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“ट्रेन में मुझे सीट ऑफर करने वाले शख्स ने मेरी जांघों पर हाथ फेरना शुरू कर दिया”

प्रतीकात्मक तस्वीर

प्रतीकात्मक तस्वीर

साल 2015 की बात है जब मैं पूर्वा एक्सप्रेस ट्रेन से जसीडीह स्टेशन से नई दिल्ली आ रही थी और उस यात्रा के दौरान मेरे साथ पड़ोस के अंकल भी थे। जून का महीना था और ट्रेन खचाखच भरी हुई थी। सबसे बड़ी समस्या यह थी कि हमारी टिकट कनफर्म नहीं हुई थी, जिस कारण हमें बैठने की जगह तो दूर की बात है, खड़े होने की जगह भी नहीं मिल रही थी।

अंकल की उम्र लगभग 60 वर्ष है तो उनका बैठना ज़्यादा ज़रूरी था। इसलिए वह ज़मीन पर ही बैठ गए मगर मेरे लिए काफी मुश्किल था कि मैं उस भीड़ ट्रेन में अपने लिए एक सुरक्षित जगह तलाश पाती। यह सब सोचते-सोचते रात हो गया और लोग सोने की तैयारी करने लगे। इस बीच एक लड़के ने मेरे पड़ोस के अंकल से बात करना शुरू कर दिया और वह लगातार मझे देखे जा रहा था।

उसने अंकल से बात करते-करते अपनी ऐसी छवि बना ली कि वह दुनिया का सबसे शरीफ लड़का हो मगर मुझे उसकी चाल समझ आ गई थी। अंकल ने देखा कि लड़का अच्छा है तो वह पास वाली सीट के नीचे सोने चले गए और मैं उस लड़के की सीट पर एक कोने में बैठी रही।

प्रतीकात्मक तस्वीर।

इस दौरान उसने मुझसे कहा कि मैं उसकी सीट पर लेट जाऊं और वह बैठ जाएगा। अब क्या बताऊं, इतनी थकी थी मैं कि मुझे कुछ नहीं समझ आया और मैं उसकी सीट पर जाकर लेट गई। नींद इतनी कि जैसे मैंने शराब पी रखी हो। जब मेरी आंख खुली, तब मैंने अपनी जांघों पर स्पर्श महसूस किया।

मैंने पहली बार तो इग्नोर किया मगर लगातार ऐसा महसूस हो रहा था कि अजनबी हाथ मेरी जांघों को छू रहे हैं और आंख खुलने के बाद मैंने देखा कि ऐसी गंदी हरकत कोई और नहीं, बल्कि मुझे अपनी सीट पर जगह देने वाला शख्स कर रहा है।

जब मुझे अंदाज़ा हो गया कि मेरी नींद का फायदा उठाकर वह शख्स ऐसी हरकत कर रहा था, तब मैंने उसे डांटकर इसका विरोध करना शुरू किया। इसके बाद वही हुआ जो लगभग हर ऐसी घटना के बाद होता है। मुझे कहा गया कि आज कल तो मदद ही नहीं करनी चाहिए, एक तो मैंने आपको सीट दी और आपने मुझपर आरोप लगा दिए। लड़कियां ऐसी ही होती हैं। हमारे समाज ने लड़कियों का मनोबल बढ़ा दिया है वगैरह-वगैरह।

सबसे हैरानी की बात यह थी कि जब हमारे बीच बहस हो रही थी, उस वक्त सामने की सीट वाली महिलाएं चुपचाप सुन रही थीं। मैं कई दफा सोचती हूं कि छोटे शहरों या ग्रामीण इलाकों में बैठकर महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा के खिलाफ आवाज़ उठाने वाली ये महिलाएं ऐसी घटनाओं को देखते वक्त क्यों कमज़ोर पड़ जाती हैं?

सबसे दिलचस्प बात यह थी कि इस पूरी घटना के दौरान अंकल सोते रहे। पता नहीं क्यों मगर उनकी एक आवाज़ तक नहीं आई, जबकि वह लड़का काफी ज़ोर से मेरे द्वारा खुद पर लगे आरोपों के बचाव की दलील पेश कर रहा था।

मैं यही सोचती हूं कि देश में मेरी तरह कितनी लड़कियां हर रोज़ अलग-अलग हिंसा का सामना करती होंगी मगर उसके खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए कौन सी ऐसी चीज़ है, जो इन लड़कियों को रोकती हैं?

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