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क्या सरकार के 5 ट्रिलियन इकॉनमी के सपने में छोटे व्यापारी नहीं हैं?

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किया गया इस साल का बजट तो आप सबको याद ही होगा, जिसमें भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था तक पहुंचाने की बात हुई थी और इसमें कुछ महत्पूर्ण केंद्र बिंदु सुझाए गए थे, जैसे- बुनियादी ढांचे में भारी निवेश, डिजिटल अर्थव्यवस्था और रोज़गार निर्माण।

5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था चुनौतीपूर्ण

हाल ही में न्यूयॉर्क के कोलंबिया यूनिवर्सिटी में निर्मला सीतारमण का दिया गया एक बयान सामने आया है, जिसमें उन्होंने कहा,

भारत को 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाना चुनौतीपूर्ण है लेकिन इसे ज़रूर पूरा किया जाएगा।

निर्मला सीतारमण, फोटो साभार- Flicker

भाषण के दौरान उन्होंने आगे कहा,

भारत आज भी सबसे तेज़ी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था है। इसके पास उत्कृष्ट कुशलता वाली श्रमशक्ति और ऐसी सरकार है, जो सुधार के नाम पर ज़रूरी चीज़ों और इन सबसे ऊपर लोकतंत्र एवं विधि के शासन पर लगातार काम कर रही है।

उनके कहने का मतलब था कि निवेशकों को भारत में निवेश करने के कई मौके हैं क्योंकि यहां पूंजीवाद का सम्मान किया जाता है। मगर अदालती व्यवस्था के सुस्त होने के कारण ही निवेश प्रक्रिया में थोड़ी देरी हो जाती है। हालांकि सरकार इन सब मुद्दों पर काम कर रही है ताकि निवेशकों को निवेश करने में विलंब ना हो। दरअसल, निवेशकों को पूरी दुनिया में भारत से बेहतर जगह नहीं मिलेगी।

आरोप-प्रत्यारोप और 5 ट्रिलियन

इस बीच पिछली सरकार पर दोष मढ़ने का सिलसिला भी शुरू हो गया, जिस पर मनमोहन सरकार ने पलटवार करते हुए बताया कि आर्थिक सुस्ती, सरकार की उदासीनता से भारतीयों के भविष्य और आकांक्षाओं पर असर पड़ रहा है।

इस तरह से आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू है लेकिन आम जन-जीवन और व्यापारियों पर इसका क्या असर हो रहा है, इस बात पर गौर करने की ज़रूरत है क्योंकि जहां निवेशकों को निवेश करने के लिए मौके की बात हो रही हो, वहां छोटे निवेशकों, व्यापारियों और आम जनता की क्या स्थिति है, इस बात पर भी गौर करना चाहिए।

छोटे व्यापारी और आम जनता की बात

इसके लिए मैंने मुज़फ्फरपुर के सोनार मंडी में काम करने वाले और बड़े-छोटे व्यापारियों से इस विषय पर बातचीत की, जिसमें उन्होंने बताया,

अभी पर्व-त्यौहारों को लेकर स्थिति थोड़ी ठीक है लेकिन बाज़ार बहुत मंदी के दौर से गुज़र रहा है। निवेश करने के मौके नहीं मिल पाते हैं और सरकार केवल बड़े निवेशकों के बारे में बात करती है। हम व्यापारियों ने कई आंदोलन भी किए मगर हालात नहीं सुधरे। सोने-चांदी की वस्तुओं के दाम हमेशा बढ़ते-घटते रहते हैं, उनमें स्थिरता नहीं होती है इसलिए हमें तो और भी बेहतर निवेश के मौके मिलने चाहिए ताकि छोटे व्यापारियों को भी आगे बढ़ने के मौके मिल सकें।

अगर हम आम जनता कि बात करें तो बढ़ती मंहगाई और सरकार के रवैये के कारण आजकल लोगों को अपने दैनिक चीज़ों की पूर्ति के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है। इस बीच एक गृहणी से हुई बातचीत में उन्होंने बताया,

पहले जितने पैसे में हम अपनी सारी ज़रूरतों को पूरा कर लेते थे, आज उसी पैसे में सारी चीज़ें मैनेज नहीं हो पाती हैं। बाज़ार में कभी पर्व-त्यौहारों, तो कभी आपूर्ति के नाम पर लूट मच जाती है तो वहीं बैंकों के विलय होने से हमारी परेशानियां और बढ़ गई हैं क्योंकि इससे बैंकों में फिक्स डिपॉजिट या सेविंग करने में भी परेशानी होती है।

बैंकों में शेयर लगाने के विषय में उन्होंने बताया कि जब बैंकों का विलय होता है, तब स्वॉप रेशियो पर असर होता है, जिससे इन्वेस्टर्स को जोखिम का खतरा रहता है।

फोटो साभार- Pixabay

कपड़ा व्यवसायियों का हाल

मुजफ्फरपुर के सुत्तापट्टी इलाके में कई कपड़ा व्यवसायियों की दुकान है, जहां हर महीने अरबों का व्यवसाय होता है और यहां से हर महीने सरकार को 5 लाख रुपयों तक का टैक्स प्राप्त होता है। वहां के व्यवसायियों ने बताया कि अभी हाल में टेक्सटाईल उद्योग में आई मंदी से उनका कारोबार बहुत प्रभावित हुआ है। उन्होंने कहा,

सरकार को वैश्विक स्तर पर हर छोटे-बड़े व्यापारियों को निवेश के बेहतर मौके देने चाहिए लेकिन भारत में जब सूत का कारोबार ही मंदी के दौर से गुज़रने लगेगा तो हम कपड़ा व्यवसायियों की हालत क्या होगी, यह बात किसी से छिपी नहीं है।

अभी मार्केट कैप में ऊंचे स्तर की कंपनियों की बात करें तो रिलायंस और टीसीएस जैसी कंपनियां टॉप पर हैं, जिससे एक बात तो ज़ाहिर है कि लोग इन कंपनियों में ही निवेश करना चाहेंगे। मगर छोटे व्यापारियों को किस तरह से बेहतर निवेश के मौके मिलेंगे यह बात सरकार भी नहीं जानती क्योंकि उसे केवल 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था ही दिख रही है।

रघुराम राजन का बयान

सरकार के आरोप-प्रत्यारोप के बीच पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन का भी बयान सामने आया है, जिसमें उन्होंने वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण से कहा है,

अभी अर्थव्यवस्था को सुधारने का समय है, ना कि एक-दूसरे पर आरोप लगाने का।

राजन ने आगे कहा,

वित्तमंत्री द्वारा कही गई बात कि मनमोहन सरकार के दौर में बैंक अपने सबसे निचले और बद्तर स्थिति में थे। यह बात बेहद भड़काने वाली है।

राजन ने बताया कि सरकार को बैंकों का एनपीए कम करने और हर प्रकार के निवेश को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाने चाहिए ताकि लोगों को राहत मिले।

कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती और राजकोषीय घाटा

वहीं सरकार ने कॉर्पोरेट टैक्स में 8 फीसदी की कटोती की है, जिससे यह अब 30 से घटकर 22 पर आ गया है। इससे कंपनियों की आय बढ़ेगी मगर असल बात यह है कि कंपनियां आय के अधिशेष हिस्से को कारोबार में निवेश करती है, कर्ज़ में कटौती करती है या शेयर धारकों को उच्च रिर्टन के रुप में देती है। कॉर्पोरेट टैक्स में की गई कटौती से राजकोषीय घाटा बढ़ेगा, जिसका असर आम जनता पर देखने को मिल सकता है।

इस तरह आने वाले समय में भारत 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था को प्राप्त करता है या नहीं, यह तो बाद की बात है मगर फिलहाल व्यापारियों, छोटे व्यापारियों, छोटे निवेशकों और आम जनता पर सरकार उतना ध्यान नहीं दे पा रही है, जिससे की राहत की खबर मिले।

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