मुझे साल 2005 का वह वाकया याद है, जब दिसंबर के महीने में कड़ाके की ठंड थी और मैं अपने मामा के साथ कोलकाता जा रहा था। ट्रेन में खचाखच भीड़ थी और मैं जनरल बॉगी में बैठा था। मामा सुदूर ग्रामीण इलाके में रहते हैं जिस कारण उन्हें किसी भी कंडीशन में एडजस्ट करने की आदत है।
जसीडीह स्टेशन से हमलोग हावड़ा जा रहे थे। मामा जी को भीड़ वाली ट्रेन में सफर करने की आदत थी, जिस कारण वह किसी तरह से अपने लिए एक जगह बनाकर बैठ गए मगर मैं पहली दफा इतनी भीड़ में यात्रा कर रहा था। मेरे ठीक बगल में पुलिस की वर्दी में बैठे एक शख्स ने मुझसे बातचीत शुरू की।
मैंने अपना नाम बताया फिर उन्होंने पूछा कि मेरे घर में कौन-कौन रहते हैं, जिसके बाद कई प्रकार की निजी जानकारियां वे मुझसे लेने लगे। मुझे शुरू में एहसास भी ना हुआ कि वह शख्स मेरे साथ यौन शोषण कर रहा है मगर धीरे-धीरे उसने बेहद ही निजी बातचीत के बाद मेरे प्राइवेट पार्ट को छुना शुरू कर दिया।
एक मसला यह भी है कि यौन शोषन को लेकर अब हम सजग होना शुरू हुए हैं मगर पहले तो इस बारे में बात भी नहीं होती थी और शायद यही वह वजह थी कि मेरे प्राइवेट पार्ट को जब उन्होंने टच किया, तब मैं नहीं समझ पाया कि उनका मकसद क्या है?
ऐसा इसलिए क्योंकि मुझे याद है गाँव में जब भी मैं खुले बदन में नल के पास स्नान करता था, तब पड़ोस के कई लोग आकर मेरा प्राइवेट पार्ट छू लेते थे। कई पड़ोसी तो मेरे प्राइवेट पार्ट को छूकर कहते थे कि उन्होंने घंटी बजाई। अब इसमें सोचने वाली बात है कि मानसिक तौर पर भी ट्रेन में शोषण होने तक मैं इसी रूप में बड़ा हुआ था कि प्राइवेट पार्ट छूना कोई बहुत बड़ी बात नहीं है।
मुझे आज भी ट्रेन की वह घटना जब याद आती है, तब खुद पर गुस्सा तो आता ही है और साथ ही साथ उस समाज पर भी गुस्सा आता है, जिसके लिए यौन शोषण कभी मुद्दा रहा ही नहीं है।
पुलिस वाले ने सिर्फ मेरे प्राइवेट पार्ट को ही नहीं टच किया, बल्कि रात के अंधेरे का फायदा उठाते हुए मेरे हाथ को अपने लिंग के अंदर डाल दिया। मुझे लग तो रहा था कि मेरे साथ गलत हो रहा है मगर उस उम्र में भी पुलिस को लेकर मन में एक डर वाली छवि ज़रूर बनी हुई थी और यह डर भी कहीं ना कहीं मुझे आवाज़ उठाने से रोक रही थी।
कई दफा लगा टीटी को बोल देता हूं सारी बात मगर वर्दी की छवि जैसे ही ज़हन में आती कि सारे ख्याल दम तोड़ देते थे। वह पुलिसवाला हावड़ा पहुंचने तक मेरे प्राइवेट पार्ट को ना सिर्फ छूता रहा, बल्कि अपने प्राइवेट पार्ट में भी लगातार मेरे हाथों के ज़रिये हस्तमैथुन करता रहा।
आज इस घटना को आप सभी के साथ साझा करना इसलिए भी ज़रूरी था, क्योंकि हर रोज़ ना जाने यौन हिंसा की कितनी खबरें देखने को मिलती हैं और हम कुछ कर भी नहीं पाते हैं। आज ज़रूरत है हमें अपनी चुप्पी तोड़ने की। तो आइए यौन हिंसा से जुड़े आपके अनुभवों को भी सामने लाकर एक सुरक्षित वातावरण का निर्माण करते हैं।