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“हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के बहुजन छात्रों को निष्कासित करना शर्मनाक है”

हिंदी विश्वविद्यालय के बहुजन स्टूडेंट्स ने वे कौन से मुद्दे उठाए थे, जो मोदी भक्तों को हजम नहीं हो रहे हैं? और विवि प्रशासन इतना तिलमिला उठा कि उसने सुबह का भी इंतजार नहीं किया और 9 अक्टूबर की आधी रात को 6 बहुजन स्टूडेंट्स को निष्कासित कर शिक्षा से वंचित कर दिया।

दर्जनों स्टूडेंट्स 9 अक्टूबर को विवि कैम्पस में इकट्ठे होकर बहुजन नायक कांशीराम का परिनिर्वाण दिवस मनाते हुए पीएम मोदी को देश के मौजूदा हालात पर पत्र लिखकर कुछ महत्वपूर्ण सवाल उठाए थे।

आइए, अब उन सवालों के बारे में जानते हैं। इन सवालों में एक सवाल था कि रेलवे, बीपीसीएल, एयरपोर्ट आदि का निजीकरण क्यों? जबकि एक दूसरा सवाल बैंकों व रिजर्व बैंक की मौजूदा हालात को लेकर था।

मौजूदा दौर का सबसे अहम सवाल दलितों-अल्पसंख्यकों के बढ़ते मॉब लिंचिंग, बलात्कार और यौन हिंसा की बढ़ती घटनाओं पर था।

अन्य सवाल कश्मीर के नागरिकों की नागरिक स्वतंत्रता से जुड़ा हुआ था। सवाल एनआरसी के नाम पर मुस्लिमों पर निशाना साधे जाने को लेकर भी किए गए थे। यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि उपर्युक्त सारे सवाल देश के ज्वलन्त सवाल होने के साथ देश के वर्तमान व भविष्य को गहरे अर्थों में प्रभावित करने वाले सवाल हैं।

क्या अब सवाल पूछना भी अपराध है?

ज़ाहिर है ये सवाल ना केवल कुछ स्टूडेंट्स के ही सवाल हैं, बल्कि देश के हर संवेदनशील नागरिकों के ज़हन में उठने वाले सवाल हैं। किसी भी लोकतंत्र में जनता के मतों से निर्वाचित किसी भी प्रधानमंत्री से सर्वथा पूछे जाने वाले वैध सवाल हैं, जिन्हें दरकिनार नहीं किया जा सकता है।

भारत के संविधान ने भी यहां के नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सरकारों से सवाल पूछने का अधिकार दिया है। संविधान प्रदत्त इस अधिकार को स्टूडेंट्स से छीनने का अधिकार किसी शिक्षण संस्थान को नहीं है।

स्टूडेंट्स द्वारा पीएम को लिखी गई चिट्ठी। फोटो साभार- अजनी

ऐसी सूरत में एक शिक्षित नागरिक का यह फर्ज़ हो जाता है कि वह आगे बढ़कर पीएम मोदी से उक्त सवालों के उत्तर मांगे। यही काम महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के इन स्टूडेंट्स-शोधार्थियों ने किया। किंतु भक्ति काल में डूबे विश्वविद्यालय प्रशासन ने इन स्टूडेंट्स को निष्कासित कर शिक्षा से ही वंचित कर दिया।

विश्वविद्यालय प्रशासन अनुशासनहीनता व आचार संहिता उल्लंघन व न्यायिक कार्यों में बाधा डालने का बहाना बनाकर स्टूडेंट्स की वाजिब आवाज़ को दबाने की कोशिश कर रहा है।

विश्वविद्यालय प्रशासन के इस अलोकतांत्रिक फैसले की जब चहुंओर निंदा होने लगी, तब विश्वविद्यालय प्रशासन स्टूडेंट्स पर विश्वविद्यालय की छवि को धूमिल करने का बेबुनियाद आरोप लगा रहा है। जबकि सच्चाई तो यह है कि विश्वविद्यालय के मूर्खतापूर्ण फैसले और बहुजन स्टूडेंट्स को टारगेट कर निष्कासित करने से ही विश्वविद्यालय की बदनामी हो रही है।

बेबुनियाद तर्कों का दिया जा रहा है हवाला

किसी भी संस्थान का मान उसके लोकतांत्रिक व संवैधानिक वसूलों के कुचलने से बढ़ता नहीं, बल्कि घटता ही है। विश्वविद्यालय प्रशासन स्टूडेंट्स के निष्कासन को वैध ठहराने के लिए बेबुनियाद तर्कों का लगातार सहारा ले रहा है। वह अपने ही स्टूडेंट्स को असामाजिक तत्व बताकर पूरे स्टूडेंट कम्युनिटी का अपमान कर रहा है। विश्वविद्यालय प्रशासन के इन कारनामों से विश्वविद्यालय की भारी बदनामी हो रही है, जो वाकई में शर्मनाक है।

चंदन सरोज, रजनीश कुमार अम्बेडकर, नीरज गाँधी, राजेश सारथी, वैभव पिंपलकर और पंकज बेला जैसे विश्वविद्यालय के निष्कासित स्टूडेंट्स-शोधार्थियो ने देश के अहम सवालों पर पीएम मोदी को पत्र लिखकर देश-समाज के प्रति ज़रूरी फर्ज़ अदा किया है।

मनुवादी विश्वविद्यालय प्रशासन के रोके जाने के बाद भी बहुजन मुक्ति के नायक मान्यवर कांशीराम को याद कर अपने पुरखों को श्रद्धांजलि देने की बहादुरी दिखाई है। इन स्टूडेंट्स-शोधार्थियों के निष्कासन वापसी की मांग देश के कोने-कोने से उठ रही है। विश्वविद्यालय के मान-सम्मान व देश में लोकतंत्र की गारंटी का तकाज़ा है कि स्टूडेंट्स का निष्कासन अविलम्ब वापस हो।

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