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“क्यों लेबनान और चिली में हो रहे प्रदर्शनों से दुनिया के शोषितों को प्रेरणा लेनी चाहिए”

लेबानन और चिली में प्रदर्शन

लेबानन और चिली में प्रदर्शन

पिछले एक हफ्ते से लेबनान और चिली से सरकारों के खिलाफ प्रतिरोध की कुछ तस्वीरें सामने आ रही हैं, जो यह दिखाती है कि जनता की राजनीतिक चेतना समाप्त करने का बीड़ा उठाने वाला यह पूंजीवादी तथाकथित लोकतंत्र भी जनता की राजनीतिक चेतना को समाप्त नहीं कर सका।

यह जनता अपने देशों की सरकारों की आर्थिक नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन कर रही है। लेबनान और चिली के विरोध प्रदर्शनों में अपने देश की सरकारों के साथ-साथ अमेरिका का विरोध भी दिखाई दे रहा है।

अमेरिकी सरकार ने लेबनान पर पहले से ही काफी आर्थिक प्रतिबंध लगा रखे हैं, जिससे लेबनान की आर्थिक स्थिति जर्जर थी। इसको देखते हुए लेबनान के प्रधानमंत्री साद हरीरी द्वारा घोषित किए गए आर्थिक सुधारों के उपाय को प्रस्तुत किया गया, जिसके एक दिन बाद से ही लेबनान में उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए है।

लेबनान की जनता का कहना है कि जब तक प्रधानमंत्री और उनकी कैबिनेट इस्तीफा नहीं दे देती, तब तब वे इसी तरह प्रदर्शन करते रहेंगे।

दूसरी तरफ चिली में पिछले एक हफ्ते पहले मेट्रो के बढ़े हुए किराये के बाद प्रदर्शन शुरू हुए थे। सरकार ने मेट्रो किराये में बढ़ोतरी का फैसला तो वापस ले लिया लेकिन विरोध प्रदर्शन कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं। शुक्रवार और शनिवार को सैंटियागो की सड़कों पर 10 लाख लोगों ने उतरकर गैर-बराबरी, मंहगाई, तेल की बढ़ी कीमतों, जर्जर वितरण व्यवस्था और मरणासन्न स्वास्थ्य सेवाओं के खिलाफ प्रदर्शन किया।

लेबानन में प्रदर्शन की तस्वीर। फोटो साभार- ANI Twitter

चिली वही देश है जहां लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई मार्क्सवादी सरकार के राष्ट्रपति अलेंदे की हत्या 1973 ई. में करके अमरीकी समर्थन प्राप्त कुख्यात जनरल पिनोशे ने अपनी फौजी हुकूमत की स्थापना की थी।

पिनोशे का शासन सन् 1990 तक चला जिसके बाद अमेरिका समर्थित तथाकथित समाजवादी, नव उदारवादी और दक्षिणपंथी सरकारे रहीं। चिली में हो रहे  प्रदर्शनों में जनता ने वहां से शुरू हुए नव उदारवाद की हाथों में तख्ती लेकर आलोचना की।

चिली में उदारवाद का विरोध हो रहा है। यह उदारवादी अर्थव्यवस्था केवल पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का नकाब होता है। उदारवाद जैसी कोई अवधारणा का अस्तित्व ही नहीं है। जो भी देश यह दावा करता है कि वह पूंजीवादी नहीं, बल्कि उदारवादी है, उसकी योजनाओं का अध्ययन करने पर पता चलेगा कि वह असल में पूंजीवादी व्यवस्था है। उदारवादी व्यवस्था में भी पूंजी एक विशेष वर्ग तक ही सीमित रह जाती है।

चिली और लेबनान में हो रहे विरोध प्रदर्शनों से सारी दुनिया के शोषितों और शोषकों को सीख लेनी चाहिए। शोषितों को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए और शोषकों को डरना चाहिए कि जब शोषित जनता एकजुट होती है, तो उनका अंत होना तय है।

लेबनान में शिया मुस्लिम, सुन्नी मुस्लिम और ईसाई तीनों धर्म-संप्रदाय के लोग रहते हैं। ये लोग पहले धार्मिक आस्था को आगे रखते थे लेकिन अब धर्म की बेड़ियों को तोड़कर वे अपने अधिकारों के लिए एकजुट हो गए हैं।

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