

दिल्ली के प्रदूषण में अहम योगदान बाहरी राज्यों से आने वाली गाड़ियों (प्राइवेट कार, ऑल इंडिया टैक्सी, साथ ही बाहर की टैक्सियां ओला-ऊबर भी शामिल हैं) और दिल्ली में ज़रूरी सामान पहुंचाने वाले ट्रकों का है। दिल्ली में 40 फीसदी वायु प्रदूषण के लिए ज़िम्मेदार यहां की सड़कों पर चलने वाली प्राइवेट गाड़ियां हैं।

एक बार फिर लागू होगी ऑड-ईवन स्कीम

गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण को देखते हुए दिल्ली सरकार एक बार फिर ऑड-ईवन स्कीम लागू करने जा रही है।

ऑड-ईवन में किन्हें मिलेगी छूट-

सरकारी आंकड़ों के अनुसार जनवरी 2016 में लागू हुए इस स्कीम से PM 14-15% लेवल से घटकर 2.5% पर आ गया था, जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि ऑड-ईवन स्कीम से प्रदूषण पर नियंत्रण हुआ है। हालांकि दिल्ली के लोग इस पर अलग-अलग राय रखते हैं।

दिल्ली सरकार केवल खबरों में आने के लिए यह सब नाटक करती है, इससे आम आदमी को कोई फर्क नहीं पड़ता। उल्टा लोगों को तकलीफ ही होती है।

यह कहना है दिल्ली में ऑटो चलाने वाले एक ड्राइवर का। वहीं  दिल्ली में अपनी गाड़ी चलाने वाले एक युवक का कहना है,

महिलाओं को छूट देने वाली बात में राजनीति नज़र आती है, प्रदूषण तो उनकी गाड़ियों से भी होता होगा।

लेकिन उनको जब 2016 के आंकड़ों के बारे में पूछा गया तो उनका कहना था,

हां प्रदूषण कम तो होता है और फर्क भी पड़ता है लेकिन छूट इतनी ज़्यादा नहीं होनी चाहिए। इस बार बाहर से आने वाली गाड़ियों पर भी नियम लागू करने के फैसले से और भी फर्क पड़ेगा।

लेकिन तभी साथ में खड़ी एक महिला कहती हैं,

बाहर से आने वाली गाड़ियां ऑड-ईवन के हिसाब से कैसे चलेंगी? यह तो उनकी समस्या बढ़ाने वाला फैसला है। हालांकि प्रदूषण कम करने के लिए यह ज़रूरी भी है।

लेकिन जब पूछा गया कि क्या आप प्रदूषण को कम करने के लिए सरकार का साथ देने को तैयार हैं, तब जवाब था,

सरकार प्लान लेकर आए, हम तो पूरी तरह से साथ देने को तैयार हैं। हम ऑड-ईवन का साथ देने को भी तैयार हैं लेकिन हमें पता चलना चाहिए कि इसका असर कितना हुआ है।

मेट्रो पर बैठे 41 साल के रविंदर का कहना है,

मैं तो वैसे भी गाड़ी मेट्रो की पार्किंग में रखता हूं। मुझे पब्लिक ट्रांसपोर्ट प्रयोग करने में कोई समस्या नहीं है। हम सबको ऑड-ईवन का साथ देना चाहिए। आखिर सरकार हमारी सांसों को शुद्ध बनाने में लगी है। शायद हमें अपनी समस्या से ज़्यादा प्रदूषण की समस्या पर गौर करना चाहिए।

कुल मिलाकर लोगों का मानना है कि ऑड-ईवन से अगर थोड़ा सा भी प्रदूषण नियंत्रण हो सकता है, तो हम सरकार के साथ हैं लेकिन एक बेहतर प्लान के साथ सरकार को इस पर गहन विचार करना चाहिए।

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